फिलिस्तीन की भयावह त्रासदी और उसके प्रति भारत का शर्मनाक रवैयाः जलेस
जनवादी लेखक संघ ने प्रस्ताव पास कर भारत सरकार से इजराइल से संभी संबंध तोड़ने की मांग की
जनवादी लेखक संघ ने अपने राष्ट्रीय सम्मेलन में वैश्विक और भारतीय हालात पर कई प्रस्ताव पास किए। इसमें से एक प्रस्ताव फिलिस्तीन को लेकर था। प्रस्ताव में फिलिस्तीन को लेकर भारत के रवैये की कड़ी आलोचना की गई है। जलेस का कहना है कि फिलिस्तीन भयावह त्रासदी के दौर से गुजर रहा है। भारत उसका हमेशा से मित्र रहा है लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार का रवैया फिलिस्तीन के प्रति शर्मनाक है।
हम उस प्रस्ताव को यहां प्रस्तुत कर रहे हैं- वैश्विक स्तर पर दवितीय विश्वयुद्ध के बाद यह समस्या सर्वाधिक गंभीर रही है फिलिस्तीनी राष्ट्र को विभाजित कर यहूदियों के लिए एक अलग राष्ट्र इजराइल की स्थापना करना इजराइल की स्थापना उस जमीन पर दो हजार साल से अधिक समय से रहते आये फिलिस्तीनियो को हिंसा के बल पर विस्थापित कर की गयी थी। यहूदियों का एक हिस्सा इस बात में यकीन करता था कि फिलिस्तीन ही वह क्षेत्र है जो यहूदियों की मूलभूमि इजराइल है इसी विश्वास के कारण बहुत से यहूदी बीसवी सदी के आरम्भ से ही इस क्षेत्र में आकर बसने लगे थे। यह भी मांग उठने लगी थी कि फिलिस्तीन क्षेत्र में यहूदियों के लिए एक अलग राज्य की स्थापना की जानी चाहिए।
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस माग का समर्थन भी किया दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर दवारा 60 लाख यहूदियों के निर्मम नरसंहार के बाद इजराइल राज्य की मांग जोर पकड़ती गयी और इस तरह 1948 में अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके समर्थक यूरोपीय देशों ने फिलिस्तीन भूमि पर जोर-जबरदस्ती इजराइल की स्थापना कर दी थी। यह एक यहूदीवादी राष्ट्र था जो केवल दुनिया भर के यहूदियों के लिए था इस तरह इजराइल की स्थापना उसी सिद्धांत पर हुई थी जिस नस्लवादी सिद्धांत पर हिटलर ने यहूदियों को जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों से बाहर खदेड़ा था। द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजीवाद और फासीवाद की पराजय के बावजूद यूरोप के देशों ने उन यहूदियों को अपने देश में सम्मानित नागरिक के रूप में वापस बुलाने की बदले उनके लिए बने एक अलग देश की ओर धकेल दिया।
इजराइल की स्थापना लाखों फिलिस्तीन नागरिकों के नरसंहार और विस्थापन के दवारा हुई । 1947 से 1949के दौरान ही, यहाँ की 19 लाख की कुल जनसँख्या में से साढ़े सात लाख लोगों को जबरन घरों से भगाकर शरणार्थी बना दिया गया, 571 गाँव नष्ट कर दिए गए और 15 हजार लोग मारे गए।
फिलिस्तीनी इस भीषण नरसंहार को नकबा कहते हैं. यह फिलिस्तीनियों के लिए एक बहुत लंबे और न खत्म होने वाले दुःस्वप्न की शुरुआत थी। तेल के बड़े-बड़े भंडारों वाले पश्चिम एशिया के इस पूरे क्षेत्र को राजनीतिक रूप से अस्थिर रखने के इरादे से ताकि जब जरूरत हो वहां सैन्य दखलंदाजी की जा सके। इस क्षेत्र का पिछले आठ दशकों का इतिहास अमरीकी दखलंदाजी का इतिहास है। अधिकतर निरंकुश मुस्लिम देशों के बीच इजराइल की स्थापना दरअसल अमरीकी साम्राज्यवाद के हितों की रक्षा करने वाले एक चौकीदार से अधिक कुछ नहीं है।
इजराइल की यहूदीवादी सरकारों ने अमरीका और यूरोप के समर्थन के बल पर फिलिस्तीनियों के विरुद्ध लगातार हिंसक कार्रवाइयां की हैं, उन्हें लगातार अपनी जमीनों से खदेड़ा जाता रहा है। और यहूदी बस्तिया बसाई जाती रही हैं। अपनी आत्मरक्षा के लिए और अपनी जन्मभूमि हासिल करने के लिए संघर्ष करने के अलावा फिलिस्तीनियों के पास और कोई रास्ता नहीं था। विश्व राजनीति की विडम्बना यह है कि फिलिस्तीनियों के विरुद्ध इजराइल दवारा किये जाने वाले अनवरत बर्बर हमलों को आत्मरक्षा में की गयी कार्रवाई बताया जाता रहा है और फिलिस्तीनियों दवारा अपनी मातृभूमि वापस लेने और इजराइली हिंसा के विरोध में की गयी प्रत्येक कार्रवाई को आतकवाद कहा जाता रहा है
पिछले दो साल से इजराइल और फिलिस्तीन के बीच एक नए युद्ध की शुरुआत तब हुई जब 7 अक्टूबर 2023 के दिन हमास ने इजराइल पर हमला किया। इस हमले में लगभग 1200 इजरायली नागरिक मारे गए और लगभग 250 नागरिक बंदी बनाये गए।
लेकिन इन दो सालों में इजराइल ने गाजा पर लगातार किये गए हमले के दवारा 60 हजार से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं जिनमें लगभग एक चौथाई संख्या बच्चों की है दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि फिलिस्तीनियों को दी जाने वाली मानवीय सहायता भी इजराइल उन तक नहीं पहुँचने दे रहा है जिसके कारण भूख से तड़प-तड़प कर 250 लोग मारे जा चुके हैं और इनमें बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है।
इजराइल के हमले बेगुनाह नागरिकों स्कूलों, अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों पर हो रहे हैं। अमरीका और यूरोप के सशस्त्र समर्थन के बल पर इजराइल ने पिछले 75 साल से फिलिस्तीनियों को अपनी ही जमीन पर शरणार्थी बनने को मजबूर कर दिया है।
यहूदीवादियों का यह दावा कि फिलिस्तीन यहूदियों की मातृभूमि है एक मिथकीय अवधारणासे अधिक कुछ नहीं है और इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण भी नहीं है जबकि फिलिस्तीनी हजारों सालों से यहाँ रह रहे हैं अमरीका के समर्थन और उकसावे के बल पर इजराइल की नेतान्याहू सरकार ने अभी हाल में गजा शहर पर कब्जा करने की योजना को मजूरी दी है इससे युद्ध न केवल और अधिक उग्र होगा बल्कि राजा पट्टी पर रहने वाले नागरिकों के लिए और खतरनाक मंजर पैदा होंगे ।
इजराइल की इस योजना का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जबरदस्त विरोध भी हो रहा है. फिलिस्तीनिरयों के विरुद्ध पिछले दो साल से की जाने वाली इजराइल की हिंसक और बर्बर कार्रवाइयाँ का उन देशों की जनता द्वारा भी जबर्दस्त विरोध किया जा रहा है जहाँ की सरकारें इजराइल के साथ खड़ी हैं और उनमें अमरीका के युवा और विदयार्थी भी शामिल है. शायद भारत अकेला ऐसा देश है जो पूरी तरह से इजराइल के साथ खड़ा है यहाँ तक कि मौजूदा साप्रदायिक फासीवादी सत्ता समर्थक जनता भी जो इजराइल और फिलिस्तीन के मसले को यहूदी और मुस्लिम के बीच के झगड़े के रूप में देखने लगी है जबकि भारत परपरागत रूप से फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ा रहा है।
इजराइल की फिलिस्तीनी नागरिकों के विरुद्ध बर्बर और नरसंहारक कार्रवाइयों पर मौजूदा मोदी सरकार की चुप्पी भारत के उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष के शानदार इतिहास के बिलकुल विपरीत है यही नहीं कुछ शहरों में इक्का-दुक्का वामपंथी पार्टियों के विरोध प्रदर्शनों को छोड़कर अधिकतर विपक्षी पार्टियों भी चुप्पी साधे रही है फिलिस्तीनियों के समर्थन में प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई तक की गयी है. बॉम्बे हाई कोर्ट में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को फिलिस्तीनियों के समर्थन में प्रदर्शन को न केवल मजूरी नहीं दी इसके विपरीत न्यायाधीश महोदय ने उन्हें किसी विदेशी मसले पर प्रदर्शन करने की बजाय भारत की अपनी नागरिक समस्याओं पर ध्यान देने का उपदेश दिया
महात्मा गाँधी ने फिलिस्तीन की समस्या का समाधान यह बताया था कि जिन देशों से यहूदियों को निर्वासित किया गया है या उन्हें निर्वासित होने के लिए मजबूर किया गया है, वे देश वापस अपने यहाँ उन्हें पुनः बसाये अगर उनकी इस सर्वाधिक उपयुक्त उपाय को लागू न करना सभव न हो तो कम से कम संयुक्त राष्ट्र संघ के दविराष्ट्र को लागू करवाए लेकिन इजराइल और अमरीका की दिलचस्पी भी इसमें नहीं है वे फिलिस्तीन के वजूद को ही खत्म कर देना चाहते हैं।
जनवादी लेखक संघ का यह राष्ट्रीय सम्मलेन इस पूरे क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने, इजराइल के युद्ध अपराधियों के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में मुकदमा चलाने और फिलिस्तीनियों को अपने राष्ट्र में शांति और सुरक्षित ढंग से जीने का समर्थन करता है। जनवादी लेखक संघ का यह राष्ट्रीय सम्मलेन भारत सरकार से इजराइल से हर तरह के सम्बन्ध तोड़ने की मांग करता है।