लघुशंका की हाज़त, फ्रांस में सेन के किनारे

 भाइयों, झूठ न कहूंगा। इन दिनों लिखते नहीं बन रहा। पहलगाम के बाद एक- एक कर इतने हादसे हो रहे हैं कि हंसने हंसाने का हुनर ही खो सा गया है। पटरीआकी मटरीआकी अधूरी पड़ी है। देखो कब लिख पाता हूं। आज भाषा को लेकर हो रहे जुतियाव पर मुस्कराने की कोशिश की है। एक संस्मरण के जरिए। लेखक 

लघुशंका की हाज़त, फ्रांस में सेन के किनारे

अजय शुक्ल

महेंद्र कुदेशिया। मेरा झांसी का साथी। खांटी बुंदेलखंडी हिन्दी बोलता था: ग्वालियर को गवालियर और खुले पैसों को खुल्ले पैसे। उसकी हिन्दी में भले ही इलाके की लचक थी, लेकिन वह अंग्रेजी बिलकुल अंग्रेजों की माफ़िक़ बोलता था। वही अंग्रेज़ी जिसे received english pronunciation कहा जाता है। अब भई जब कोई पांच साल की उमर से 22 साल तक इंग्लैंड में रहेगा तो वह अंग्रेज़ तो बन ही जाएगा! वह केन्या और लेगोस (नाइजीरिया) भी रहा था। सो, थोड़ी थोड़ी स्वाहिली और योरूबा भी जानता था।

लेकिन, सबसे बड़ी बात यह कि वह मूतने की क्रिया…..क्षमा करें यदि शब्द अश्लील लगे तो उसे पेशाब या लघुशंका में बदल लें। हां, तो मैं कह रहा था कि वह लघुशंका की बात फ्रेंच, जर्मन, इटेलियन और स्पेनिश में भी कह सकता था। बाद में हिंदुस्तान आने पर उसने लघुशंका के लिए भारत की हर भाषा में शब्द याद किए थे।

ऐसा क्यों?

इसलिए कि किसी भी देश प्रदेश में पैंट गीली न हो।

प्रतीकात्मक चित्र – लेखक

किस्सा यह कि महेंदर बाबू एक दिन फेरी पकड़ कर इंग्लिश चैनल पार कर गए और जा पहुंचे पेरिस। अकेले। कोई दिक्कत नहीं। मस्ती करने गए थे और 20 साल का लड़का जो मस्तियां कर सकता था, वे भी करने लगे। सेन नदी के किनारे घूमते घूमते तीन घंटे में तीन बोतल बीयर भी गटक गए।

अब बीयर पीने वाले जान ही गए होंगे कि तीन बोतल के बाद ब्लैडर किस तरह आचरण करता है। सो वहीं हुआ। उनको लघुशंका निवारण की हाज़त होने लगी। उन्होंने दाएं बाएं नजर डाली। लू, टॉयलेट या डब्ल्यूसी जैसी कोई संरचना नज़र नहीं आई।उधर, लघुशंका निवारण की उनकी जरूरत ज्यादा फिर बहुत ज्यादा होते हुए उस बिंदु पर जा पहुंची जिसके बाद पैंट गीली हो जाती है।

उस क्षण उनको इंडिया बहुत याद आया। साल भर पहले वे गृह नगर झांसी गए थे। वहां उन्होंने लोगों को किसी भी जगह मूतते पाया था। सड़क किनारे, पेड़ के नीचे। रानी महल के सामने जिला अस्पताल के गेट पर। यहां तक कि रानी लक्ष्मी बाई के मशहूर किले के नीचे भी। डर्टी इंडियंस…उनके मुंह से निकल ही गया था।

आज उन्हें वही इंडिया बहुत दुलारा लग रहा था। वे थे तो इंडियन लेकिन परवरिश के चलते सभ्य अंग्रेज हो चुके थे। वे सेन किनारे बजरे की आड़ में मूतने का साहस नहीं कर सके।

अब उन्होंने मदद मांगनी शुरू की। लेकिन वे ये भूल चुके थे कि फ्रांस वाले अंग्रेजी को उसी नज़र से देखते हैं, जिस नज़र से तमिल राजनीतिज्ञ हिन्दी को देखते हैं। अव्वल तो ज्यादातर को अंग्रेजी आती नहीं ( कमअज़कम 70 के दशक में यही दशा थी) और अगर आती भी है तो वे अंग्रेजी बोलने वाले को हिकारत से झिड़क देते हैं)।

हालांकि फ्रेंच भाषा में लघुशंका के लिए यूरिन और पिस से मिलते जुलते शब्द हैं। लेकिन मदद मांगते वक्त उन्हें ये दो शब्द याद ही नहीं आए। उन्हें केमिस्ट्री का एक्वा शब्द याद आया जिसके आगे उन्होंने डर्टी जोड़ कर मूत्र शब्द का आविष्कार कर डाला। एक और शब्द जोड़ा रिलीज़। और अंत में प्लीज़।

एक आदमी से उन्होंने टांगे क्रॉस कर पीड़ा का भाव दर्शाते हुए यह शब्द बोला एक्वा डर्टी रिलीज़ प्लीज़। वह आदमी कंधे उचकाते हुए आगे बढ़ गया। दो अन्य लोगों ने भी बेचारे ब्लैक इंडियन के साथ यही किया।

अब ब्लैडर फटने की कगार पर था। और अब उनके सामने एक गोरी फ्रेंच युवती आ रही थी। सामान्य हालत में कोई मर्द किसी अनजान क्या पहचान वाली युवती से लघुशंका के लिए मदद मांगने की नहीं सोच सकता। लेकिन महेंदर बाबू अब अच्छे बुरे या नैतिक अनैतिक जैसी बातों को समझने लायक नहीं रह गए थे। उस युवती में वे मा का अक्स देख रहे थे। बचपन में न जाने कित्ती बार मां से कहा होगा: अम्मा सू सू।

लेकिन समस्या थी कि कहें कैसे? वे ईश्वर का नाम लेकर युवती के सामने खड़े हो गए। उन्होंने टांगें क्रॉस कीं और रोनी सूरत बना कर crotch यानी जांघों के संधि स्थल पर दोनों हाथ धर कर खड़े हो गए।

युवती को यह हरकत अश्लील लगी। उसने महेंदर बाबू को धक्का देकर गिरा दिया और उम्म साला (homme sale) बोलते हुए आगे बढ़ गई। मेरे मित्र धक्के से जमीन पर गिर गए थे। तभी उन्होंने बगल से गुजरते एक कुत्ते को देखा। दिमाग में बिजली सी कौंधी और वे जोर से चीखे, नो दीदी आय एम नो साला। जैसे ही वह युवती उनकी तरफ मुड़ी उन्होंने कुत्ते की तरह टांग उठा कर मूतने की अंतरराष्ट्रीय भाषा में अपनी व्यथा व्यक्त कर दी।

युवती बात समझ कर जोर से हंस पड़ी। भाग कर आई और उसने मित्र को ले जाकर एक गली में मौजूद पेशाबघर के बाहर खड़ा कर दिया।

किस्से का संदेश यह है कि भाई जहां जाओ, वहां की भाषा सीख लो ताकि आपकी पैंट कभी भी आगे से गीली और पीछे से पीली न हो। और शर्ट भी लाल न हो।

(चलते चलते बता दूं हमारे देश की गाली साला और फ्रेंच शब्द sale यानी साला में कोई रिश्ता नहीं होता। उस लड़की ने homme sale बोला था, जिसका अर्थ होता है गंदा आदमी।)