दुनिया की शांति,सौहार्द और सार्वभौमिकता को बचाने का कलात्मक आशावाद है थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन !

सत्य,समग्र ,सुंदर !

दुनिया की शांति,सौहार्द और सार्वभौमिकता को बचाने का कलात्मक आशावाद है थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन !

– मंजुल भारद्वाज

आज पूंजी,पूंजीवाद से अलग हो सिर्फ़ पूंजी का एकाधिकार चाहती है। उसी का संघर्ष अमेरिका में हो रहा है। एलन मस्क और ट्रंप का यही संघर्ष है।

पूंजी के राज में सिर्फ़ पूंजी की बात होगी। पूंजी के लिए नीतियां बनेंगी। पूंजी का, पूंजी के द्वारा, पूंजी के लिए का राज होगा । पूंजीवाद में भी वही होता है इतना नंगा नहीं थोड़ी बहुत लोकतंत्र, मानवाधिकार, मानवीय मूल्यों का लिहाफ़ ओढ़े रहता है।

पूंजीवाद ने भूमंडलीकरण के नाम पर धर्मांध,झूठे, उजड और धूर्त लोगों को सत्ता पोषित कर लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का मज़ाक बना दिया है जहां न्यायव्यवस्था लोगों के साथ न्याय नहीं करती अपितु पूंजीवाद के हक़ में फैसले सुनाती है।

दूसरी ओर पूंजीवाद बरक्स साम्यवाद के नाम पर तानाशाही विक्षिप्त पूंजीवाद का उदाहरण है जहां जनता को जनता होने का अधिकार नहीं है।

दुनिया सभ्यता के नाम पर आज कलंक है। इसका उदाहरण है गाज़ा में हो रहा नरसंहार। कोई कुतर्क इसको न्याय संगत नहीं ठहरा सकता । विकसित देश कैसे अपने स्वार्थ के लिए कत्लेआम कर रहे हैं मासूम बच्चों का । इंसानियत को शर्मसार करने के लिए इससे शर्मनाक क्या हो सकता है?

सबसे बड़ा मज़ाक तो विज्ञान का हो रहा है क्योंकि मूर्छित जनता तकनीक को विज्ञान मान रही है। तकनीक ख़रीद और बेच रही है। एटम बम की धमकी और उपयोग किसी भी देश की सार्वभौमिकता को ध्वस्त करने के लिए काफ़ी हैं। लुटेरा विकसित जग गिद्धों की तरह झुंड में किसी भी देश की सार्वभौमिकता को ध्वस्त कर रहा है। सबसे खतरनाक है टीवी पर लाइव मिसाइलों और लड़ाकू विमानों के नरसंहार का दुनिया मुर्गों की लड़ाई जैसा आनंद ले रही है। कल्पना कीजिए सभ्यता के नाम पर इससे क्रूर क्या हो सकता है?

इस क्रूरता,विध्वंस से बचाने का दर्शन है थियेटर ऑफ़ रेलेवंस । थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन विगत 33 वर्षों से दुनिया में कला सौंदर्य से चैतन्य जगा रहा है।

कला मनुष्य को मनुष्य बनाती है। मनुष्य को इंसान होने का बोध ही कला है। जब मनुष्य में इंसान होने का बोध जागता है तब हिंसा, द्वेष, विकार ध्वस्त हो अहिंसा, सशांति, न्याय ,समता के मूल्यों से लैस विचार जन्मते हैं। जो आत्मबल को विवेक से आलोकित करते हैं।

विवेक विज्ञान को मानवीय कल्याण का माध्यम बनाता है । केवल न्यूटन, आइंस्टाइन के सूत्रों तक विज्ञान सीमित नहीं है अपितु पूरी प्रकृति विज्ञान है। प्रकृति की मात्र चंद प्रक्रियाओं को वैज्ञानिकों ने डिकोड किया है पूरी प्रकृति के विज्ञान को समझना शेष है।

मनुष्य के अंदर आत्महीनता और आत्मबल के बिंदु हैं। आत्महीनता विकारों को जन्म देती है। विकार श्रेष्ठतावाद,एकाधिकार को पालते हैं और दुनिया को बर्बाद करते हैं । सामंतवाद, पूंजीवाद, नस्लवाद, वर्णवाद और साम्यवाद के नाम पर तानाशाही इसके उदाहरण हैं जहां वर्णवादी,हिटलर और ट्रंप जैसे सत्ताधीश दुनिया को तबाह करते हैं।

आत्मबल से विचार जन्मते हैं । विचार से विवेक । विवेक और विचार से मनुष्य विकार मुक्त होता है। विचार दुनिया का निर्माण करते हैं। बुद्ध,गांधी ,महात्मा फुले – सावित्री बाई फुले इसके उदाहरण हैं।

नाटक ने गांधी को सत्य पथ दिखाया । गांधी ने नाटक देखकर सत्य बोलना और जीना सीखा । सत्य समग्र और सुंदर है। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस ने कला की व्याख्या इस प्रकार की है । ART : A Romance with Truth कला सत्य की रूमानियत है। कला सत्य प्रेम है। कला सत्य का शोध है!

सत्य से व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया जब रूबरू होती है तब विकार और आत्महीनता नहीं विचार और आत्मबल पनपते हैं। जो दुनिया को मानवीय और बेहतर बनाते हैं।

थियेटर ऑफ़ रेलेवंस ने विगत 33 वर्षों से कलात्मक सौंदर्य से सत्य का चैतन्य बोध जगाया है। जन सहभाग और सहयोग से एक रंग आंदोलन खड़ा किया है जो मनुष्य को इंसान बनाते हुए मानवीय मूल्यों और दुनिया की सार्वभौमिकता को बचाए रखने का आशावाद है !

थियेटर ऑफ़ रेलेवंस 

सत्य,समग्र,सुंदर !

मंजुल भारद्वाज