जहां सब्जी सस्ती मिले, वहीं ट्रेन खड़ी कर दो

बात बेबात

जहां सब्जी सस्ती मिले, वहीं ट्रेन खड़ी कर दो

विजय शंकर पांडेय

यूपी के सीतापुर का एक वीडियो वायरल है, जिसमें रेलवे ने विकास की नई परिभाषा गढ़ दी है-“जहां सब्जी सस्ती मिले, वहीं ट्रेन खड़ी कर दो।” बताया जा रहा है कि ट्रेन की टॉवर वैगन इसलिए रोकी गई क्योंकि चालक दल को ताज़ी सब्जी लेनी थी। अब इसे लापरवाही कहें या लोकल सपोर्ट सिस्टम, फैसला आप करें- हालांकि हम वीडियो की पुष्टि नहीं करते।

रेलवे नियमों की किताब शायद उस दिन सब्जी मंडी में छूट गई थी। क्रॉसिंग पर फंसे आम लोग धैर्य की परीक्षा दे रहे थे और उधर ट्रेन खड़ी होकर लौकी-टमाटर का भविष्य तय कर रही थी। यात्रियों को संदेश साफ था-ट्रेन समय पर नहीं, सब्जी समय पर पहुंचे, यही असली पब्लिक सर्विस है।

रेलवे के सूत्र (जो हमेशा अनाम रहते हैं) कहते हैं कि यह कोई रुकावट नहीं थी, बल्कि मल्टीटास्किंग थी। ड्राइवर ट्रेन चला सकता है, सब्जी तौल सकता है और नियमों को भी इधर-उधर रख सकता है। आखिर देश डिजिटल हो रहा है, तो नियम भी फ्लेक्सिबल होने चाहिए।

अब जनता सवाल पूछ रही है-कल को दूध लेने के लिए प्लेटफॉर्म बदला जाएगा? मछली खरीदने पर सिग्नल लाल होगा? सीतापुर ने बता दिया है कि यहां ट्रेन सिर्फ यात्रियों के लिए नहीं, रसोई के लिए भी चलती है। बस शर्त इतनी-सब्जी ताज़ी होनी चाहिए, नियम बासी भी चल जाएंगे!

लेखक- विजय शंकर पांडेय

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