कविता
बाकी सब बढ़िया है
ओमप्रकाश तिवारी
भारत में आर्थिक मंदी है
बाकी सब बढ़िया है
बिना वजह हजारों लोग
अपने घर में कैद हैं
बाकी सब बढ़िया है
बिना वजह किसी भी जगह
किसी को भी पीट-पीटकर
भीड़ मार रही है जान से
बाकी सब बढ़िया है
मुफ्त में मिला उज्ज्वला चूल्हा
रखा है एक कोने में
महीनों से दिहाड़ी नहीं मिली
कहां से सिलिंडर भराया जाय
बाकी सब बढ़िया है
पिछले साल बने शौचालय की
अब गिर गयी है सभी दीवार
पता चला रेत में रत्ती भर भी
नहीं डाला गया था सीमेंट
बाकी सब बढ़िया है
खेत को चर रहे आवारा गोवंश
बाकी सब बढ़िया है
सरकारी अस्पताल में
डॉक्टर है न ही दवाई
बाकी सब बढ़िया है
मिड डे मील में बच्चों को
मिल रही है नमक रोटी
बाकी सब बढ़िया है
गिर गयी है सरकारी स्कूल की छत
बाकी सब बढ़िया है
कालेज दूर होने के कारण
छूट गयी है बिटिया की पढ़ाई
बाकी सब बढ़िया है
इंजीनियरिंग पढ़कर बेटा
घूम रहा है बेरोजगार
बाकी सब बढ़िया है
फैक्ट्री बंद हुई छूट गयी है
हजारों लोगों की नौकरी
बाकी सब बढ़िया है
बहुत तनाव है दो मोहल्लों में
फिर भी निकली उनकी यात्रा
सुरक्षा बलों की मौजूदगी में
चली गयी दस बीस की जानें
बाकी सब बढ़िया है
पुराने स्कूटर का झँपू भैया ने
चालान कटवाया है 40 हजार का
बाकी सब बढ़िया है
गड्ढे वाली सड़कों में गिरकर
टूट गयी है ननकू चाचा की टांग
बाकी सब बढ़िया है
एंबुलेंस नही मिलने से परसों
चली गयी चीची की दादी की जान
बाकी सब बढ़िया है
दिल्ली जाने के लिए ट्रेन में
टिकट नहीं मिल रहा गोबर को
बाकी सब बढ़िया है
धनिया की विधवा पेंशन
एक साल से नहीं मिली है
बाकी सब बढ़िया है
रमधन के खाते में नहीं आयी
किसान योजना की दूसरी क़िस्त
बाकी सब बढ़िया है
आयुष्मान में नाम लिखवाने को
यहां वहां भटक रही सरपतिया
बाकी सब बढ़िया है…