बात बेबात
बांग्लादेश ICU में और नेता लेक्चर दे रहे
विजय शंकर पांडेय
बांग्लादेश में तारिक रहमान की वापसी को लोग ऐसे देख रहे हैं, जैसे लंबे कट के बाद कोई फिल्म अचानक इंटरवल से शुरू हो जाए। मंच से उन्होंने कहा—“मेरे पास एक योजना है।” भीड़ ने ताली बजाई, क्योंकि योजना का होना आजकल अपने आप में बड़ी उपलब्धि है, भले ही उसका कंटेंट बाद में आए… या आए ही नहीं।
लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी और धार्मिक टॉलरेंस पर भाषण इतना भावुक था कि लगा देश की सारी समस्याएं माइक के सामने लाइन लगाकर माफ़ी मांग लेंगी। बेरोज़गारी ने कहा—“हम बाद में आएंगे।” महंगाई बोली—“हम तो हमेशा रहेंगे।” और कानून-व्यवस्था ने हाथ जोड़कर निवेदन किया—“पहले हमें संभाल लीजिए, भाषण बाद में।
दरअसल बांग्लादेश इस वक्त ICU में है और नेता एम्बुलेंस के ऊपर खड़े होकर हेल्दी लाइफस्टाइल पर लेक्चर दे रहे हैं। “अमन-चैन” शब्द रैली में इतना हल्का लगता है, जितना चुनावी घोषणा पत्र में सस्ता चावल। हर नेता के पास एक अदृश्य फाइल होती है—महान योजना—जिसे जनता कभी देख नहीं पाती, बस उस पर भरोसा करने को कहा जाता है।
तारिक रहमान की योजना भी शायद उसी अलमारी में रखी है, जहां पहले नेताओं की योजनाएं रखी जाती थीं—तालाबंद, धूल भरी और “उचित समय” का इंतज़ार करती हुई। सवाल बस इतना है: क्या इस बार चाबी भी साथ लाई गई है, या फिर अमन-चैन भी भाषण तक ही सीमित रहेगा?

लेखक – विजय शंकर पांडेय
