कविता
पूरा का पूरा हिंदुस्तान खतरे में
मुनेश त्यागी
हिंदू खतरे में मुसलमान खतरे में
बहन बेटियों और बहुएं खतरे में,
हम सब देख और सुन रहे हैं
पूरा का पूरा हिंदुस्तान खतरे में।
सुप्रीम कोर्ट के जज कहें
जरा गौर से तो देखो,
कानून का शासन खतरे में
भारत का संविधान खतरे में।
कहीं रुक ही नहीं रही हैं
भूख और गरीबी की आंधियां,
केवल मान सम्मान ही नहीं
पूरा स्वाभिमान खतरे में।
जिन्हें चाहिएं किसी भी
तरह से सत्ता की कुर्सियां,
उन्हें कहां दिख रही हैं
लोक और लिहाज खतरे में।
भाषा जाति धर्म और क्षेत्र
बांट रहे हैं सारी जनता को,
इस जालिम बंटवारे से
मेरा भारत महान खतरे में।
ना है दीन की चिंता
ना है ईमान की चिंता,
धन दौलत की भूख से
सब दीन ईमान खतरे में।
ना तो न्यूनतम मजदूरी है
ना फसलों के वाजिद दाम हैं,
सारे मजदूर हैं खतरे में
सारे किसान है खतरे में।
धन-तंत्र ने रौंद दिया है
जनता के जनतंत्र को,
दुनिया पर कब्जे की हवस से
पूरा का पूरा जहान खतरे में।
