सरबतसिंह पूनिया – संघर्षशील और दृढ़निश्चयी नेता

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग – 58

 

सरबतसिंह पूनिया – संघर्षशील और दृढ़निश्चयी नेता

सत्यपाल सिवाच

कर्मचारी हितों के लिए जो व्यक्ति हमेशा आगे बढ़कर आंदोलन की कमान संभाले, हमेशा शांत रहकर संयम से परिस्थितियों के अनुसार फैसले करे वही सच्चा नेता होता है। ऐसा संघर्षशील और दृढ़निश्चयी व्यक्तित्व का व्यक्ति ही कर सकता है। यदि हम समग्रता में देखें तो नेतृत्व के तमाम गुण सरबत सिंह पूनिया में दिखाई पड़ते हैं। संभवतः यही कारण रहा कि वे सर्वमान्य नेता के तौर पर उभर कर समाने आए।

सरबत सिंह पूनिया का जन्म छोटे किसान परिवार में गांव कनोह , जिला हिसार में 25 दिसंबर 1965 हुआ। केवल 7 वर्ष की आयु में पिता तेलूराम नम्बरदार का देहांत हो गया था। परिवार में दो भाई व एक बहन है। बड़े भाई का अभी 3 सितंबर 2025 को देहांत हो गया। कठिन परिस्थितियों में आठवीं तक की पढ़ाई गांव में व दसवीं पाबड़ा में की। आई टी आई डिप्लोमा करने पर 1 मई 1985 को रोडवेज विभाग में हेल्पर मैकेनिक पद पर हिसार डिपो में भर्ती हुए तथा 31 दिसंबर 2023 को कर्मशाला में सब स्टेशन इंचार्ज (SSI) के पद से सेवानिवृत हुए हैं। 38 वर्ष 8 महीने का लंबा सेवाकाल रहा है।

यूनियन में योगदान

सन् 1986 से ही विभाग की यूनियन के कार्यक्रमों में शामिल होने लगे थे।  22 मार्च 1987 को हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन सम्बंधित सर्व कर्मचारी संघ का गठन होते ही सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम करते हुए 1988 सब डिपो टोहाना में सचिव बने, 1990 में हिसार डिपो के सचिव व 1991 में सर्व कर्मचारी संघ हिसार ब्लाक के प्रधान, 1993 सर्व कर्मचारी संघ व महासंघ द्वारा गठित ज्वांइट एक्सन कमेटी मेंबर, 1995 में यूनियन के राज्य उप प्रधान, 1996 में फतेहाबाद डिपो के प्रधान व सर्व कर्मचारी संघ के जिला प्रधान भी रहे। 1998 में राज्य कोषाध्यक्ष , 2002 से लगातार 6 बार राज्य महासचिव, दो बार राज्य प्रधान व फिर दो बार राज्य महासचिव रहे। इसी दौरान सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा में 2001 में राज्य उप प्रधान व 2010 व 2013 दो बार राज्य वरिष्ठ उपप्रधान चुने गए। राष्ट्रीय स्तर पर आल इंडिया रोड़ ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन में तीन योजना राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। लगातार यूनियन व सर्व कर्मचारी संघ में सक्रिय व अग्रणी भूमिका निभाते आ रहे हैं । शुरू से ही हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन संबंधित सर्व कर्मचारी संघ एवं AIRTWF में रहकर कर्मचारियों के हितों की लम्बी लड़ाई लड़ी है।

सरकारी दमन

28 अप्रैल 1989 में हिसार डिपो में लाठीचार्ज का शिकार हुए। 7 मार्च 1991 को चंडीगढ़ विधानसभा कुच में लाठीचार्ज , 1993 में जेल भरो आंदोलन के दौरान 12 दिन चंडीगढ़ बुड़ेल जेल में रहे। जेल में गठित हरियाणा कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के सदस्य रहे। जेल में ही ट्रेड यूनियन की शिक्षा के लिए रोजाना क्लास लगाई जाती थी। बुड़ेल जेल से छुटते ही हिसार पहुंचने पर नौकरी से बर्खास्त कर दिए। जबकि हड़ताल 7 दिसंबर से 15 दिसंबर तक जारी रही थी। लगातार हुए बड़े आंदोलनों में 5 बार जेल में गये।  2014 में तो हिसार की सैंट्रल जेल में चक्कियों में कठिन परिस्थितियों में रखा गया। जेल के भीतर भी अन्याय के खिलाफ जेल प्रशासन के खिलाफ नारे लगाए व बात मनवाने में सफल रहे। 2006 में वाल्वो बसों के विरुद्ध आंदोलन में हिसार में लाठीचार्ज के बाद जेल में डाला गया। सन् 1996  व 1998 सहित कुल 48 दिन जेल में बंद रहे। 1996 में नर्सिंग आंदोलन दिल्ली संसद कूंच में गम्भीर रूप से घायल हुए, आंख के निचले हिस्से में काफी चोट लगी व दिल्ली एम्स में 3 दिन दाखिल रहे। हरियाणा कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला व सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा से बातचीत के दौरान भूपेंद्र हुड्डा मुख्यमंत्री से बातचीत के दौरान टकराव हुआ।

कर्मचारी हित सर्वोपरि

कर्मचारियों की एकता के हमेशा पक्षधर रहे हैं। सरकारों की विभाग व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की दृष्टि से यूनियनों को एकजुट करते हुए हरियाणा रोडवेज संयुक्त संघर्ष समिति तथा हरियाणा रोडवेज कर्मचारी तालमेल कमेटी तथा अब हरियाणा रोडवेज कर्मचारी सांझा मोर्चा के गठन में अहम् भूमिका निभाई है । पूनिया यूनियन में काफी सूझबूझ, अनुभवी तथा लड़ाकू नेता के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने सदैव बिना भेदभाव के कर्मचारियों के हितों की रक्षा की है। रोडवेज के आंदोलनों, छात्रों के आंदोलनों के अलावा अलग-अलग विभागों के आंदोलनों मिड डे मील, आशा वर्कर, आंगनवाड़ी, किसान आंदोलन तथा जन आंदोलनों में आपने अग्रणी भूमिका निभाई है ।

आपने निजीकरण के खिलाफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ, कच्चे कर्मचारियों को पक्का करवाने के लिए, ठेका प्रथा पर रोक लगाने के लिए, रिक्त पदों पर पक्की भर्ती के लिए, तथा रोडवेज विभाग में सरकारी बसों की संख्या बढ़ाने के लिए वह कर्मचारियों की अनेकों अन्य मांगों के लिए हमेशा संघर्ष किया है। इन लगभग 39 वर्षों के संघर्षमय समय के दौरान कई अलग-अलग सरकारों के मुख्यमंत्रियों, परिवहन मंत्रियों के कार्यकाल में बड़े-बड़े आंदोलन किये है । इसके कारण आपने सरकारों का काफी उत्पीड़न भी झेला है। इसमें सस्पेंड, बर्खास्तगी, गिरफ्तारियां तथा कई बार जेलों में जाना पड़ा।

सेहत की भी परवाह नहीं

गंभीर बीमारी के कारण स्वास्थ्य खराब होने या अन्य किसी भी विपरीत हालात होने पर भी आपने पूरी लगन, ताकत व पूरी ईमानदारी के साथ यूनियन का कार्य किया है । 2020 में कैंसर के इलाज के दौरान भी किसान आंदोलन में दिल्ली टिकरी बार्डर पर रोडवेज कर्मचारियों का जुलूस लेकर पहुंचे।

रिटायरमेंट के बाद भूमिका बदली

रोडवेज विभाग को बचाने के संघर्ष तथा कर्मचारियों की मांग व मुद्दों के लिए योगदान के बाद दिसंबर 2023 में रिटायर होने के बाद किसान सभा में उप प्रधान के पद पर काम करना शुरू किया। वर्तमान में दी ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन सम्बंधित आल इंडिया रोड़ ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन के राज्य प्रधान है। आल इण्डिया रोड़ ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन राष्ट्रीय वर्किंग कमेटी मेंबर है। हाल ही में अखिल भारतीय किसान सभा हिसार के जिला सचिव व 4-5 अक्टूबर को भट्टू मंडी में हुए किसान सभा के राज्य सम्मेलन में राज्य कमेटी सदस्य चुना गया है।

परिवार

परिवार में दो भाई व एक बहन है। बड़े भाई का अभी 3 सितंबर को बीमारी के चलते देहांत हो गया। परिवार में पत्नी, तीन बेटी व एक बेटा है। सभी बच्चों की शादी बिना दहेज के की है। बच्चे बेरोजगार हैं। एक पोती, एक दोहता व एक दोहती है। पिता जी का देहांत 1972 में व माता जी का देहांत 1988 में हो गया। काफी कठिन परिस्थितियों का मुकाबला संगठन व मार्क्सवादी सोच से मिली दिशा से ही सम्भव हो पाया है। मेरे गांव कनोह के कामरेड पृथ्वी सिंह पूनिया के विचारों से 1984 से ही प्रभावित रहा हूँ। उस समय वे सीपीएम के जिला सचिव थे। सौजन्य ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच

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