हिंद माता का वंदन, गुजराती में
अनुवादक की कलम से
इस गुजराती वंदना में भारत की संतानों में वाल्मिकी, व्यास, नानक, मीरां, कबीर, तुलसी और शिवाजी के साथ अकबर को भी गिनाया गया है। रचना मणिशंकर रत्न जी भट्ट की है। कवि कांत के नाम से प्रख्यात यह कवि 1867 में पैदा हुआ था। यानी गांधी की पैदा होने से दो साल पहले।
गौर करने की बात यह है कि जब गांधी और आंबेडकर विकसित भी नही हुए थे, गुजरात का एक कवि समावेशी भारत को देख रहा था। कवि कांत का निधन 1923 में हुआ था।
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यहां सबसे पहले यह गुजराती गीत देवनागरी में प्रस्तुत है। बाद में हिंदी में उसकी व्याख्या। और अंत में मूल पाठ गुजराती लिपि में
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कवि कांत
ओ हिंद देवभूमि संतान सौ तमारां
करिए मड़ीने वंदन स्वीकार जो अमारां।
हिंदू अने मुसलमिन, ईसाइ, पारसी जिन
देवी! समान रीते संतान सौ तमारां!
पोषो तमे सहूने, शुभ खानपान बख्शी
सेवा करे बने ते संतान सौ तमारां।
रोगी अने निरोगी, निर्धन अने तवंगर
ज्ञानी अने निरक्षर, संतान सौ तमारां।
वाल्मिकी, व्यास, नानक, मीरां, कबीर, तुलसी,
अकबर, शिवाजी माता संतान सौ तमारां।
सौनी समान माता, सौए समान तेथी
न उच्च नीच कोई संतान सौ तमारां।
चाहो बधां परस्पर, साहो बधां परस्पर
ए प्रार्थना करे आ संतान सब तमारां।
हिंदी में अर्थ
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हे हिंद देवभूमि ! सभी तुम्हारी ही संतान हैं! हम एक साथ मिलकर तेरी वन्दना कर रहे हैं, हमारी वन्दना स्वीकार करो! हिन्दू और मुसलमान, ईसाई, पारसी, जैन, और यहूदी – सभी समान रूप से तुम्हारी संतान हैं! तुम सबको एक समान पालती हो, सबको सुंदर भोजन देती हो। जो तुम्हारी सेवा करे, वही तुम्हारी संतान है। रोगी और स्वस्थ, निर्धन और धनवान, विद्वान और अनपढ़ – सभी तुम्हारी संतान हैं! हे माता, वाल्मीकि, व्यास, नानक, मीरा, कबीर, तुलसी, अकबर, शिवाजी सभी तुम्हारी संतान हैं! तुम सबकी माता हो, इसलिए तुम्हारी सभी संतानें बराबर है; उनमें कोई ऊंच-नीच नहीं है! तुम्हारी संतानें एक दूसरे के साथ प्रेम और सहयोग में रहने की प्रार्थना करती हैं!
(गौर करने की बात यह है कि जब गांधी और आंबेडकर विकसित भी नही हुए थे, गुजरात का एक कवि समावेशी भारत को देख रहा था। वे कवि कांत के रूप में मशहूर हैं।)
अनुवादक – अजय शुक्ल
मूल गुजराती में कविता
ઓ હિંદ દેવભૂમિ! સંતાન સૌ તમારાં!
કરીએ મળીને વંદન, સ્વીકારજો અમારાં!
હિંદુ અને મુસલ્મિનઃ વિશ્વાસી, પારસી, જિનઃ
દેવી! સમાન રીતે સંતાન સૌ તમારાં.
પોષો તમે-સહુને, શુભ ખાનપાન બક્ષીઃ
સેવા કરે બને તે સંતાન સૌ તમારાં!
રોગી અને નીરોગી, નિર્ધન અને તવંગર,
જ્ઞાાની અને નિરક્ષર, સંતાન સૌ તમારાં!
વાલ્મીકિ, વ્યાસ, નાનક, મીરાં, કબીર, તુલસી,
અકબર, શિવાજી, માતા સંતાન સૌ તમારાં!
સૌની સમાન માતા, સૌએ સમાન તેથીઃ
ના ઉચ્ચનીચ કોઈ સંતાન સૌ તમારાં!
ચાહો બધાં પરસ્પર, સાહો બધાં પરસ્પર,
એ પ્રાર્થના કરે આ સંતાન સૌ તમારાં!
– કવિ કાન્ત