जब 10 दिन तक न देसी चाय मिले …न आलू ..न रोटी 

यात्रा वृत्तांत

जब 10 दिन तक न देसी चाय मिले …न आलू ..न रोटी

…मसाले, दूध, दही, पनीर और घी भी नहीं तो …

संजय श्रीवास्तव

वियतनाम से लौटने के बाद भी ऐसा लगता है कि वहां की कहानियां तो अब भी दिमाग में बिखरी पड़ी हैं. …नेहरू और हो ची मिन्ह की दोस्ती…55 साल मृत्यु के बाद भी हो ची मिन्ह का रखा हुआ पार्थिव शरीर….कॉफी कल्चर…मसाज पार्लर…आदि आदि आदि। लेकिन एक भारतीय को वहां जो सबसे ज्यादा अखरता है..वो देसी चाय का नहीं मिलना। आलू से लेकर दूध, दही और पनीर से दूर रहना…

अब तक की उम्र में शायद कभी ऐसा नहीं हुआ होगा कि मैं दूध वाली देशी चाय को एक दिन भी छोड़ा होगा। रोज कई तो हो ही जाती हैं। लेकिन दस दिनों तक ये देशी चाय वहां नसीब नहीं हुई। वहां तरह तरह की कॉफी तो खूब मिल रही थी लेकिन ये चाय कहीं मिली।

इसी तरह पूरी जिंदगी में कभी ऐसा दिन नहीं निकला होगा जब किसी ना किसी तरह आलू का सेवन नहीं हुआ हो। गेहूं की रोटी के बगैर रहने का तो सवाल ही नहीं। उत्तर भारतीयों की जिंदगी में दूध, पनीर, दही नियामत है… तकरीबन हर भारतीय के जीवन में खाने के ये तौर तरीके मुझको लगता है कि कमोवेश अनिवार्य ही नहीं हैं… इनके बगैर हम रह कहां पाते हैं…फिर अगर घी तेल और पारंपरिक मसालों के बगैर कई दिन गुजारने हों तो मूड ही खराब हो जाएगा।

तो मेरे साथ ये दस दिनों तक लगातार हुआ। कहां – वियतनाम में। और हफ्ते भर बाद मैं ये सोचने लगा यार ये खाना तो घी-तेल मसाले वाले खाने से ज्यादा बेहतर है। अब ऐसा ही खाना खाऊंगा लेकिन भारत लौटते हुए उसी सबकुछ पुरानी आदत वाला खाना…मस्त देशी देर तक उबली हुई चाय। लेकिन सच कहूंगा कि दस दिनों की वियतनाम यात्रा में ना तो कभी पेट खराब हुआ और ना ही गैस ने पेट के गुब्बारे फुलाए। पाचन तंत्र मुस्कुराता हुआ लगा।

तो वियतनाम में न तो आलू खाया जाता है और न पनीर और न ही गेहूं…अपवाद बेशक है…डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन वहां होता ही नहीं, क्योंकि वियतनामी ग्लूकोज को पचाने में खुद को मुश्किल में पाते हैं।

अभी दो चार पहले ही दिन में मेरी एक पूर्व सहयोगी का वाट्सएप मैसेज गिरा, आप तो वियतनाम घूमकर आए है, अब मेरे भैया-भाभी वहां गए हैं, वहां वो पहले दिन शाकाहारी खाने को तरस गए। खाने में अजीबगरीब चीजें मिल रही हैं, पोर्क से लेकर बीफ तक…शाकाहारी खाना तो नसीब ही नहीं हुआ कहीं। जूस और फ्रूट से गुजारा किया किसी तरह… फिर सवाल किया ..सर, आप कैसे वहां दस दिन रह लिए। खाने का कैसा रहेगा वहां, बता दीजिए, जिससे मैं भैया-भाभी को बता दूं।

वियतनाम जाने वाले भारतीयों के लिए आमतौर पर पहला दिन थोड़ा शॉक देने वाला रहता है, क्योंकि आपके लिए सबकुछ अपरिचित होता है। खाने की चीजों का और सही ठिकाने का अंदाज नहीं होता। मुझको याद है मेरा पहला दिन भी ऐसा ही निकला था। शाम को हम लोग एक रेस्टोरेंट गए। वहां वेज के नाम पर हमने सूपी नूडल्स कहे जाने वाले फो को लिया। ऊबले चावल और वहां की एक शाकाहारी सब्जी ली। सभी का टेस्ट बिल्कुल अलग था। मसाला कम। घी-तेल नहीं।

वियतनाम में आलू और पनीर का सेवन नहीं के बराबर होता है। ये दोनों उनकी पारंपरिक भोजन शैली में शामिल नहीं हैं। इसके पीछे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा कुछ व्यावहारिक कारण हैं। वैसे भारत में आलू खाने का इतिहास मुख्यतौर पर 200 सालों का ही है। पुर्तगाली इसे लेकर गोवा आए थे। वहां से फैला। शुरू में इसे विदेशी सब्जी मानकर इसका विरोध भी हुआ। अछूत माना गया लेकिन अब भारत में आलू सब्जियों का राजा बन चुका है।

पनीर को लेकर भी कई तरह की बातें हैं। लेकिन ये प्रचलित हुआ मुगल दौर में। हालांकि भारत और खासकर उत्तर भारत में पनीर की दीवानगी की कहानी कुछ दशकों से ज्यादा की नहीं है।

वियतनाम में गेहूं भी नहीं खाते। कहीं चपाती नहीं खाते। ब्रेड जरूर मिल जाती है। कुछ भारतीय रेस्तरां जरूर रोटी खाने को मिल सकती है और अब पिज्जा और बर्गर चैन के कारण इसे खाने का चलन वियतनाम में बढ़ रहा है। लेकिन रोजाना के रसोई खानपान में गेहूं की मौजूदगी नहीं है। मक्खन, घी, तेल भी नहीं है। वियतनाम के अपने मसाले हैं। लहसुन खूब खाते हैं। मिर्च का सेवन है। चावल प्रचुर मात्रा में होता और खाया जाता है। वियतनाम में चावल और नूडल्स मुख्य कार्बोहाइड्रेट स्रोत हैं।

वियतनाम की भोजन संस्कृति में डेयरी उत्पाद आम नहीं हैं; यहां के अधिकांश वयस्क लैक्टोज असहिष्णु होते हैं, इसलिए दूध व दूध से बने उत्पाद जैसे पनीर, दही, आदि का इस्तेमाल बहुत सीमित हैं। ऐसा ही चीन, थाईलैंड और इंडोनेशिया में भी है। पनीर को वियतनाम रसोई को विदेशी पदार्थ माना जाता है। ये आमतौर पर ना तो मिलता है और ना ही खाया जाता है। चाय मिलती है लेकिन काली वाली चाय, ग्रीन टी, जैस्मिन टी…

ताजे हरे पत्तियों वाली सब्जियां, ब्रोकली, गोभी, बंद गोभी, प्याज खूब खाते हैं। नानवेज में सीफूड से लेकर पोर्क और बीफ तक। चिकन और मटन मिलेगा लेकिन पीर्क और बीफ काफी ज्यादा। वियतनामी भोजन में ताज़गी और हल्के स्वाद को प्राथमिकता दी जाती है, उबले और बहुत हल्के मसाले वाले खाने ज्यादा होते हैं।

हनोई के जिस होटल स्पलेंडिड होटल एंड स्पा में मैं ठहरा था, वहां के रिसेप्शनिस्ट एंड्यू ह्यू से मेरी दोस्ती हो गई। उसने बताया कि हर वियतनाम वासी हफ्ते में एक दिन पूरी तरह शाकाहार अपनाता है। उस दिन हम लोग केवल फल, शाकाहार और जूस पर रहते हैं। इसके धार्मिक कारण हैं। ऐसा भी नहीं है कि वियतनाम में शाकाहारी हैं नहीं हैं लेकिन अपेक्षाकृत कम। करीब 6 – 7% लोग स्थायी या नियमित रूप से शाकाहारी भोजन करते हैं।

(मैं मस्तमौला और वर्तमान में रहने वाला शख्स हूं…पिछले 10-15 दिनों में चढ़ते ब्लड प्रेसर ने दोस्ती कर ली… लेकिन अब सामान्य पटरी पर लौट रहा है… ऐसे में यादें और यात्रा की पगडंडियों को लफ्ज देना और साथ में कुछ अनगढ़ रेखाचित्रों को बनाना रिलैक्स तो करता है)
संस्मरण और फोटो संजय श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *