राज्यसभा सीटें भी इमरजेंसी एग्जिट बन गई हैं

बात बेबात

राज्यसभा सीटें भी इमरजेंसी एग्जिट बन गई है

विजय शंकर पांडेय

बिहार की राजनीति में इन दिनों मौसम ठीक नहीं, सीटों का दबाव बदल रहा है। विधानसभा चुनाव खत्म होते ही राज्यसभा की हवा चलने लगी है। इसी हवा में जीतन राम मांझी ने ऐसी सीटी बजाई कि एनडीए का पूरा इंजन चौंक गया। बोले—“सीट दो, नहीं तो हम उतर जाते हैं।” अब राजनीति में इसे धमकी नहीं, संवैधानिक अल्टीमेटम कहा जाता है।

मांझी जी का बयान सुनकर एनडीए के रणनीतिकार माथा पकड़कर बैठ गए—“अब राज्यसभा सीटें भी इमरजेंसी एग्जिट बन गई हैं?” केंद्रीय कैबिनेट में रहते हुए छोड़ने की धमकी देना वही बात हुई, जैसे शादी में दूल्हा फेरे के बीच बोले—“अगर मिठाई अच्छी नहीं मिली तो बारात वापस!”

बिहार की राजनीति में सीट कोई साधारण कुर्सी नहीं होती, यह आत्मसम्मान, स्वाभिमान और राजनीतिक ऑक्सीजन तीनों का मिश्रण होती है। मांझी जी भी जानते हैं कि राज्यसभा सिर्फ संसद नहीं, यह वह बालकनी है, जहां से नेता दिल्ली की हवा खाते हैं और पटना में बयान देते हैं।

एनडीए भी उलझन में है—दे दें तो बाकी साथी नाराज़, न दें तो मांझी जी नाराज़। बिहार में नाराज़गी सबसे खतरनाक चीज़ है, क्योंकि यहां नाराज़ नेता भी वोट बैंक लेकर चलता है।

फिलहाल राजनीति का संदेश साफ है—सरकार में रहना है तो सीट चाहिए, और सीट नहीं मिली तो सिद्धांत अचानक याद आ जाते हैं। बिहार है जनाब, यहां विचारधारा से पहले गणित चलता है, और गणित में “मांझी” हमेशा निर्णायक साबित होते हैं।

लेखक – विजय शंकर पांडेय

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