थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन ने तोड़ी भ्रांतियां !
मंजुल भारद्वाज
दीमक लगी लकड़ी का सेट बनाम खाली रंगमंच !
नेपथ्य: नाटक सूक्ष्म को स्थूल करने की प्रस्तुति है। इसमें सूक्ष्म है चेतना,विचार,विवेक जो नाट्य पाठ के रूप में सृजित होते हैं।
नाट्य पाठ के इस सृजन को आत्मसात कर मंच पर प्रस्तुत करते हैं कलाकार। कलाकार अपनी विभिन्न अभिनय प्रक्रियाओं से नाट्य पाठ की चेतना और विवेक को दर्शकों से जोड़ते हैं।
इस प्रक्रिया में कल्पनाशक्ति की अहम भूमिका है। जो दर्शक चेतना को नाट्य पाठ के स्पंदन से जोड़ती है। इस स्पंदन संप्रेषण में दर्शक की कल्पना शक्ति बाधित होती है तो नाट्यपाठ का विचार,दृष्टि और विवेक दर्शक तक नहीं पहुंच पाते और नाट्य मंचन एक शारीरिक और भावनिक प्रलाप भर रह जाता है। नाटक भोग वस्तु बन जाता है।
दर्शक कल्पना को बाधित करने का सत्ता षड्यंत्र है सेट । सरकारी ड्रामा स्कूल प्रशिक्षण ने सेट उपयोग को बढ़ावा दिया है। उसे इस तरह रंगकर्मियों के मन में बिठा दिया है कि बिना सेट नाटक ही नहीं हो सकता ।
सेट ने मंच को मूढ़ बना दिया । मंच जब रिक्त रहता है तब शब्द कल्पना की उड़ान भरते हैं। पर सेट शब्दों की कल्पना के पंख कुतर कर उसे जड़ यानी वस्तु बना देता है। अभिनय करने वाले किसी कारखाने के मज़दूर और नाटक किसी फैक्ट्री का प्रॉडक्ट बन जाता है।
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन ने नाटक को प्रोडक्ट और कलाकारों को मज़दूर होने से मुक्त किया है।
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन अपने कलाकारों को अभिनय के बहुआयामों में प्रकृति के सानिध्य में तराशता है। प्रकृति के साथ स्पंदित होने की प्रक्रिया से जोड़ता है।
संगीत,नृत्य,अभिनय में प्रवीण होते हैं थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन के कलाकार । कलाकार प्रकृति के पत्तों,लकड़ियों,पत्थरों और लोक साजों से संगीत सृजन करते हैं। लोक साज जो प्रकृति के स्पंदन को स्पंदित करते हैं।
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन के कलाकार पंछियों के स्वर,कलकल और ध्वनियों को आत्मसात कर पूरी प्रकृति को मंच पर उतार लाने में सिद्धहस्त हैं।
इस अभिनय साधना में थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन के कलाकार कला चैतन्य और सौंदर्य बोध को साधते हैं और न्यूनतम वेशभूषा और प्रकाश योजना के साथ मंच की रिक्तता को अपने अभिनय स्पंदन से आलोकित कर नाट्य पाठ की चेतना को दर्शकों में स्पंदित करते हैं!
चैतन्यशील दर्शक रंगकर्म को जीवन मूल्य के रूप में आत्मसात करते हैं। इसलिए थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन दर्शक को प्रथम और सशक्त रंगकर्मी मानता है। क्योंकि दर्शक रंगभूमि का प्राण है।