कविता
आंसुओं में मुस्कुराते हुए !
-मंजुल भारद्वाज
एक कला संकल्प
एक उन्मुक्त कला विचार
एक नाटय दर्शन
एक पथ… विविध रंग !
एक राही …
कलात्मक कारवां
सीमाओं को तोड़ता
रंग क्षितिज !
खुद का स्वयं से साक्षात्कार
अपने को जन्मतें कलाकार
जड़ता को आलोकित करता
कला चैतन्य !
समाज के विष को पीकर
विकार मुक्त विश्व सृजन के
मार्ग पर चलते
कला साधक !
पड़ाव दर पड़ाव
अपने होने की खुशबू से महकते
अपने होने के सबब पर
अपने ही आंसुओं में मुस्कुराते सृजनकार !
