ओमप्रकाश तिवारी की कविता- रास्ता

कविता

रास्ता

ओमप्रकाश तिवारी

 

बहुत जरूरी होता है रास्ता

आवागमन को सुगम बना देता है

दूर बहुत दूर तक पहुंचा देता है

किसी न किसी गंतव्य तक जाता ही है

जो हमसफ़र बनता है

उसे वहाँ तक ले जाता है

जहां तक ख़ुद जाता है

मंजिल पर पहुंचना और पहुंचाना

उसे पसंद है, भाता है

हर किसी की मंजिल तक उसकी पहुंच है

बिना पथ कोई पथिक नहीं

बिना रास्ता कोई मंजिल नहीं

रास्ता बनाता कौन है?

जवाब है कि आदमी

फिर इतना घुमावदार क्यों होता है रास्ता

तमाम मोड़ और चौराहे क्यों होते हैं

अक्सर बहुत संकरा होता है

ऊबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरा भी होता है

कंटीला और पथरीला भी होता है

ढलान दार होता है तो ऊंचा भी होता है

इसमें भूगोल की भूमिका तो होती है

आदमी भी जिम्मेदार होता है

हर आदमी अपने लिए अच्छा रास्ता चाहता है

मगर कभी अच्छा रास्ता बनाता नहीं है

उसकी प्राथमिकता में अच्छा रास्ता नहीं होता है

जब भी कोई अच्छा रास्ता बनाता है

तमाम लोग उसके विरोध में उतर जाते हैं

सीधा और चौड़ा रास्ता

संकरा और घुमावदार हो जाता है

रास्तों पर अतिक्रमण लोग ही करते हैं

रास्तों पर लोग ही चलते हैं

रास्तों को ख़राब लोग ही करते हैं

घर बनाते समय रास्ते को कब्जा लेंगे

बचा रास्ता घर बनाने के बाद कब्जा लेंगे

खुद आपने घर के सामने से रास्ता नहीं देंगे

दूसरे के घर के सामने रास्ता चौड़ा चाहिए

ख़ुद का बच्चा रास्ते पर खेलेगा

दूसरे का नहीं खेलना चाहिए

खेत से भी रास्ता नहीं निकलने देते

खेत तक मशीन कैसे जाय?

हर कोई तो रास्ता रोकता है

बिना रास्ता बेकार हो जाता है खेत

शहरी भी कहां पीछे रहते हैं

रास्ता बंद करना उनका भी शगल है

घर दुकान बनाते समय रास्ता कब्जाना ही है

उसके बाद दुकान रास्ते पर लगाना ही है

ग्राहक किधर से आएगा कोई फ़िक्र नहीं

रास्ता नहीं होने से ग्राहक नहीं आता है

एक सपना सुंदर नहीं हो पाता है

बिना रास्ता अधिकतर हैं बे मंजिल

अधिकतर तो रास्ते में ही फंसे हैं

बहुतों को तलाश है बेहतर रास्ते की

सोच बदले तो बेहतर बनें रास्ते

फिर बिना मंजिल कोई मुसाफिर नहीं होगा।

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