राजेश भारती की तीन कविताएं

राजेश भारती की तीन कविताएं

1.

बंदरबांट

 

सबने हिस्से बाँट लिए,

पेड़ की छाया,

नदी का पानी,

हवा का झोंका।

 

मैं खड़ा रहा,

हाथ में एक खाली थैला लिए,

जिसमें सिर्फ़ सवाल थे।

 

क्या बाँटा जाए,

जब सूरज सबका है,

और रात किसी की नहीं?

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2

अकेली

 

सेक्स

जब प्रेम बनता है,

दुनिया कहती है:

यह उनका निजी मामला है।

 

और जब

वही देह हिंसा बन जाती है,

तो लोग कहते हैं:

यह परिवार का मसला है।

 

हर बार,

किसी कमरे के कोने में

एक औरत

अपने ही शरीर से बातें करती है

अकेली।

 

**

3

बाप ने कहा—

मेरी नाक कट रही है।

लड़की ने कहा—

मेरा गला कट रहा है।

नाक जीत गई।

कुर्सी के नीचे

हमेशा लाशें होती हैं

 

कभी शत्रु की

कभी मित्र की

कभी अपने ही बेटे की

 

और सबसे ऊपर वाली लाश

उसी की होती है

जो सबसे जोर से चिल्लाता था—

कि यह कुर्सी मेरी है!

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