अभिनय
मंजुल भारद्वाज
1.
अभिनय पानी पर लिखी
तहरीर है !
हवा के कैनवास पर बनाई
तस्वीर है!
आग में तपी
तक़रीर है !
मिट्टी की
प्राण चेतना है!
आकाश में
स्पंदित तरंग है!
2.
अभिनय पानी पर लिखी
तहरीर है
जिसे प्यासे ही पढ़ते हैं!
अभिनय
हवाओं में बसी खुशबू है
जिसे सांसें ही सूंघती हैं!
अभिनय
सहरावों की ख़ाक है
जिसे रूहें छांनती हैं!
अभिनय
मिट्टी का प्राण हैं
जिसे सृजनकार साधते हैं !
अभिनय
चेतना की लौ है
जिसे बाती ही महसूस करती है!