सज्जाद ज़हीर: प्रतिबद्धता की रोशनी में जलता एक जीवन

सज्जाद ज़हीर: प्रतिबद्धता की रोशनी में जलता एक जीवन

सत्यम सागर

दोस्तो, *लाल सलाम* श्रृंखला की आज की कड़ी हम एक ऐसे इंसान की बात कर रहे हैं, जिसने न केवल अपना पूरा जीवन एक वैचारिक मिशन के लिए जिया, बल्कि साहित्य, राजनीति और संस्कृति सभी मोर्चों पर अपनी अमित छाप छोड़ी। यह व्यक्ति हैं – *सैयद सज्जाद ज़हीर*, जिन्हें लोग प्यार से *बन्ने भाई* भी कहते हैं।

शुरुआत: एक सम्मानित परिवार से बगावत की ओर

सज्जाद ज़हीर का जन्म 5 नवंबर 1905 को लखनऊ के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके पिता *सर वज़ीर हसन* इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। स्वाभाविक था कि वे चाहते थे कि उनके बेटे अंग्रेजी हुकूमत में ऊंचे पदों तक पहुंचें। लेकिन बन्ने भाई ने इस परंपरागत उम्मीद को चुनौती दी – वे न केवल साम्राज्यवाद के विरोधी बने, बल्कि पिता की विरासत और संपत्ति छोड़कर कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय के एक छोटे कमरे को अपनी दुनिया बना लिया।

लंदन की पढ़ाई और क्रांति की समझ

लखनऊ से स्नातक की पढ़ाई के बाद सज्जाद ज़हीर उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए। वहीं उनका संपर्क ब्रिटिश संसद के वामपंथी सांसद *शापूरजी सकलतवाला* से हुआ और वे मार्क्सवादी विचारधारा की ओर आकृष्ट हुए। *ऑक्सफोर्ड मजलिस* के सदस्य बने और फ्रैंकफर्ट में आयोजित *दूसरे साम्राज्यवाद-विरोधी सम्मेलन* में भाग लेकर उन्होंने दुनिया भर के उत्पीड़न को गहराई से समझा। यह वही समय था जब उन्होंने तय किया कि भारत लौटकर आज़ादी और समाजवादी क्रांति की लड़ाई में शामिल होंगे।

अंगारे’ से साहित्यिक क्रांति

1930 में लंदन प्रवास के दौरान उन्होंने ‘भारत’ नामक समाचारपत्र निकाला और भारत लौटकर *‘अंगारे’* नामक कहानी संग्रह का संपादन किया। इसमें सज्जाद ज़हीर के साथ अहमद अली, रशीद जहां और महमूद-उज़-ज़फ़र की कहानियां थीं। यह संग्रह धार्मिक रूढ़िवाद और समाजिक कुरीतियों पर तीखा प्रहार था, जिसने उर्दू साहित्य में भूचाल ला दिया। प्रतिक्रियावादी मुस्लिम समूहों ने इस पर प्रतिबंध की मांग की और अंग्रेज सरकार ने “धार्मिक भावनाएं आहत करने” के आरोप में इसे प्रतिबंधित कर दिया।

प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना

1935 में लंदन में उनकी मुलाकात प्रख्यात लेखक *मुल्कराज आनंद* से हुई और वहीं से भारत में *प्रगतिशील लेखक संघ* (PWA) की नींव रखने का विचार जन्मा। 1936 में लखनऊ में इसका स्थापना सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता उन्होंने *मुंशी प्रेमचंद* से करवाई। यही वह मोड़ था जब प्रेमचंद के लेखन में भी विचारधारा का झुकाव गांधीवाद से वामपंथ की ओर साफ दिखने लगा।

राजनीतिक संघर्ष और साहित्यिक पत्रकारिता

सज्जाद ज़हीर ने *‘चिंगारी’* नामक पत्रिका की शुरुआत की। वे *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI)* के उत्तर प्रदेश सचिव बने और 1939 में दिल्ली इकाई के प्रभारी नियुक्त हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ बोलने पर उन्हें दो वर्ष की जेल हुई। रिहा होने के बाद उन्होंने *‘कौमी जंग’* और *‘नया ज़माना’* जैसे अखबारों का संपादन किया और IPTA (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन) व *किसान सभा* को संगठित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पाकिस्तान में कम्युनिज़्म की मशाल

बंटवारे के बाद पार्टी ने उन्हें *पाकिस्तान में कम्युनिस्ट आंदोलन* शुरू करने की जिम्मेदारी दी। उन्होंने सिब्ते हसन और मियां इफ़्तिख़ारुद्दीन के साथ मिलकर *पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी* की स्थापना की और इसके पहले महासचिव बने। लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने कम्युनिस्टों को कुचलने के लिए 1951 में *रावलपिंडी षड्यंत्र केस* रचा और उन्हें फैज़ अहमद फैज़ के साथ गिरफ़्तार कर लिया। सज्जाद ज़हीर ने चार साल जेल में बिताए। दुनिया भर से उनकी रिहाई की मांग उठी और अंततः भारत लौटने पर उन्हें *जवाहरलाल नेहरू* ने भारतीय नागरिकता प्रदान की।

दिल्ली लौटने के बाद उनका निवास बना CPI का दफ्तर, जहां वे *‘हयात’* उर्दू अख़बार का संपादन करते रहे। साथ ही उन्होंने *प्रगतिशील लेखक संघ* के पुनर्गठन का बीड़ा उठाया। वे एक कुशल संगठनकर्ता, प्रतिबद्ध कार्यकर्ता और उत्कृष्ट लेखक थे।

उनका उपन्यास *‘लंदन की एक रात’* और आत्मकथात्मक पुस्तक *‘रोशनाई’* प्रगतिशील आंदोलन की ऐतिहासिक धरोहर हैं। उनकी शरीक–ए–हयात *रज़िया सज्जाद ज़हीर* भी एक प्रतिभाशाली लेखिका थीं। उनकी बेटी *नूर ज़हीर* ने *मेरे हिस्से की रोशनी* नामक पुस्तक में अपने माता-पिता की स्मृतियों को आत्मीयता से दर्ज किया है।

1973 में सज्जाद ज़हीर का निधन तत्कालीन सोवियत संघ के शहर *अल्मा आटा* में हुआ। लेकिन उनकी स्मृति और योगदान आज भी भारतीय उपमहाद्वीप के वामपंथी साहित्य और राजनीतिक चेतना में जीवित है।

हम *बन्ने भाई* को लाल सलाम अर्पित करते हैं—एक ऐसे योद्धा को जिसने शब्दों, विचारों और संघर्षों के माध्यम से एक नई रोशनी पैदा की।

लाल सलाम, सज्जाद ज़हीर!

व्हाट्स एप से साभार

One thought on “सज्जाद ज़हीर: प्रतिबद्धता की रोशनी में जलता एक जीवन

  1. बन्ने भाई पर आपने सत्यम सागर का शानदार लेख प्रकाशित किया है।
    बहुत शुक्रिया।

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