रााज्यसभा में ‘जल्दबाजी’ में विधेयक पारित होने पर माकपा सदस्य ने जताई चिंता
नयी दिल्ली। माकपा के राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास ने सोमवार को उच्च सदन में बिना पर्याप्त चर्चा और जल्दबाजी में विधेयक पारित किए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
सभापति के तौर पर सी. पी. राधाकृष्णन को, उनके कामकाज के पहले दिन बधाई देते हुए ब्रिटास ने आग्रह किया कि विपक्षी दलों को चर्चाओं के दौरान अपने विचार रखने का पूरा अवसर मिलना चाहिए।
उन्होंने कहा, “आपको वामपंथी विचारधारा और वाम दलों पर भी ध्यान देना चाहिए।”
ब्रिटास ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2019 से 2024 के बीच राज्यसभा में 34 प्रतिशत विधेयक एक घंटे से कम समय में चर्चा के बाद पारित हुए, जबकि लगभग 60 प्रतिशत विधेयक दो घंटे से कम चर्चा में ही पारित हो गए।
उन्होंने पूछा, “क्या यही वह प्रक्रिया है जिसके खिलाफ डॉ. बी. आर. आंबेडकर ने जल्दबाजी और बिना विचार-विमर्श वाले कानून बनाने को लेकर चेताया था?”
उन्होंने कहा कि जब हर कोई संसद में बहस के गिरते स्तर को लेकर चिंता जता रहा है, तब सभापति की “बाध्यकारी जिम्मेदारी” है कि वह सदन में बहस की गुणवत्ता को बहाल करें। ब्रिटास के अनुसार, “हम 135 बैठकें प्रति वर्ष से घटकर अब 55 दिनों के स्तर पर पहुँच गए हैं।”
ब्रिटास ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र दो स्तंभों पर टिका है— एक, कार्यपालिका की विधायिका के प्रति जवाबदेही और दूसरा विपक्ष। उन्होंने कहा “हमें कम से कम अपनी बात रखने का अवसर तो मिलना चाहिए। वैसे भी सत्तापक्ष को अपनी बात मनवाने का अधिकार है।”
उन्होंने बताया कि पिछले पाँच वर्षों में संसद के दोनों सदनों में कई बार सांसदों को निलंबित किया गया। दो वर्ष पहले शीतकालीन सत्र में 146 सांसद निलंबित हुए थे और महत्वपूर्ण विधेयक विपक्ष की अनुपस्थिति में ही पारित कर दिए गए।
कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री और जदयू सांसद रामनाथ ठाकुर तथा समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान भी चर्चा में शामिल हुए।
खान ने कहा कि सदन की कार्यवाही, विशेषकर निजी सदस्यों के कामकाज का समय लगातार कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि सदस्यों द्वारा दिए गए नोटिस स्वीकार नहीं किए जाते और कई मंत्रालय प्रश्नों को अनुचित कारणों से खारिज कर देते हैं।
खान ने पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को विदाई देने का अवसर प्रदान करने का भी आग्रह किया।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि राज्यसभा में बहस और संवाद का स्तर गिर रहा है और इसमें संतुलन लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि विधेयक दो घंटे से कम चर्चा में पारित हो रहे हैं या हंगामे के बीच पारित किए जा रहे हैं, तो इसके लिए जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है।
राकांपा (शरद पवार) की सांसद फौज़िया खान ने आग्रह किया कि सदन में महिला सदस्यों के बोलने के समय का आकलन किया जाए। उन्होंने कहा, “मैं अनुरोध करती हूँ कि जो महिलाएँ सदन में हैं, उन्हें बोलने का कम से कम 33 प्रतिशत समय सुनिश्चित किया जाए।”
