राहत बाँटने में तेजी लायें

राहत बाँटने में तेजी लायें

कुलभूषण उपमन्यु

2025 का मॉनसून उत्तर पश्चिमी हिमालय क्षेत्रों के लिए बहुत ज्यादा हानि पंहुचाने वाला रहा। हिमाचल प्रदेश में ही 24 जून से 20 सितंबर तक 4881 करोड़ रु. का आर्थिक नुकसान आंका गया। 454 बहुमूल्य जिंदगियां काल का ग्रास बन गईं। 50 लोग लापता हो गए। 674 पक्के घर, 1062 कच्चे घर, 496 दुकानें, पूर्णतः तबाह हो गए। 2376 पक्के, 5118 कच्चे घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए। 29474 पालतू पशु काल का ग्रास बन गए।

आर्थिक नुकसान में काँगड़ा, मंडी, चंबा, ऊना, कुल्लू क्रमशः पहले पांच स्थान पर रहे, जिनमें क्रमशः 1409, 1285, 1120, 979, और 922 करोड़ रु. का नुकसान आंका गया। विभागीय स्तर पर लोकनिर्माण विभाग 2666.84, जल शक्ति विभाग 1287.23, बिजली बोर्ड 139.46, कृषि विभाग 51.64, बागवानी विभाग को 27.43 करोड़ रु की हानी झेलना पड़ा। करीब दो से ढाई हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को भारी नुकसान हुआ। फलों की फसल भी कई जगह बर्बाद हुई। पीकेन नट की फसल तो पूर्णता अधिक बारिश के चलते बर्बाद हो गई।

अकेले हमीरपुर जिले में ही 181 हजार हेक्टेयर भूमि पर फसलें तबाह हुईं। 10,642 किलोमीटर सड़कें क्षतिग्रस्त हुईं। 2017 के बाद इस वर्ष सबसे ज्यादा 1011 मिलीमीटर बारिश हुई। 2018 में इससे कम 927 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी।

यदि इस विभीषिका के कारणों का विश्लेषण करें तो अधिकांश मानव जनित ही मिलेंगे। जीवाश्म ईंधनों से उर्जा उत्पादन से आसमान में फ़ैल रही ग्रीन हॉउस गैसों के उत्सर्जन के कारण धरती पर वायुमंडल का तापमान बढ़ता जा रहा है। जिससे जलवायु परिवर्तन का दौर शुरू हो चुका है। दुनिया भर में मौसम जनित अप्रत्याशित घटनाएं हो रही हैं, जिनमें जन-धन की भारी तबाही हो रही है बाबजूद इसके दुनिया भर के देश इस मामले में जुबानी जमा खर्च तो ज्यादा कर रहे हैं, किन्तु तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे रोकने के लिए उर्जा उत्पादन नीतियों में जो बदलाव करने चाहिए उस पर काम करने में पिछड़ते जा रहे हैं।

हम कह सकते हैं कि यह जलवायु परिवर्तन का भूत मानव जनित ही है, इसे प्राकृतिक आपदा कह कर टाला नहीं जा सकता। इसके बाद निर्माण कार्यों में जो अवैज्ञानिक पद्धति से काम किया गया उसने जलवायु परिवर्तन जनित विभीषिका को बहुत अधिक बढ़ा दिया।

जहां जहां प्रोजेक्टों के लिए या अन्यथा गलत विकास मॉडल के चलते प्रकृति में ज्यादा तोड़ फोड़ हुई वहां वहां ज्यादा नुकसान हुआ। इसको मानवजनित आपदा कहना बहुत जरूरी है ताकि हमें अपनी गलतियों का एहसास होता रहे वरना हम तो प्रकृति के जिम्मे सारा दोष मढ़ कर लापरवाह ही बनते जा रहे हैं।

निर्माण कंपनियों और उनसे जुड़े निहित स्वार्थों के कारण ही यह खेल चलता जा रहा है क्योंकि दुनियां भर में, इन्ही शक्तियों के पास विकास की दिशा तय करने और सरकारों को प्रभावित करने की शक्ति आ गई है, और इनकी समझ स्वार्थ प्रमुख है। पिछले 4 वर्षों में लगातार हिमाचल में मानसूनी बारिशों में नुकसान हो रहा है जिसके कुल नुकसान का आंकड़ा 46 हजार करोड़ के लगभग माना जा रहा है। फिर भी ऐसा नहीं लगता कि योजना कारों और सरकारों ने इसे गंभीरता से लिया हो। इसमें सभी राजनैतिक दल एक जैसी सोच और विकास मॉडल के पैरोकार हो चुके हैं। उनके एक दूसरे के विरोध में खड़े होने की बातें दिखवा ही लगती हैं क्योंकि हर किसी की बारी में वही, पर्वतीय विकास के प्रति नासमझी वाली समझ से निर्देशित विकास गतिविधियाँ यथावत जारी रहती हैं। अभी बरसात के बाद इतनी तबाही झेलने के बाद भी आप सड़क मार्गों के निर्माण की तकनीक में रत्ती भर भी बदलाव नहीं देख पाएंगे। इस आपदा का यह सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। किन्तु दूसरा पक्ष भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. जो नुकसान हो चुका है उसकी यथा संभव भरपाई करना, ताकि आपदा के कारण तबाह हुए परिवार सामान्य जिन्दगी जीने योग्य बन सकेंष हिमाचल सरकार ने प्रदेश को प्राकृतिक आपदाग्रस्त क्षेत्र घोषित कर के पुनर्वास कार्य को व्यवहारिक स्तर पर ले जाने का निर्णय करके अच्छा फैसला किया है। इसके आधार पर बढ़ी हुई राहत राशि देने की व्यवस्था हो सकी। पहले तो यह निर्णय मंडी जिले तक ही सीमित  रखा गया था अब पूरे प्रदेश पर लागू करके सदिच्छा जाहिर की गई है। केंद्र सरकार द्वारा 1500 करोड़ रु. की आपदा राहत घोषित कर के प्रदेश की कमजोर आर्थिक स्थिति पर कुछ मलहम लगाने का काम तो किया गया है किन्तु यह पैसा शीघ्र हिमाचल सरकार को दिया जाना चाहिए इसके साथ ही प्रधानमंत्री जी के आश्वासन के अनुसार आपदा में हुए नुकसान का पूरा आकलन करने के बाद अतिरिक्त सहायता राशि की जो बात कही गई थी उस पर भी शीघ्र अमल होना चाहिए क्योंकि यह पहाड़ी ठंडे क्षेत्रों का मामला है। जो लोग बिना घर टेंटों में पड़े हैं या रिश्तेदारों के शरण ले रखी है भीषण ठंड के मौसम में उनके कष्टों का अंदाजा लगाया जा सकता है। राज्य सरकार ने 5-6 नवंबर से मंडी जिला से राहत राशि की पहली किश्त देकर शुरूआत करने का अच्छा निर्णय लिया है किन्तु प्रदेश के अन्य जिलों में भी राहत राशि बाँटने के काम में तेजी लाने की जरूरत है ताकि ठंड पड़ने से पहले कुछ व्यवस्थाएं बन सकें और आपदा के सताए लोगों के जख्मों पर मलहम लग सके।

लेखक पर्यावरणविद और समाजसेवी हैं।

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