कुलभूषण उपमन्यु की कविता-पाती

कविता

पाती

कुलभूषण उपमन्यु

मैंने उसको भेजी पाती 

वह मेरा कोई शत्रु नहीं था,

और न कोई मीत कहीं था,

हंसती गाती प्रीत नहीं था,

आशा का संगीत नहीं था,

सपनों की कोई जीत नहीं था,

वह था मन का सोया कोना,

सहज बालकपन सा होना,

तनिक खुशी में खुल कर हंसना,

जरा से दुःख में खुल कर रोना,

अगले पल कोई बोझ न ढोना,

मन का ताजा हल्का होना,

मिला जो उतना ओढ़ बिछौना,

मुक्त चित्त प्रति पल यूं होना,

मैंने उसको भेजी पाती।

जग की अंधी दौड़ भाग में,

सुलगी चंहु दिशि गुप्त आग में,

लालच पूरित तप विराग में, 

विष संचित कोमल पराग में,

डूबे उतरे अहं राग में,

कैसे कोई सुख से जीता,

प्रेम पूत शीतल जल पीता,

नहीं लगाता कोई पलीता,

मस्ती में गाता वह गीता,

सादा जीवन मीत सुभीता,

सोच जहां से है वह आती, मैंने उसको भेजी पाती।

—————-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *