माहले राम – खाड़कू और रौबदार व्यक्तित्व

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग- 47

माहले राम – खाड़कू और रौबदार व्यक्तित्व

सत्यपाल सिवाच

सर्वकर्मचारी संघ हरियाणा के गठन के समय मैकेनिकल वर्करज यूनियन – 41 हेड ऑफिस चरखीदादरी के राज्याध्यक्ष माहले राम एक्शन कमेटी के ग्यारह सदस्यों में शामिल रहे। उनका जन्म सन् 1941 में रोहतक जिले के गढ़ी सिसाना गांव में हुआ था जो अब सोनीपत के खरखौदा ब्लाक में आता है। उन्होंने दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की थी। वे सन् 1966 में पब्लिक हेल्थ विभाग में वर्क मुंशी लगे थे और 1999 में वर्क इंस्पेक्टर पद से रिटायर हुए। 05 सितंबर 2007 को एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उनके तीन बेटे और एक बेटी है। सभी विवाहित हैं। तीनों बेटे पब्लिक हेल्थ में ही कर्मचारी हैं।

उन दिनों अधिकारी कर्मचारियों के बच्चों को डेली वेज या वर्कचार्ज लगा लेते थे और बाद में रेग्युलर हो जाते। मुझे अनेक लोगों ने जानकारी दी कि माहले राम ने दर्जनों युवाओं को पब्लिक हेल्थ में नौकरी लगवाई होगी। वे बहुत खाड़कू स्वभाव के थे जिसके चलते विभाग के अधिकारियों पर उनका दबदबा रहता था। पूर्व कर्मचारी नेता वीरेन्द्र सिंह डंगवाल और अशोक शर्मा ने बताया कि माहले राम कर्मचारियों के काम के लिए अधिकारियों से भिड़ जाते। वे बेगार लेने और कर्मचारियों के शोषण के भी खिलाफ थे।

माहले राम के छोटे बेटे राकेश कुमार ने अपने पिता के बारे में बहुत सारी जानकारियां दीं। लेकिन माहले राम जी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उन्हें भी नहीं है। मैकेनिकल यूनियन शुरू से लड़ाकू संगठन रहा है। जब 1986 में सर्वकर्मचारी संघ बना तो माहले राम को भी एक्शन कमेटी में शामिल किया गया। उस समय भिवानी से टेकराम महासचिव थे। जब 25 सितंबर 1988 में पहला विधिवत् चुनाव हुआ तो माहले राम को सचिव चुना गया। उसके कुछ समय बाद मैकेनिकल यूनियन में मतभेद हो गए। सन् 1989 के चुनाव में माहले राम अध्यक्ष बन गए थे लेकिन जब साल भर बाद दोबारा चुनाव हुआ तो वे वीरेन्द्र सिंह डंगवाल के मुकाबले में हार गए। दरअसल वे अध्यक्ष ही रहना चाहते थे,  जिसके चलते उन्होंने रजिस्ट्रेशन नंबर के लिए केस चलाया और वर्षों तक हेड ऑफिस रोहतक पहचान के साथ संगठन के अध्यक्ष बने रहे। सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे मृत्यु तक उस मंच से सक्रिय रहे। तभी से वे सर्वकर्मचारी संघ से भी अलग हो गए थे।

माहले राम ने 1980 में यूनियन में राज्य स्तर पर पहचान बना ली थी। उस समय यूनियन ने मुख्यमंत्री भजनलाल को किसी कार्यक्रम में बुलाया और उन्होंने कुछ मांगें मानने की घोषणा की थी लेकिन बाद में उन्हें लागू नहीं किया। इस पर 1981 में माहले राम ने आमरण अनशन किया। आठ दिन बाद मुख्यमंत्री ने फिर बात की। मांगें लागू कर दीं और अनशन समाप्त करवाया। मुख्य मुद्दा वर्कचार्ज कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा का था। उस दौरान उन समेत सात नेताओं को निलंबित भी किया गया था। वे वर्कचार्ज कर्मचारियों के सवालों पर बार बार अड़ते-लड़ते रहे।

वे आमतौर पर यूनियन के काम में लगे रहते तो उनकी पत्नी नाराज भी होती थी लेकिन वे घर के रोजमर्रा के कामों के लिए उदासीन ही रहते थे। उनमें वर्कचार्ज कर्मचारियों के हितों की रक्षा की गहरी भावना थी। (सौजन्य: ओम सिंह अशफाक)

लेखक सत्यपाल सिवाच ।

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