रवीश कुमार के जन्मदिन पर राजनेता और कवयित्री सरला माहेश्वरी ने एक संदेश के साथ कविता लिखी है। यह कविता अरुण माहेश्वरी ने अपने फेसबुक वॉल पर प्रकाशित की है। इस मौके प र रवीश को जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ और सरला और अरुण जी से साभार के साथ यह कविता वैसे ही यहां प्रस्तुत की जा रही है। संपादक
आज पाँच दिसम्बर ! हमारे समय के प्रखर और जागरुक पत्रकार, अँधेरे समय में प्रतिवाद और प्रतिरोध की बुलंद आवाज Ravish Kumar को उनके जन्मदिन की पूर्व संध्या पर इस कविता के साथ बहुत बहुत बधाई।
कविता
तदात्मानं सृजाम्यहम् !
-सरला माहेश्वरी
ओ रवीश कुमार !
क्या दिखा रहे थे तुम
खोड़ा और बुलंदशहर !
ये लंबी क़तारें
परेशान, ग़रीब, दुखियारे
ऐसा रोना-गाना
जैसे हो गयी हो घर में कोई
कच्ची मौत !
औरतों का पेट से होना,
बहू के इलाज के लिये
बूढ़े का गिड़गिड़ाना !
कोई बड़ा आदमी नहीं
न कोई चमक-दमक
चेहरों की हवाइयाँ उड़े किसानों की फ़ौज
अपना पहचान पत्र लाने को भागे बाप की जगह
लाइन में लगे बेटे की मौत !
यह सब क्या है ?
चैनलों की दुनिया में क्या
किसी मोहनजोदड़ों की खुदाई !
या वैदिक सरस्वती की
कोई काल्पनिक खोज !
अरे ! यह रोज़ के भारत की
ज़िंदा हक़ीक़तें
चैनलों के लिये
एक अर्वाचीन काल्पनिक जगत है !
कल्पना में भी क्या कोई
इसमें ज़िंदा उतरता है !
यह तो ईश्वर का करिश्मा है
बिना धर्म की हानि के
वह धरती पर आयेगा कैसे ?
अपने को पुजवायेगा कैसे ?
देखा नहीं तुमने
दूतों को उसके
मोटे-तगड़े
नारे लगाते
अभी से लोगों को
पूजा की विधि सिखाते !
तुम जब उनसे डर गये थे
जरूर लगा होगा
यह तो जगत ही और है !
लेकिन यही है
सदियों-सदियों पुराना
विश्व का ज्ञान गुरू भारत !
जान लो रवीश कुमार
यह भगवान के अवतार की तैयारी है !

कवयित्री – सरला माहेश्वरी
