दिग्गज ब्राह्मण विद्वानों के साथ मित्रता थी बाबा साहब आंबेडकर की

दिग्गज ब्राह्मण विद्वानों के साथ मित्रता थी बाबा साहब आंबेडकर की

 

वाकया है आचार्य प्रह्लाद केशव अत्रे के विवाह का. अत्रे साहब पक्के ब्राह्मण थे और उन्होंने वैश्य कन्या से शादी की थी.

आंबेडकर ने अत्रे का “बहिष्कृत भारत” में लेख लिखकर अभिनंदन किया था. लिखा था-

“अत्रे,देशस्थ ब्राह्मण और उनकी पत्नी गोंदूताई शामराव मुंगी, वैश्य! कवि केशवकुमार नाम से वे साहित्यभक्तों को परिचित हैं. उनका लेखन ऐसा मौलिक है कि उपहासात्मक काव्य लिखने में उनका सानी अन्य मराठी कवि नहीं है. वर-वधू के स्वतंत्र और स्वावलंबी होने के कारण यह मिश्र विवाह हर दृष्टि से उचित और आदर्श माना जाना चाहिए!”

13 अक्टूबर 1929 को पुणे के प्रसिद्ध पार्वती मंदिर में अस्पृश्यों के प्रवेश के लिए दलित नेताओं और सवर्ण नेताओं ने मिलकर आंदोलन किया. मिलकर आंदोलन करने वाले नेता थे- शिवराम जानबा कांबले, पा.ना.राजभोज, श्री.स. थोरात. लांडगे, विनायकराव भुस्कुटे, (सभी दलितनेता) और वा.वि.साठे, देशदास रानाडे, ग.ना. कानिटकर, केशवराव जेधे, न.वि.गाडगिल (सभी सवर्ण)

इस आंदोलन में कुछ आर्यसमाजी भी शामिल हुए थे.

इस आंदोलन में आंबेडकर किसी व्यस्ततावश पहुंच नहीं पाए.

फिर भी उन्होंने बम्बई की एक सभा में इस आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा था-

”पुणे के दलितवर्ग द्वारा अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए चलाए संघर्ष को केवल हार्दिक समर्थन देना ही बम्बई के दलितवर्ग का कर्तव्य नहीं, उन्हें आर्थिक सहायता देनी चाहिए..आवश्यकता पड़ने पर सत्याग्रह का समर्थन करने के लिए पुणे जाने के लिए तैयार रहना चाहिए.”

आंबेडकर ने दलितों के लिए मूल्यवान सलाह दी कि –

”अस्पृश्य समाज को अपनी यथास्थिति में बने रहने की वृत्ति छोड़ देनी चाहिए.”

बाबासाहब आंबेडकर ने सबसे महान कार्य यह किया कि उन्होंने अस्पृश्यों के दुख और जातिप्रथा की बुराईयों से सारी दुनिया को अवगत कराया. उनको सामाजिक परिवर्तन का प्रधान राजनीतिक विषय बनाया.

आंबेडकर ने कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं, उनमें से एक है-

‘हमारे हिन्दुस्तान देश के हीनत्व का अगर कोई कारण होगा तो वह देवतापन है!

आंबेडकर के अछूतोद्धार के काम में ब्राह्मणों की सक्रिय भूमिका थी. स्वयं आंबेडकर भी चाहते थे कि अस्पृश्यता को खत्म करने के काम में ब्राह्मणों की सक्रिय भूमिका हो. उस समय जेधे-जवलकर जैसे नेताओं ने आंबेडकर को कहा कि महाड़ सत्याग्रह (1927) में ब्राह्मणों को शामिल न किया जाय.

आंबेडकर ने उनकी राय नहीं मानी और कहा, ‘हमें यह शर्त मंजूर नहीं कि अस्पृश्योद्धार के आंदोलन से ब्राह्मण कार्यकर्ताओं को बाहर निकाला जाए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम यह मानते हैं कि ब्राह्मण लोग हमारे दुश्मन न होकर ब्राह्मण्यग्रस्त लोग हमारे दुश्मन हैं. ब्राह्मण्य रहित ब्राह्मण हमें नजदीक का लगता है. ब्राह्मण्य ग्रस्त ब्राह्मणेतर हमें दूर का लगता है.’

कृपया इन शब्दों को पढ़ें नए कि तथाकथित दलित चिंतक

भीमराव आंबेडकर के मित्र थे: श्रीधरपंत तिलक (लोकमान्य तिलक के बेटे). वे आंबेडकर के चहेते थे. वे प्रगतिशील विचार रखते थे. उनका मानना था कि हिन्दू संगठन का लक्ष्य है चारों वर्णों का विनाश हो. ब्रिटिश नौकरशाही और भिक्षुकशाही ओछीवृत्ति है. उन्होंने 1927 के गणपति महोत्सव के समय केसरी के समर्थकों के विरोध को न मानकर, अस्पृश्य कार्यकर्ता राजभोज के श्रीकृष्णमेले का कार्यक्रम गायकवाड़ बाड़े में आयोजित किया. बाद में पुणे के अस्पृश्यों ने एक सभा बुलाकर श्रीधरपंत तिलक का सार्वजनिक अभिनंदन किया था.

यह घटना इसलिए लिखनी पड़ी कि इन दिनों इंटरनेट पर अजीब माहौल बनाया जा रहा है कि आंबेड़कर के साथ कोई ब्राह्मण नहीं था. आंबेडकर के साथ अनेक यशस्वी सवर्ण थे जो उनके विचारों को मानते थे। जगदीश्वर चतुर्वेदी के फेसबुक से साभार

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