आज भगत सिंह की जयंती है। देश की आजादी और नागरिक समानता के लिए भगत सिंह शहीद हो गए। वह केवल देश को अंग्रेजों से मुक्त नहीं कराना चाहते थे बल्कि शोषण और असमानता की बेड़ी को भी काटकर सभी भारतीयों को ऐसा देश देना चाहते थे जिसमें सभी को अपने अधिकार मिलें और कोई किसी के भरोसे न रहे। इसी लिए वे साम्यवादी विचारों की तरफ झुके थे और रूस की क्रांति को पथ प्रदर्शक के तौर पर देखते थे। शहीदे आजम की जयंती के मौके पर प्रतिबिम्ब मीडिया उन पर केंद्रित कई आलेख प्रकाशित कर रहा है। इन लेखों के साथ उस महान शख्सियत को प्रतिबिम्ब मीडिया परिवार और उसके चाहने वालों की तरफ से विनम्र श्रद्धांजलि।
क्रांतिकारी समाजवादी शहीद-ए-आजम भगत सिंह
मुनेश त्यागी
वैसे तो हमारे देश में लाखों स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं जिन्होंने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करने के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी थीं मगर इन सब में सबसे ऊंचा स्थान भगत सिंह का है। भगत सिंह का जन्म बंगा लायलपुर पाकिस्तान में 28 सितंबर 1907 को हुआ था। उनके परिवार में आजादी की लौ जला करती थी। उनके चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह को भी आजादी की लड़ाई लड़ने के कारण जेल में बंद किया गया था। भगत सिंह के जन्म लेने के बाद ही ये दोनों जेल से रिहा हुए थे और जमानत पर रिहा हुए थे, इसीलिए उनकी दादी ने इसी खुशी में उनका नाम “भागावाला” वाला रखा था जो बाद में भगत सिंह के नाम से जाने गए जो आज देश और दुनिया में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के नाम से जाने जाते हैं।
भगत सिंह पर उस माहौल का काफी प्रभाव पड़ा था। भगत सिंह बचपन से ही पढ़ने के शौकीन थे। बाद में वे क्रांतिकारी आंदोलन के प्रकाश स्तंभ बन गए थे और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को अप्रत्याशित रफ्तार प्रदान की थी। अपने लगातार अध्ययन और संघर्ष की बदौलत वे एक क्रांतिकारी विचारक और पुस्तक प्रेमी बन गए थे। जेल की कोठरी को ही उन्होंने अपना अध्ययन कक्ष बना लिया था। उन्होंने जेल के अंदर 300 से ज्यादा किताबें पढ़ी थीं। उनकी पढ़ी हुई पुस्तकों में मुख्य रूप से कम्युनिस्ट घोषणा पत्र, पूंजी, साम्राज्यवाद पूंजीवाद की चरम व्यवस्था, वाही ए मैन फाइट्स, सिविल वर इन फ्रांस, समता समानता भ्रातृत्व के आदर्श आदि।
उनके प्रिय लेखक ह्यूगो, गौर्की, तुर्गनेव, दोस्तोवस्की, रसैल, आस्कर वाइल्ड, उमर खय्याम, टैगोर, सिनक्लेयर, चार्ल्स डिकेंस, एंगेल्स, मार्क्स और लेनिन थे। भगत सिंह के साथी उनको “बुक वोर्म” यानि “किताब का कीड़ा” बोलते थे। वे कहते थे कि “वह किताब को पढ़ता नहीं है बल्कि किताब को निकलता है।” भगत सिंह कलम के धनी थे। वे कुशल वक्ता थे। हिंदी, उर्दू, पंजाबी और अंग्रेजी में उन्हें समान अधिकार था। वे कई अखबारों जैसे प्रताप, प्रभा, महारथी और चांद में नाम बदल बदलकर लिखते थे।
भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा लिखे गए 139 लेखों में से 97 लेख भगत सिंह ने लिखे थे। भगत सिंह बड़े लेखक थे। उनकी पांच पुस्तक हैं जैसे 1. समाजवाद का आदर्श, 2. मृत्यु के द्वार, 3. आत्मकथा, 4. भारत में क्रांतिकारी आंदोलन, और 5. मैं नास्तिक क्यों? भगत सिंह समाजवाद के सबसे बड़े प्रेमी थे. इसी कारण उन्होंने अपने दल हिंदुस्तानी गणतंत्र संघ का नाम बदलकर “हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संघ” रख दिया था।
भगत सिंह का मानना था कि संगठन और प्रचार क्रांति के लिए बहुत जरूरी हैं। उन्होंने शोषण, दरिद्रता और असमानता का लगातार अध्ययन किया।आजादी से उनका मतलब था राजनीतिक ही नहीं आर्थिक आजादी भी भी जरूरी है। वे मनुष्य द्वारा मनुष्य का ही नहीं, बल्कि राष्ट्र द्वारा राष्ट्र के शोषण के भी बहुत बडे विरोधी थे। उनका मानना था कि सामाजिक और आर्थिक आजादी के बिना राजनीतिक आजादी के कोई मायने नहीं है। उन्होंने समाजवाद की आवाज को सबसे पहले सुना और उसका प्रचार प्रसार किया।
भगत सिंह ने समाजवादी समाज और समाजवादी राज्य सत्ता की बात की थी। उनका लक्ष्य था ,,,किसानों मजदूरों का राज्य कायम करना, जनवादी संगठन बनाना। भगत सिंह अपने संगठन के प्रचार मंत्री बनाए गए थे। उनके जीवन का उद्देश्य था समस्त मानवता को सुखी बनाना। उन्होंने अदालत को राजनीतिक प्रचार प्रचार का माध्यम बनाया। असेंबली में बम फेंकने के बाद उनके द्वारा लगाए गए नारे इस प्रकार थे,,,, सर्वहारा वर्ग जिंदाबाद, समाजवादी क्रांति जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद।
क्रांति से उनका मतलब था मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को खत्म करना। वे कहा करते थे कि शोषकों को खत्म करके यह दुनिया हमें स्वर्ग बनानी है। उन्होंने भगवान और धर्म की निरर्थकता पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि मेरा धर्म है इस धरती को स्वर्ग बनाना। उन्होंने अदालत को क्रांतिकारी प्रचार का माध्यम बनाया। साम्यवाद भगत सिंह का प्रिय विषय था। जेल के अधिकारियों से होने वाले झगड़ों में भगत सिंह सबसे आगे रहते थे।
उन्होंने नौजवानों को मुक्ति का राही बताया, लोगों को जगाया और संगठित होना सिखाया। समाज में फैली मायूशी और लाचारी को दूर किया और खोये हुए आत्मविश्वास को जगाया। वे धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे और और धर्म को केवल व्यक्तिगत विषय मानते थे। वे समस्त प्रकार की ऊंच नीच और छोटे-बड़े की सोच का खात्मा करना चाहते थे। वे समाज का क्रांतिकारी समाजवादी रूपांतरण चाहते थे। उन्होंने कांग्रेस को समझौतावादी और उसी सत्ता तंत्र कायम रखने वाला संगठन बताया था।
भगत सिंह ने पूर्ण मुक्ति का उद्घोष किया, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद के नारे को किसानों मजदूरों और नौजवानों का नारा बनाया और क्रांति की व्याख्या की। उनका लक्ष्य समाजवादी समाज कायम करने का था। उन्होंने क्रांति के लिए किसानों मजदूरों को संगठित करने का आह्वान किया था। उन्होंने क्रांति की यथार्थवादी वैज्ञानिक अवधारणा स्थापित की तथा क्रांति की अवैज्ञानिक अवधारणा को नकारा, खारिज किया। उन्होंने कांग्रेस के समझौतावादी ढुलमुल रवैए को पहचाना और उसके अवसरवादी की अवलोचना की।
उनका कहना था कि हमारी क्रांति और हमारा क्रांतिकारी युद्ध, शोषण, गैरबराबरी, भेदभाव और अन्याय के खात्मे तक जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि पूंजीवाद और साम्राज्यवाद समस्त युद्धों की जड़ हैं।उनका मानना था कि शोषक वर्ग व्यवस्था के खात्में तक चिरशांति कायम नहीं हो सकती। वे मातृभाषाओं के समर्थक थे। उन्होंने धर्म और भगवान की अवांछनीयता पर अपने तर्कसंगत विचार रखें। उन्होंने तार्किकता और विवेक संपन्न मानवीय दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया और अपनाया। उन्होंने ईश्वर और धर्म का तार्किक खंडन किया। उन्होंने बताया कि ईश्वर और धर्म, शोषक शासक लोगों द्वारा अपने शोषण को बरकरार रखने के औजार हैं और शोषक शासक वर्ग इस संसार की समस्त समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं।
धर्म, राजनीति और सांप्रदायिकता को लेकर भगत सिंह के अपने निश्चित विचार थे। “दंगे और उनका इलाज” अपने लेख में भगत सिंह कहते हैं कि धर्म राजनीति से अलग है। धर्म व्यक्ति का निजी मामला है, इसे राजनीति में नहीं घुसना चाहिए और दंगों का इलाज बताते हुए वे अपने लेख में लिखते हैं कि वर्ग चेतना ही सांप्रदायिक दंगों को रोक सकती है। “विद्यार्थी और राजनीति” अपने लेख में भगत सिंह कहते हैं कि हमारे विद्यार्थी पढ़े लिखें, अकल के अंधे न बनें। पढ़ने के साथ ही वे राजनीति का ज्ञान भी हासिल करें और जब जरूरत पड़े तो राजनीति में कूद पड़ें, क्योंकि सभी देशों को आजाद करवाने वाले वहां के विद्यार्थी और नौजवान ही हुआ करते हैं। उन्हें एक भारी क्रांति की जरूरत है। वह पढ़ें और जरूर पड़ें और साथ ही पोलिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करें।”
क्रांति को लेकर भगत सिंह के विचार इस प्रकार हैं,,,,,हर रक्तपात या हिंसात्मक काम को क्रांति नहीं कहा जा सकता।,,,, गांव और कारखाने में किसान और मजदूर ही असली क्रांतिकारी सैनिक हैं। ,,,,हमें पेशेवर क्रांतिकारियों की जरूरत है जिनकी क्रांति के अलावा और कोई आकांक्षा ने हो और अपने जीवन का दूसरा लक्ष्य न हो ,,,,,किसानों मजदूरों की अपनी पार्टी हो, इस पार्टी को कम्युनिस्ट पार्टी का नाम दिया जा सकता है।,,,,, क्रांति से हमारा अभिप्राय है कि वर्तमान व्यवस्था जो खुले तौर पर अन्याय पर टिकी है बदलना चाहिए।,,,, इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।,,,,, क्रांति जनता द्वारा जनता के हित में।,,,, हमारा उद्देश्य एक ऐसी क्रांति से है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अंत कर देगी।,,,, क्रांति से हमारा अभिप्राय है अन्याय पर टिकी हुई मौजूद समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।,,,, क्रांति मानव जाति का जन्मजात अधिकार है जिसका अपहरण नहीं किया जा सकता।,,,, हमारे इंकलाब का अर्थ पूंजीवादी युद्धों की मुसीबत का अंत करना है।,,,, हम वर्तमान ढांचे के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के पक्ष में हैं। ,,,,हम शाश्वत और वास्तविक क्रांति चाहते हैं जिसका आधार न्याय और समानता हो। ,,,, नौजवानों को क्रांति का संदेश देश के कोने-कोने में पहुंचना है, कारखाने के क्षेत्रों में, गंदी बस्तियों में और गांव की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले लोगों में क्रांति की अलख जगह नहीं है जिससे आज़ादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण करना असंभव हो जाएगा। ,,,,,हमारी क्रांति मजदूर तथा किसानों का राज्य काम करेगी।,,,, क्रांति से ही देश को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी।,,,,, हमारी परिभाषा के अनुसार इंकलाब का अर्थ है मौजूदा सामाजिक ढांचे में पूर्ण परिवर्तन करना और समाजवाद की स्थापना करना। ,,,, हमारा आदर्श है नए ढंग की सामाजिक संरचना यानी मार्क्सवादी ढंग से हम समाजवादी क्रांति चाहते हैं।
आजादी मिलने के बाद भगत सिंह और उनके साथियों के अधिकांश विचारों को भारत के संविधान में शामिल किया गया, मगर आज 78 साल की आजादी के बाद हम देख रहे हैं कि यह भगत सिंह और उनके साथियों के सपनों का भारत नहीं है। यहां आज भी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक मतभेद और समस्याओं का जाल कायम है। सांप्रदायिकता, बेरोजगारी, गरीबी, जातिवाद की समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों भगत सिंह को के ऊपर गलत आरोप लगाए गए और उनके बारे में गलत जानकारियां दी गईं। आज यह हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि हमारे शहीदों को बदनाम करने के ऐसे प्रयासों का हम जमकर जवाब दें और उनके सही विचारों का जनता के बीच प्रचार-प्रसार करें। आज देश के छात्रों, नौजवानों, किसानों, मजदूरों और तमाम मेहनतकशों को भगत सिंह की क्रांतिकारी समाजवादी विचारों को जनता के बीच ले जाने की जरूरत है। भगत सिंह के विचारों पर चलकर ही हमारे देश की जनता का सही मायनों में विकास हो सकता है।