एस.पी.सिंह की ग़ज़ल : सदाए-सच

 ग़ज़ल

 सदाए-सच

एस.पी. सिंह

 

हक़ की बात कहूँ ग़म नहीं डर का

रौशनी का है ये असर का

ज़ख़्म से निकला नूर देखा है

राह दिखला रहा है सफ़र का

जिन किताबों को सबने रोका है

वो ही सच है ज़मीं-ओ-बशर का

ताज हिलता है जब कलम बोले

ये असर है हक़ीक़त के घर का

ख़ामुशी तोड़ दे सदा बनकर

ये करिश्मा है दिल की नज़र का

रात ढलती है चाँद कहता है

इंतिहा देख लो इस सफ़र का

वो जो सच लिख रही है आज भी

है मज़ा उस जुनूँ के असर का

राह बंदी से कुछ नहीं होगा

ख़्वाब खोलो ज़रा इस ख़बर का

दुश्मनी सच से जीत पाएगी

ये ग़ुमाँ है फ़क़त वो ख़तर का

बेबाक कह दे ग़ज़ल में सच्चाई

ये ही पैग़ाम है इस हुनर का

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कठिन शब्दों के अर्थ

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हक़ – सत्य, न्याय

असर – प्रभाव, असर

ज़ख़्म – घाव

सफ़र – यात्रा

ज़मीं-ओ-बशर – ज़मीन और इंसान

हक़ीक़त – सच्चाई

सदा – पुकार, आवाज़

करिश्मा – चमत्कार

नज़र – दृष्टि

इंतिहा – चरम, अंत

जुनूँ – दीवानगी, गहरा जुनून

ख़्वाब – सपना

ग़ुमाँ – भ्रम, संदेह

फ़क़त – केवल, मात्र

ख़तर – ख़तरा, भय

पैग़ाम – संदेश

हुनर – कला

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