रणबीर सिंह ‘रोहतकी’ : न्यायप्रिय, नेक इन्सान और बिना लाग-लपेट सच कहने वाले

हरियाणा: जूझते जुझारू लोग-16

रणबीर सिंह ‘रोहतकी’ : न्यायप्रिय, नेक इन्सान और बिना लाग-लपेट सच कहने वाले

सत्यपाल सिवाच

वही रणबीर सिंह ‘रोहतकी’, जिन्हें तमाम पुराने कार्यकर्ता इसी नाम और बड़े आयोजनों में हंसी-हंसी में आन्दोलन के लिए प्रेरित करने वाली बातों के लिए जानते हैं। मेरा उनसे परिचय सन् 1987 में ऐसे ही सर्वकर्मचारी संघ की सभाओं में हुआ था। वह एकतरफा था। बाद में प्रत्यक्ष परिचय होने पर पता चला कि वे बहुत नेक इन्सान हैं, न्यायप्रिय हैं और बिना लाग-लपेट सच कहने का साहस रखते हैं।

 

रणबीर सिंह का जन्म मई दिवस के ऐतिहासिक मौके पर 01 मई 1952 को रोहतक जिले के बिधलान गांव में सुश्री भरपाई और प्रेमराज के यहाँ हुआ था। पाँच भाई और एक बहन में से अब दो मौजूद हैं। उनका गांव अब सोनीपत जिले के खरखौदा ब्लॉक में आता है। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की। स्कूल स्तर पढ़ते हुए वे वैज्ञानिक मिजाज के बालक के रूप में विकसित हो गए थे। उन्हें अब भी अपने विज्ञान शिक्षक द्वारा बताई हुई अनेक बातें याद हैं। रणबीर को 18 अप्रैल 1976 को क्लीनर के रूप में सिंचाई विभाग रोहतक में नियुक्ति मिली। थोड़े समय बाद ही सिरसा भेज दिया गया और 30 अप्रैल 2010 को चालक पद से सेवानिवृत्त हो गए। उनकी पत्नी और परिवार ने सहयोग दिया है। दो बेटे थे जिनमें से एक मृत्यु हो गई। दूसरा नेवी से रिटायर होकर बैंक में कार्यरत है।

सिरसा वास ने उनके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया। वे जहाँ किराए पर कमरा लेकर रहते थे उसके पड़ोस में सीटू और सीपीएम के नेता कामरेड अवतार सिंह का निवास था। कामरेड के संपर्क ने उनके जीवन को न केवल बदल दिया, बल्कि एक समर्पित क्रांतिकारी के रूप में रूपांतरित कर दिया। उस समय सिंचाई विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का एक साझा मोर्चा था। एफ. सी.भंडारी और भिवानी से चावला इसके नेता थे। वे पदाधिकारी नहीं थे लेकिन बैठकों में चले जाते। अन्याय विरोधी मानसिकता बचपन से ही थी। गलत बात लगती तो भिड़ जाते। इसलिए यूनियन के कार्यक्रमों में जाने लगे।

1984 तक ‘रोहतकी’ सक्रिय हो गये थे। सिरसा कर्मचारी संगठन पहले से था। बाद में जेपी पांडेय प्रधान, जितेंद्र लोहिया बीमा वाले को महासचिव बनाया गया। इसमें रेलवे के  रामस्वरूप भी सक्रिय नेता थे। बलजीत सिंह नरवाल एडीओ काफी जागरूक एवं सक्रिय थे। वे फेडरेशन में सक्रिय थे। राजेन्द्र अहलावत भी कुछ समय बाद जुड़ गए। वहाँ रामकुमार कादयान मैकेनिकल, पूर्ण सिंह, बुद्धि सिंह, रतन जिन्दल आदि भी सक्रिय थे।

सुखदेव सिंह भी वहीं थे। वेदमुंडे, सुखबीर ढांडा, कर्मबीर  शास्त्री, परमानंद शास्त्री, जोगेंद्र सिंह, दिलबाग गिल व प्रेम मिस्त्री रोडवेज आदि थे। वे निजी तौर पर मास्टर गुरटेक सिंह, चमकौर सिंह और माणिक लाल से प्रभावित रहे।

‘रोहतकी’ के अनुभव भी महत्वपूर्ण हैं। वे वर्कचार्ज लगे थे। संगठन में कभी किसी पद पर नहीं रहे, लेकिन सदा सक्रिय रहे और छोटे-बड़े हर कार्यक्रम की व्यवस्था में शामिल रहते। नेता उन्हें काम देकर आश्वस्त हो जाते थे।

वे बताते हैं कि चौटाला शासन में बहुत से कार्यकर्ता भयभीत हो गए थे। बलजीत नरवाल, मैं (‘रोहतकी’) तथा दो-तीन कार्यकर्ता ही गेट मीटिंग्स के लिए जाते थे। किशोरीलाल मेहता मजबूत शख्स हैं। आन्दोलन के दौरान ‘रोहतकी’ सवा दो महीने नगरपालिका हड़ताल में, 15 दिन देवीलाल के शासनकाल में और तीन दिन सन् 1993 में जेल में रहे। एक बार चार्जशीट किया गया था।

आज के हालात को लेकर रणबीर  ‘रोहतकी’ जागरूक भी हैं और चिंतित भी। वे कहते हैं कि अंधविश्वास बढ़ रहा है, जिसका मुकाबला मुश्किल है। इसके खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। वामपंथ कमजोर है और कांग्रेस पार्टी ध्यान नहीं देती। विपक्ष के नाते उन्हें यह अभियान चलाना चाहिए था। भाजपा का वैचारिक आधार बड़ा हो चुका है। सत्ता में आने के कारण संसाधनों की कमी नहीं रही और दूसरों को दबाने के सत्ता का नाजायज इस्तेमाल किया जाता है। इसका मुकाबला जागरूक जनता ही कर सकती है।

रणबीर अब भी सक्रिय एवं जागरूक हैं। सेवानिवृत्त होते ही कुछ साल माकपा राज्य कार्यालय की गाड़ी स्वेच्छा से चलाई। अब किसान सभा के कार्यक्रमों के अलावा शहर में होने वाले संघर्षों में अवश्य शामिल होते हैं। पिछले दिनों रिटायर्ड कर्मचारी संघ हरियाणा के रोहतक जिले के कोषाध्यक्ष चुने गए। दैनिक अखबार पढ़ना और साप्ताहिक लोकलहर का बेसब्री से इन्तजार उनकी जागरूकता का साक्ष्य माना जा सकता है।

‘रोहतकी’ को लगता है कि अब के कार्यकर्ता स्वयं को झोंकते नहीं। गात बचाकर लगने से लड़ाई नहीं उठती। वैचारिक चेतना के साथ ही सक्रियता भी जरूरी है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद उत्साह कम देखी जा रही है। लोगों को उम्मीद नहीं है। नेतृत्व का काम है कि जुझारू संघर्षों के जरिये उम्मीद जगाए। पद लोलुप नेतृत्व धीरे धीरे बड़ी राजनीतिक पार्टियों की ओर आकर्षित हो जाता है। नीचे से कार्यकर्ता तैयार करना मुख्य काम होना चाहिये।

इस प्रस्तुति में कलाकारों ने प्रकृति की सृजन प्रक्रिया को साध लिया । वो अभिनय को कला की नई पराकाष्ठा तक ले गए। अभिनय का ऐसा क्षितिज साधा जो विरल है,अद्भुत है और एक हद तक असंभव !

नाट्य प्रस्तुति में दर्शक मानो कुर्सी पर नहीं अपनी अर्थी पर बैठे हों और उनका चैतन्य स्वरूप उन्हें आलोकित कर रहा हो । 40 वर्ष के रंग अनुभव में मैंने ऐसी प्रस्तुति नहीं देखी । सौजन्यः ओम सिंह अशफ़ाक

लेखकः सत्यपाल सिवाच

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *