श्रम कानून नियोक्ताओं के हित में, केवल संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को होगा लाभ

श्रम कानून नियोक्ताओं के हित में, केवल संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को होगा लाभ

श्रम मामलों के विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा की राय

कहा- इस कानून से देश के लगभग 61 करोड़ कामगारों में से संगठित क्षेत्र के केवल 15 प्रतिशत कर्मचारियों को ही लाभ होगा

नयी दिल्ली। श्रम मामलों के विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि नई श्रम संहिता में ‘फिक्स्ड टर्म’ कर्मचारियों की श्रेणी में समयसीमा का जिक्र नहीं होना और श्रम निरीक्षकों की कमी जैसी खामियां नये श्रम कानून को श्रमिकों के बजाय नियोक्ताओं के हित में बनाती हैं। साथ ही इस कानून से देश में काम कर रहे लगभग 61 करोड़ कामगारों में से संगठित क्षेत्र में कार्यरत केवल 15 प्रतिशत कर्मचारियों को ही लाभ होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि अब कंपनियां अपने कई कार्यों के लिए ‘कान्ट्रैक्टर’ के जरिये कर्मचारी लेती हैं। हालांकि, ऐसे मामलों में इन कर्मचारियों का मूल नियोक्ता वह है जहां वह काम करता है। लेकिन असल में वह कानून के तहत कांट्रैक्टर या ठेकेदार का ही कर्मचारी है और सीधे नियुक्त न होने वाले इस कर्मचारी के बारे में नई श्रम संहिता कुछ नहीं कहती है।

हालांकि, मानव संसाधन सेवाएं देने वाली कंपनी रैंडस्टैड इंडिया के जनरल काउंसल डॉ. सचिन बिराज ने कहा, ‘‘नई श्रम संहिताओं का कार्यान्वयन भारत के प्रतिभा परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक कदम है। श्रम संहिताएं सभी प्रकार के अनुबंधित और निश्चित अवधि के श्रमिकों को सार्थक लाभ प्रदान करती हैं और यह भारत के श्रम ढांचे में सबसे प्रगतिशील बदलावों में से एक है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘नए ढांचे के तहत, संगठित क्षेत्र के अनुबंध पर काम करने वाले कामगारों के लिए अधिक मानकीकृत और पारदर्शी रोजगार शर्तें होने की संभावना है। हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि संबंधित राज्य सरकारें लागू प्रावधानों को अधिसूचित और कार्यान्वित करें। वेतन की एक समान परिभाषा यह सुनिश्चित करती है कि अनुबंधित श्रमिक अब अधिक पीएफ बचत कर सकेंगे और निश्चित अवधि के लिए नियुक्त कर्मचारी सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत बनाए गए नियमों के अधीन आनुपातिक ग्रेच्युटी के हकदार हों।’’

उल्लेखनीय है कि सरकार ने सभी चार श्रम संहिताओं… वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता, 2020 को हाल ही में अधिसूचित किया है। इस प्रमुख श्रम सुधार के जरिये 29 मौजूदा श्रम कानूनों को तर्कसंगत बनाने की कोशिश की गई है।

पूर्ववर्ती योजना आयोग के अंतर्गत आने वाला इंस्टिट्यूट ऑफ एप्लॉयड मैनपावर रिसर्च (वर्तमान में नीति आयोग के अंतर्गत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ लेबर इकॉनमिक्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट) के महानिदेशक रह चुके मेहरोत्रा ने कहा, ‘‘नई श्रम संहिता में कर्मचारियों को बहुत फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि सभी श्रमिक संगठन (भारतीय मजदूर संगठन) इसका विरोध कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कानून कहता है कि चाहे अनुबंध पर हो या फिर स्थायी कर्मचारी हो, उन पर वेतन और गैर-वेतन नीति एक समान लागू हों। संहिता में पेचीदगी यह है कि …इस कानून में एक नये किस्म की श्रेणी ‘फिक्स्ड टर्म’ यानी निश्चित अवधि के लिए नियुक्त कर्मचारी’ सृजित की गयी है, जिसकी चर्चा बहुत साल से हो रही है। लेकिन फिक्स्ड टर्म में उन्होंने समयसीमा नहीं लिखी है। यानी किसी कर्मचारी को एक साल, दो साल या तीन साल…कितने समय के फिक्स्ड टर्म के लिए कर्मचारी नियुक्त कर सकते हैं। यह बड़ी खामी और गलती है। शायद नियोक्ताओं को इसका फायदा होगा।’’

वर्तमान में मॉस्को स्थित हायर स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स के इंस्टिट्यूट ऑफ एजुकेशन में ‘लीड रिसर्च फेलो’ और ब्रिटेन के बाथ विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में ‘विजिटिंग’ प्रोफेसर मेहरोत्रा ने कहा, ‘‘दूसरी समस्या यह है कि नए कानून के तहत अगर किसी कर्मचारी को आपने सीधे नियुक्त किया है, तो उसको उतनी ही सुविधाएं एवं लाभ देने होंगे, जो आप स्थायी कर्मचारी को देते हैं। यानी आपको समान वेतन देना होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ कंपनियां अभी तक कॉन्ट्रैक्टर के जरिये कुछ कार्यों के लिए कर्मचारी लेती हैं…। वे कॉन्ट्रैक्टर से बोलती हैं कि उसे कर्मचारी चाहिए। कॉन्ट्रैक्टर नियोक्ता को कर्मचारी उपलब्ध कराता है और वह अनुबंधित कर्मचारी हो जाता है। हालांकि, ऐसे मामलों में कर्मचारियों का मूल नियोक्ता वह है जहां वह काम करता है। लेकिन असलियत में कानून के तहत कांट्रैक्टर का कर्मचारी है और कॉन्ट्रैक्टर का कर्मचारी सीधे नियुक्त तो हुआ नहीं और कानून इस विषय में कुछ नहीं कहता।’’

मेहरोत्रा ने कहा, ‘‘कर्मचारियों की समस्या यह है कि जो अभी तक कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट था, उसे स्टैचू बुक (किताबों) में ही छोड़ दिया गया है। इसका अर्थ यह है कि कंपनी के पास अब आजादी है कि वह चाहे तो कांट्रैक्टर से कामगार ले या फिर फिक्स्ड टर्म के लिए सीधे कर्मचारियों को नियुक्त कर ले। फिक्स्ड टर्म की समस्या यह है कि समय अवधि को बड़ी होशियारी से कंपनी पर छोड़ दिया गया है।’’

वहीं बिराज का कहना है, ‘‘नियोक्ता के दृष्टिकोण से, ‘मजदूरी’ की एकीकृत परिभाषा, डिजिटल रजिस्टर, और भर्ती, छंटनी और अनुबंध श्रम के लिए सामंजस्यपूर्ण नियम समय के साथ प्रशासनिक समस्याओं को कम करने और कार्यबल नियोजन में तेजी लाने की मददगार होंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वहीं कर्मचारी के दृष्टिकोण से, विस्तारित सामाजिक सुरक्षा कवरेज, नियुक्ति पत्रों का अनिवार्य जारी होना, व्यापक अवकाश अधिकार, अवसर की समानता पर अधिक जोर, और मजबूत सुरक्षा मानक संबंधित राज्यों द्वारा लागू किए गए विशिष्ट प्रावधानों के अधीन कार्यस्थल पर पारदर्शिता, संरक्षण और गरिमा को बढ़ाते हैं। संहिताओं का उद्देश्य एक अनुपालन परिवेश का निर्माण करना है। उनका वास्तविक प्रभाव राज्य-स्तरीय कार्यान्वयन की गति और निरंतरता पर निर्भर करेगा।’’

मेहरोत्रा ने कहा, ‘‘इसके अलावा, कानून के मुताबिक कंपनी का एक मुख्य कार्य होता है और कुछ गैर-मुख्य कार्य होते हैं। मुख्य कार्य में आप कांट्रैक्टर से कर्मचारी नहीं ले सकते हैं। उसके लिए आपको फिक्स्ड टर्म पर ही कर्मचारी लेने हैं। यह उसी शर्त पर होगा जिस शर्तों पर आप नियमित कर्मचारी को लेते है। आपको नियमित कर्मचारियों को जो सुविधा मिलती है, उसी शर्त पर ही नियुक्त करना होगा…।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अब सवाल है कि मुख्य कार्य और गैर-मुख्य कार्यों को तय कौन करेगा। हास्यास्पद स्थिति यह है कि नियोक्ता निर्णय कर लेगा कि यह उसका प्रमुख कार्य है और यह गैर-प्रमुख कार्य है। हमारे पास श्रम निरीक्षक तो हैं लेकिन इस संदर्भ में चीजें साफ नहीं होने से उनके लिए यह आसान नहीं है।’’

मेहरोत्रा ने कहा, ‘‘दूसरी समस्या यह है कि 2024 के आंकड़ों के अनुसार देश भर में 61 करोड़ कर्मचारी हैं। उनमें मान लिया जाए कि एक- सवा करोड़ उपक्रम संगठित क्षेत्र में पंजीकृत हैं। चार श्रम संहिताओं को लागू करने के लिए, उस पर नजर रखने के लिए श्रम निरीक्षक चाहिए। देश भर में इसके स्वीकृत पद 6,000 हैं लेकिन तीन से साढ़े तीन हजार ही कार्यरत हैं। यानी लगभग आधे निरीक्षक ही काम कर रहे हैं। इसका मतलब है कि इसे लागू पर निगरानी करना काफी मुश्किल है। निगरानी के अभाव में वह मुख्य कार्य को कम कर सकते हैं। गैर-प्रमुख कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सकते हैं।’’

एक सवाल के जवाब में मेहरोत्रा ने कहा, ‘‘चारों संहिताएं ज्यादातर संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों पर लागू होती हैं। संगठित क्षेत्र वे हैं जो पंजीकृत है और जहां 10 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं। इनकी हिस्सेदारी 61 करोड़ कागारों में केवल 15 प्रतिशत है। यानी 85 प्रतिशत श्रमिक गैर-पंजीकृत इकाइयों में हैं। ऐसे में 85 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए इसे लागू करना मुश्किल है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ सामाजिक सुरक्षा संहिता में 100 से ज्यादा उपबंध हैं। केवल दो-तीन उपबंध असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के बारे में हैं। इसमें एक या दो गिग और प्लेटफार्म कर्मचारियों के लिए है। बाकी अनुबंध कर्मचारियों के लिए है। यानी 15 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए ज्यादातर कानून बना है। असंगठित क्षेत्र यानी 85 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए दो-तीन अनुबंध हैं। इससे सरकार की गंभीरता का पता चलता है।’’

यह पूछे जाने पर श्रम संहिता में कुल वेतन का 50 प्रतिशत ‘मूल वेतन’ किए जाने का लाभ क्या कर्मचारियों को मिलेगा, मेहरोत्रा ने कहा, ‘‘पहले कोई बंदिश नहीं थी कि कितना मूल वेतन दे और कितना भत्ते में दे। लेकिन अब कानून के तहत इसे लागू किया गया है। मूल वेतन में कम ही मिल रहा था, बाकी सब आपको ऊपर से पैसा मिल रहा था तो उसे कर के रूप में लोग बचा रहे थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जाहिर तौर पर इसका मतलब है कि इसके जरिये सरकार की मंशा है कि भविष्य निधि में पैसा जाए। नियोक्ता और कर्मचारी दोनों का योगदान बढ़ेगा। सरकार सोचती है कि इसके जरिये बचत दर बढ़ेगी और फिर जब बचत बढ़ेगी तो सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा। इसके पीछे उद्देश्य यही है। फिर जब मूल वेतन बढ़ेगा तो कर योगदान भी बढ़ेगा।’’

बिराज ने कहा, ‘‘पचास प्रतिशत वेतन नियम अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सुधारों में से एक है। इसे संगठित क्षेत्र के पात्र कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभों में अधिक एकरूपता लाने के लिए तैयार किया गया है। इसके जरिये श्रम संहिता यह सुनिश्चित करती है कि अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारी दीर्घकालिक सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में अधिक बेहतरी तरीके से भाग लें। हालांकि पीएफ में अधिक कटौती अल्पावधि में ‘टेक-होम’ आय को मामूली रूप से कम कर सकती है, लेकिन यह उनकी सेवानिवृत्ति बचत को मजबूत करती है और ग्रेच्युटी भुगतान में सुधार करती है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह बदलाव विशेष रूप से निश्चित अवधि के कर्मचारियों के लिए प्रभावशाली है, जो अब केवल एक वर्ष की सेवा के बाद ग्रेच्युटी के लिए पात्र हैं। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है।

एक अन्य सवाल के जवाब में बिराज ने कहा, ‘‘इसका रोजगार पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। विशेष रूप से भारत की ‘ब्लू-कॉलर’ और गिग अर्थव्यवस्था में। ये सुधार एक अधिक संगठित, सुरक्षित और भरोसेमंद श्रम बाजार का निर्माण करते हैं, जिससे कंपनियों को अधिक आत्मविश्वास के साथ नियुक्तियां करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।’’

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