हिन्दी आलोचना में योगदान के लिए विमल वर्मा को याद किया
कुरुक्षेत्र में मार्क्सवादी आलोचक और सम्पादक विमल वर्मा की स्मृति में विचार गोष्ठी का आयोजन
कविता गोष्ठी में कवियों ने सुनाई विचारोत्तेजक कविताएं
जनवादी लेखक संघ कुरुक्षेत्र द्वारा विमल वर्मा स्मृति सभा का आयोजन स्थानीय ग्रेवाल अध्ययन संस्थान में किया गया l इस के बाद कविता-पाठ और जलेस कुरुक्षेत्र के लिए एक संचालन समिति का गठन हुआ। इस अवसर पर विमल वर्मा के परिवार के सदस्यों (आलोक वर्मा, सम्यक वर्मा, शक्ति वर्मा और उनके पारिवारिक मित्र अलका नैथानी) के साथ-साथ कुरुक्षेत्र, करनाल, अंबाला, हिसार,मोहाली( पंजाब) से लेखक सम्पादक, पत्रकार,अध्यापक और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे। श्रद्धांजलि के बाद विचार गोष्ठी की शुरुआत जनवादी लेखक संघ हरियाणा के अध्यक्ष जयपाल ने की ।
जयपाल ने विमल वर्मा के आलोचना-कर्म पर बोलते हुए कहा कि वह एक मार्क्सवादी चिन्तक थे। उनकी दृष्टि वैश्विक थी। उन्होंने हिंदी की रचनाओं की आलोचना इसी दृष्टि से की। उन्होंने नागार्जुन, आलोक धन्वा, नवल और रमेश उपाध्याय जैसे देश के बड़े लेखकों के साथ-साथ उदीयमान लेखकों पर भी लिखा। जलेस हरियाणा के पूर्व अध्यक्ष ओम सिंह अशफ़ाक ने कहा कि विमल वर्मा संश्लिष्ट शैली में लिखते थे । इसका कारण यह था कि समाज और साहित्य की जटिलताओं को सरलीकृत फार्मूले में व्यक्त करना बहुत बार कठिन हो जाता है या फिर सरलीकरण हो जाता है। अशफ़ाक जी ने उन्हें आलोचकों का आलोचक बताकर उनकी आलोचकीय प्रतिभा की सराहना की। विमल वर्मा के पौत्र सम्यक वर्मा ने बताया कि उनके दादा जी हरियाणा में मनमोहन, शुभा और डाक्टर ओम प्रकाश ग्रेवाल के गहरे मित्र थे । इसके अतिरिक्त नागार्जुन, रामधारी सिंह दिनकर,शिव कुमार मिश्र, नामवर सिंह, रमेश उपाध्याय,आलोकधन्वा….आदि के साथ विमल वर्मा की अच्छी मित्रता थी।
विमल वर्मा के बेटे आलोक वर्मा ने उनके अध्ययन, लेखन और जीवन शैली को विस्तार से चर्चा की। उन्होंने विमल वर्मा के आलोचनात्मक लेखन पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होने बताया कि उनके जीवन की शुरुआत कविता से हुई थी l उन्हें ख्वाजा अहमद अब्बास और कैफ़ी आज़मी के साथ कविता पढ़ने का अवसर मिला। उनका जीवन सामाजिक/साहित्यिक संघर्ष में ही बीता। उन्होंने सामयिक, सामयिक परिदृश्य और चंद्रयान, धूमकेतु पत्रिकाओं का संपादन किया और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के पश्चिम बंगाल के मुखपत्र स्वाधीनता के साथ जुड़े रहे। उनका जीवन भाग दौड़ में ही बीता। विमल वर्मा के सामाजिक और साहित्यिक जीवन पर आधारित यह रचनात्मक-संवाद सभी उपस्थित रचनाकारों के लिए बहुत प्रेरणादायक रहा । मंगत राम शास्त्री ने कहा कि विमल वर्मा हमारे प्रेरणा के स्रोत हैं।
इस मौके पर आयोजित काव्य गोष्ठी में कविता पाठ करते हुए सबसे पहले कवि दीपक वोहरा ने अपनी कविता सुनाई- यही समय है, सही समय है, जब हम कुछ कर सकते हैं, जैसे अपने हक की बात कर सकते हैं, रोजी-रोटी के लिए आवाज उठा सकते हैं।
कवि अरुण कुमार कैहरबा ने कबीरा शैली में गजल पढ़ते हुए कुछ यूं फरमाया-दुनिया होगी तबाह कबीरा, फैल रही अफवाह कबीरा। गप्पबाजी को सच ना मानना, देता सबको सलाह कबीरा। अंधविश्वास और बेतुकेपन से, मानवता रही कराह कबीरा।
डॉ. सुभाष गर्ग पार्थ ने माँ को समर्पित अपनी ग़ज़ल में फरमाया- एक दिन काफ़ी नहीं कुर्बान पूरी जिंदगी, माँ निभाती तुम रही, ईमान पूरी जिंदगी।
जींद से आए शायर मंगतराम शास्त्री ने अपनी हरियाणवी गज़ल सुनाई- माणस आज भरया सै बाहर तै पूरा, भीत्तर आळे सारे कमरे खाल्ली सैं। जनवादी लेखक संघ के राज्य महासचिव सरदानंद राजली की कविता कुछ यूं थी- एक दिवार क्या खिंची मेरे आंगन के बीच, एक घर दो मुल्कों में तब्दील हो गया। मनजीत भावड़िया ने कविता पाठ किया- मेरे मन में सब की चिंता, जबर भरोटे आळा सूं, दिन रात कमाऊं मैं फेर, भी थाळी लोटे आळा सूं। कवि जयपाल ने कहा- युद्ध केवल दूसरे देशों के खिलाफ नहीं होता, युद्ध उनके खिलाफ होता है, जो दुनियाभर के बच्चों से प्यार करते हैं।
इस मौके पर शक्ति वर्मा, अलका नैथानी, यशोदा, प्रमोद चौधरी, हरपाल गाफिल, नरेश सैनी, डॉ. जसविन्द्र सिंह, डॉ. सुनील थुआ, नरेश दहिया, आरएस चौधरी, देवदत्त आदि साहित्यकार प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
(रिपोर्ट- जयपाल/अरुण कैहरबा)