हरदीप सबरवाल की कविताएं

1. रिपोर्ट

दम घुटने से मारा गया वो,
सीवर साफ करते वक़्त,
आस पास के चंद दुकानदार
जो अब तक देखते थे उसे हिकारत भरी नजर से,
उसको मिलती मोटी सरकारी तनख़ाह को कोसते थे
जातिगत टिप्पणियों के साथ,
आज सहानुभूति से देख रहे उसकी लाश को,
यूं लाश की कोई जाति तो होती नहीं
और सभ्यता भी यही कहती कि लाश का सम्मान है जरूरी,
जैसे रुक कर प्रणाम करते लोग रास्ते में
किसी अनजान अंतिम यात्रा को,
जब वो जिंदा था
आम इंसान सा हंसता बोलता
अपने पहचान वालों को ठेके पर काम करते शोषित होते देख
ईश्वर का कोटि कोटि धन्यवाद करता
अपनी स्थाई सरकारी नौकरी पर,
और सपने वही देखता
अपने बच्चों के अफसर बनने के,
घर बैठे मर जाता तो भी उसकी लाश
सहानुभूति बटोर ही लेती
लेकिन कुछ लाशें राजनीति के लिए भी होती,
और अखबार की खबर बनने के लिए भी
अब उसकी लाश धरने पर जाएगी
मुआवजे, अनुकम्पा नियुक्ति की मांग होगी,
और सरकार भी अपनी दलित हितेषी छवि को भुनाते हुए
आधी, पौनी मांगे स्वीकार कर उसके अंतिम संस्कार का रास्ता साफ करेगी
इधर कोई एक पत्रकार एक रिपोर्ट बना देगा
अब तक कितने कर्मियों की मौत सीवर में दम घुटने से हुई,
और वो भी उस गिनती में शामिल हो जाएगा,
लेकिन ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं होती
जो बता सके कि
जीते जी कितनी बार उसका दम घुटा
जीते जी कितनी बार वो सीवर लाइन में मरा…

2. भौंकना

एक कुत्ता जब भौंकता है,
उसका साथ देने
उसकी भौंक में भौंक मिलाते हैं,
आसपास के और कुत्ते,
भौंकना संक्रामक है

२.

मुख्य कुत्ते की भौंक
जब धीमी पड़ती
अन्य सारी भौंक भी शनै शनै थमने लगती
सांस लेने को,
कि भौंकना लगातार चलने वाली प्रक्रिया नहीं,
क्रिया की एक अवस्था भर है

३.

भौंकने की सबसे बड़ी खासियत है
उसका समवेत संगीत में चारों तरफ फैलना,
और अन्य सभी आवाजों को अपनी गूंज से दबा देना,
ताकि स्थापित रहे भौंक का साम्राज्य
मुंह के किनारे से निकलते नुकीले दांत
और गुर्राहट…

 

3.  तमीज

ब्रांडेड होने का दिखावा करते
फैशनेबल कपड़ों सी होती है,
अलग अलग मौकों के लिए अलग,

कई जगह तो इतनी आधुनिक
कि दिखती तो बिल्कुल नई और सभ्य है,
पर बीच में से फटी हुई होती हैं…

4. कमरा और दिल

कमरा खाली करते वक्त
जाने वाला
समेट लेता है सभी जरूरी सामान
और छोड़ देता है
फालतू सामान
यहां वहां बिखरा सा
कमरे की मानिंद ही
जब दिल से निकल कर जाता है कोई
तो वो ले जाता है साथ अपने
सारी की सारी
जीवन को जीवन देती
जरूरी खुशियां
और छोड़ जाता है तमाम अवसाद
खाली कमरा भरा रहता है कबाड़ से
और खाली दिल दुखो के पहाड़ से,
फिर एक दिन
खाली कमरे को अपनाने
कोई आता है
बाहर कर सारे कबाड़
उसे करीने से सजा
नए रंग और नई रोशनी से
भर देता
दिल से भी
कोई नया रिश्ता
जब जुड़ता है
बुहार कर बाहर कर देता है
पुरानी धूड़ सरीखे दुखों को,
और फिर से सजा देता है
नई उंमगें, नई तरंगें
नये प्यार सी…

 

 

 परिचय

हरदीप सबरवाल लंबे समय से कविताएं लिख रहे हैं। उनकी कविताएं हिंदी और अंग्रेजी की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। प्रतिबिम्ब मीडिया में पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं।