गीली गार के खिलौने
समाजिक स्तंभ
कैसे खड़े करूं अपनी कविता में?
जबकि!
समूची दुनिया से दूर
कहीं
छुट – पुट पुरातन स्मृतियों में
अटका रहता है मन
वहीं
जोहड़ किनारे खड़ा
जल बिंदुओं पर फुदकता
लहरों पर बनते-बिगड़ते
आवर्त निहारता
मेरा अक्स,
गीली गार से
शंख – सीपियां ढूंढ निकालते
मेरे नन्हें हाथ,
ऊंचे टीलों पर
रंगीन तितलियों,
पीले फूलों
और –
कंटीली झाड़ियों से
बेर चुराने का लालच,
जो दौड़ाए फिरता है
कच्ची राहों पर;
अमरूद, जामुन, कच्ची कैरियों को
तोड़ने लपकने को
उछल-कूद,
चांद- तारों को निहारना,
बारिश में नहाना,
शोर मचाना
अल्हड़ मस्ती में नाचना – गाना
बादलों पर कदम रख
आकाश से घंटो बतियाना,
कुलदेवी की धोक पर
चूल्हे पर चढ़ी
लपसी की मीठी महक
और बस-
यही सब है जो
मुझे उस ओर जाने ही नहीं देती।
(यह कविता 21 मार्च 2006 को लिखी गई)
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किंतु बहस!
बहस
भिन्न – भिन्न तर्कों पर आधारित थी
किन्तु बहस!
केवल बहस ही रह जाएगी
पक्ष – विपक्ष
चिल्ला- चिल्ला कर थक जाएंगे
और –
कोई समस्या
बिना किसी निष्कर्ष के
निश्चित ही सुलझ नहीं पाएगी
यह तय है
क्योंकि
बहस का विषय
अब मंचों से जुड़कर
किंतु,
व्यक्तिगत व्यवहारिकता से परे शायद
निजी प्रयोगों
और…
निजी प्रयासों से हट गया है
जानती हूं
लेकिन!
यही विडंबना
मुझमें
तुझमें
और –
उन सभी में रड़कती रहेगी
अगली फिर किसी बहस के लिए
कि निष्कर्ष!
आज नहीं तो कल
मिल ही जाएगा।
(21.03.2006)
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– कैद केवल यहां नहीं है
इस कमरे से
आसमान नज़र नहीं आता
चांद- तारे
दीवारों से बाहर
तड़प रहे हैं
मुझे छू लेने भर को
कैद केवल यहां नहीं है
वहां भी है
जहां यह समझा जाता रहा है
कि-
क्षितिज के उस छोर पर
पंछी निर्बंध स्वछंद उड़ते हैं
आसमान….
परत- दर- परत बिंध चुका है
यकीन कर सकते हो तुम??
(10.07.2006)
कवि का परिचयः रोजलीन कीफी समय से साहित्य कर्म में जुटी हुई हैं। लगभग हर विधा में लिखती हैं, लेेकिन मूल रूप से कवयित्री हैं। अब तक पांच काव्य संग्रह- पलकों में जब गगन झपकता है ( वर्ष:- 2019 ),. छिपकर देखती उसकी आंखें ( वर्ष:- 2021), निर्बाध यात्रा एक गूंजते स्वर की ( वर्ष 2022), अशेष पर उमग गया एक शेष ( वर्ष 2023) और चांद अलसाया हुआ है ( वर्ष:- सितंबर 2023) में प्रकाशि्त हो चुके हैं। रोजलीन की कविताएं प्रतिबिम्ब मीडिया में पहली बार प्रकाशित हो रही हैं।