आखिर क्यों पड़ी भारत बंद बुलाने की जरूरत

आखिर क्यों पड़ी भारत बंद बुलाने की ज़रूरत

 मुनेश त्यागी

आज हमारा देश विभिन्न समस्याओं से घिरा हुआ है। किसानों की हालत बेहद खराब है, मजदूरों पर लगातार हमले हो रहे हैं, बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है, गरीबी लोगों का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है, अधिकांश विभागों में आकंठ भ्रष्टाचार मौजूद है, कमर तोड़ महंगाई से आम जनता परेशान है, किसानों की फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है, मजदूरों पर लगातार हमले हो रहे हैं, श्रम कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है, पढ़े-लिखे नौजवानों को रोजगार नहीं मिल रहा है, शिक्षा और स्वास्थ्य गरीब जनता से दूर होते चले जा रहे हैं, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है, संविधान में दी गई ये सारी सुविधाएं, जैसे दूर के ख्वाब बनकर रह गई हैं। लगातार मांग करने के बावजूद भी जनता की समस्याओं को दूर नहीं किया जा रहा है, बल्कि उन पर सांप्रदायिक, जातिवादी और पूंजीवादी हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और अपने वाजिब हक मांगने वालों को तरह-तरह से डराया धमकाया जा रहा है और उन पर भयंकर हमले किए जा रहे हैं।

सरकार, मजदूरों को आधुनिक गुलाम बनने पर आमादा है और उनको गुलाम बनाने के लिए चार श्रम संहिताएं लेकर आई है। अमेरिका के दबाव में सरकार किसान विरोधी नीतियों को अपनाने पर आमादा है। विरोध करने के बावजूद भी सरकार अपनी किसान विरोधी, मजदूर विरोधी और जन विरोधी गतिविधियों और नीतियों से पीछे हटने को तैयार नहीं है। इन सब समस्याओं को लेकर अखिल भारतीय स्तर पर भारत की केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों ने 9 जुलाई 1925 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। 11 साल पहले सरकार का नारा था… “सबका साथ, सबका विकास”, मगर आज हकीकत यह है कि “कुछ का विकास, अधिकांश का विनाश।” इसी बीच सांप्रदायिक नफरत और हिंसा का माहौल और अंधविश्वासों को बढ़ाने और जनता की एकता तोड़ने का अभियान जारी है। अधिकांश सरकारी अधिकारी जैसे जनता के नहीं, बल्कि सरकार के एजेंट होकर रह गए हैं। इन्हीं सब समस्याओं को लेकर, अखिल भारतीय भारत बंद की मांगें एकदम जायज हैं और उनका हर कीमत पर, हर तरह से समर्थन किया जाना चाहिए। हालात बता रहे हैं कि अब गरीब, पीड़ित, शोषित, परेशान और अभावग्रस्त जनता की एकजुट कार्यवाहियां ही, इस अमीरों की सरकार को, जन विरोधी नीतियां वापस लेने पर मजबूर कर सकती हैं। भारत के अधिकांश किसानों मजदूरों और बुद्धिजीवियों ने इस आम हड़ताल का समर्थन किया है।

किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, वकीलों और तमाम मेहनतकश जनता की इन समस्याओं को हमने पांच हिस्सों में बांटा है। इसमें स्थानीय स्तर पर दूसरी मांगें भी शामिल की जा सकती हैं। हमारा मानना है कि हमें इन समस्याओं का एक मांगपत्र बनाकर, जनता के बीच जाना चाहिए और उसे उनकी समस्याओं से अवगत कराना चाहिए और हमें उनसे इस भारत बंद की हड़ताल को सफल बनाने का निवेदन करना चाहिए। जब हम जनता की समस्याओं को लेकर उनके बीच जाएंगे, उनसे विचार विमर्श करेंगे, तभी जनता इन सांप्रदायिक, जातिवादी और पूंजीपतियों के जाल और बहकावे से बाहर निकल पायेगी। क्योंकि दुनिया का इतिहास बताता है कि यहां बिना लड़े कुछ नहीं मिलता। यहां जो कुछ भी मिला है, वह संघर्ष के आधार पर ही मिला है। आजादी, संविधान और बुनियादी अधिकार, हमें निरंतर संघर्ष के आधार पर ही मिले हैं। ये मांगे इस प्रकार हैं…

 

मेहनतकशों और मजदूरों की मांगें

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1. मजदूरों को आधुनिक गुलाम बनाने वाली मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं को तुरंत वापस लिया जाए।

2.सभी विभागों में तुरंत भर्तियां सुनिश्चित करो, 3.सार्वजनिक उद्योगों का निजीकरण बंद किया जाए।

4.न्यूनतम वेतन 26000 रुपए महीना तय की जाए।

5.समान काम का समान वेतन निश्चित करो।

6. 8 घंटा काम निश्चित करो।

7.प्रवासी मजदूरों के लिए कानून लागू करो।

8.असंगठित क्षेत्र में मजदूरी वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा लागू करो।

9.आशा, आंगनवाड़ी, आईसीडीएस, मिड डे मील कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी घोषित करो।

10.मनरेगा में 200 दिन काम और ₹600 रोज मजदूरी नियत करो।

11.कारखाना और उद्योग की जमीनों पर उद्योग स्थापित करो।

12.खाली पड़े पदों पर तुरंत भर्ती करो।

13.खत्म किए गए जरूरी पदों पर तुरंत नियुक्तियां करो।

14.अस्थाई पदों की जगह ठेकेदारी प्रथा पर तुरंत प्रभावी रोक लगाओ।

15.पुराने श्रम कानूनों को प्रभावी तरह से लागू करो।

16.वर्षों से कम कर रहे गैस्ट टीचर्स को नियमित करो और और उन्हें स्थाई टीचर के समान वेतन दो।

17.बैंकों का निजीकरण बंद करो।

18.बैंक कर्मियों की समस्याओं को तुरंत दूर करो।

19. वर्षों से खाली पड़े करोड़ों पदों पर तुरंत स्थाई नियुक्तियां की जाएं।

 

किसानों की मांगें

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20.सभी किसानों के कृषि कर्ज माफ करो।

21.सभी फसलों के लिए न्यूनतम सहायक मूल्य यानी एसपी कानून बनाओ।

21A.किसानों की फसलों का समय से तुरंत भुगतान करो।

22.किसानों द्वारा प्रयोग किया जा रहे खाद्य, पानी, बिजली और उर्वरकों के बढ़ते दामों पर प्रभावी रोक लगाई जाए।

23.बिजली का निजीकरण बंद करो।

24.स्मार्ट मीटर लगाने का अभियान बंद करो।

25.जंगली जानवरों के हमलों पर प्रभावी रोक लगाओ।

26. किसानों की फसलों को बर्बाद करने वाले पशुओं को तुरंत पकड़ा जाए और बर्बाद फसलों का मुआवजा किसानों को दिया जाए।

 

आम जनता की समस्याएं

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27.सारी जन विरोधी नीतियां वापस लो।

28.अमीरों पर तुरंत प्रभावी टैक्स लगाओ।

29.कमर तोड़ महंगाई पर कारगर रोक लगाओ।

30.सबके लिए अनिवार्य रोजगार की गारंटी दो।

31.पर्यावरण का नाश करने वाली प्रणाली को खत्म करो।

32.सार्वजनिक यातायात प्रणाली लागू करो।

33.आदिवासियों और अनुसूचित जनजातियों को जमीन से उजाड़ना बंद करो।

34.महिला सुरक्षा की गारंटी दो और दोषियों को समय से कारगर सजा दो।

35.स्कूलों का मर्जर/खात्मा अभियान बंद करो।

36.पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करो।

37.राष्ट्रीय स्तर पर सभी बुजुर्गों को महीनावार पेंशन दो।

38.सबको मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य का तुरंत इंतजाम करो।

39.शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली का निजीकरण और मुनाफाखोरी बंद करो।

40.समाज में फैली गरीबी का तुरंत खात्मा करो।

41.वादकारियों को सस्ता और सुलभ न्याय मोहिया कराओ।

42.सभी कार्यालयों और विभागों में फैले आकंठ भ्रष्टाचार को समाप्त करो और भ्रष्टाचारियों को तुरंत कड़ी सजा दो।

43.अंधविश्वास फैलाने वाली तमाम ताकतों पर प्रभावी रोक लगाओ।

44.पूरे समाज में ज्ञान विज्ञान की संस्कृति का प्रचार प्रचार करो।

45.समाज में फैले तमाम तरह के अंधविश्वासों को खत्म करने का अभियान शुरू करो।

 

वकीलों की मांगें

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46.वकीलों का सुरक्षा कानून पास करो।

47.बुजुर्ग वकीलों को ₹15000 महीना पेंशन का इंतजाम करो।

48.सभी अधिवक्ताओं को परिवार सहित मेडिकल बीमा दो।

49.सभी वकीलों को चेंबर की व्यवस्था करो।

50.मुकदमों के अनुपात में जज और कर्मचारी नियुक्त करो।

51.मुकदमों के अनुपात में नई अदालतें बनाओ।

52.सभी न्यायालयों में सक्षम न्यायिक अधिकारी नियुक्त करो।

53.जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए, उच्च न्यायालय की बैंच बनाओ।

54. संविधान और सब तमाम तरह की आजादियों पर किए जा रहे हमले बंद करो।

55.न्यायपालिका की आजादी पर मनमानी हमले और हस्तक्षेप तुरंत बंद करो।

56.जनता के जनतंत्र पर तमाम तरह के “धन-तंत्र के हमलों” का खात्मा करो।

57.चौथे स्तंभ यानी मीडिया की गुलामी खत्म करके उसकी आजादी बहाल करो।

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