कविता
मक़सद-ए-ज़िंदगी
एस.पी. सिंह
साँस रुकती नहीं, दिल ठहरता नहीं,
राह बदलती है पर सफ़रता नहीं।
दर्द ने फूल सा रंग भर दिया,
ज़ख़्म अब आईना है, डरता नहीं।
ख़्वाब की ख़ुशबूओं में जल गया,
ये दिया रात से उधरता नहीं।
हर तरफ़ शोर है, मैं सुकूँ में हूँ,
अब कोई हालात से डरता नहीं।
मक़सद-ए-जुस्तजू वही “बेबाक” है,
जो मिले, फिर भी कुछ ठहरता नहीं।