एकजुट जन संग्राम ही राहत दिलाएगा बिहार की जनता को
मुनेश त्यागी
जात धरम के सब झगड़े छोड़ो
समता- ममता की बात करो,
बहुत रह लिए हो अलग-थलग
अब मिलने जुलने की बात करो।
पिछले काफी दिनों से बिहार खबरों और चर्चा में बना हुआ है। वहां लगातार होती आपराधिक घटनाएं बता रही हैं कि बिहार कानून विहीन राज्य में बदल गया है, जहां न इंसानों की जान की सुरक्षित है और ना ही बहन बेटियों की इज्जत। अब तो अपराधी और दुष्कर्मी बेखौफ होकर मानवता को रौंद रहे हैं। वहां जैसे कानून नहीं माफियाओं, गुंडों और हत्यारों का राज कायम हो गया है। पिछले 20 दिनों में 35 से अधिक हत्याएं हो चुकी हैं।
बिहार में लूट, बलात्कार, अपहरण हत्याओं और भ्रष्टाचार की सुनामी आई हुई है। नीतीश राज में पिछले 17 वर्षों में 53,150 से ज्यादा हत्याएं दर्ज हो चुकी हैं। पिछले दिनों नवादा में दबंगों ने महा दलितों के घर फूंक दिए और खुले आम सैकड़ों राउंड गोलियां चलाईं। बिहार की सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं और वह 71,000 करोड रुपए का कोई हिसाब नहीं दे रही है। हालात बता रहे हैं कि बिहार में अब न जनता सुरक्षित हैं, न बहन बेटियों की इज्जत और ना ही व्यापारियों का धंधा सुरक्षित है।
वर्तमान डबल इंजन की सरकार ने बिहारी के भविष्य से भयंकर और क्रूरतम खिलवाड़ किया है। वहां के लोगों की लोकतांत्रिक आवाज को कुचल दिया है। वहां सत्ता और कुर्सी सिर्फ पैसा, मुनाफा और पदों पर बने रहने का जरिया बन कर रह गई है। बिहार की डबल इंजन की सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं पर अपना मनमाफिक और एकतरफा कब्जा कर लिया है और आजाद मीडिया को खत्म करके उसे सिर्फ गोदी मीडिया बना दिया है। भारतीय मीडिया का कितना पतन हुआ है कि उसने जन समस्याओं को न उठाने की कसम खा ली है और जैसे वह जन विरोधी मीडिया बनकर रह गया है और सरकार और अपने मालिकों का गुलाम बन गया है।
बिहार में बेरोजगारी जैसे सबसे ऊंचे पहाड़ पर चढ़ गई है और वहां नौकरियों का अकाल पड़ा हुआ है। वर्तमान सरकार द्वारा अपने कार्यकाल में कितने नौजवानों को नौकरियां दी गई, कितने सरकारी और प्राइवेट शिक्षण संस्थाएं खोली गई और कितने सरकारी और निजी अस्पताल बनाए गए, इस बाबत सरकार कोई आंकड़ा पेश नहीं कर रही है। नौकरियों के लिए बिहार के सबसे ज्यादा नौजवान दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर हैं। यही हाल आधुनिक किस्म की शिक्षा लेने वाले छात्र-छात्राओं का है। वहां जैसे उन्नत शिक्षा का अकाल पड़ा हुआ है। नीतीश सरकार की कार्य प्रणाली बता रही है कि उसका भारत के संविधान के संविधानिक सिद्धांतों, नीतियों और मूल्यों को जमीन पर उतरने का उन्हें लागू करने का कोई इरादा नहीं है। वह तो केवल मोदी सरकार का मोहरा बनकर रह गई है जो सबका साथ सबका विकास का नारा लेकर सरकार में आई थी। नितीश सरकार द्वारा लागू की जा रही नीतियों के कारण बिहार की जनता और बिहार का विकास नहीं, बल्कि बिहार और बिहार की जनता का विनाश किया जा रहा है।
बिहार के हालात बता रहे हैं कि देश में शिक्षा और स्कूल कॉलेज का स्तर बिहार में सबसे नीचे स्तर पर पहुंच गया है। वर्तमान राज्य सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में क्या उन्नति और प्रगति की है वह कोई जानकारी बिहार की जनता या देश की जनता को नहीं दे रही है। मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए चुनाव आयोग मनमानी करके, लोगों से वोट का अधिकार छीनने पर आमादा है। चुनाव आने वाले हैं, अब यह बिहार की जनता और देश के जागरूक नागरिकों को तय करना है कि बिहार में एनडीए की डबल इंजन की सरकार का खात्मा करके जनता, बहन बेटियों, शिक्षा, रोजगार और कानून व्यवस्था को बनाए रखने वाली सरकार को सत्तारूढ करें और इस वर्तमान जन विरोधी, कानून विरोधी, रोजगार विरोधी और शिक्षा की हत्यारी और किसान मजदूर सरकार को सत्ता और गद्दी से बेदखल कर दें ।
यहीं पर सबसे जरूरी और मुख्य सवाल उठता है कि ऐसे में क्या किया जाए? वर्तमान ख़तरनाक हालातों में यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि देश और बिहार प्रदेश के जागरूक और जनप्रतिबद्ध लेखकों, कवियों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं वकीलों और किसान मजदूर के प्रगतिशील और सामाजिक न्याय के तमाम संगठनों की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। अब यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि वे सब मिले-जुलें, एकजुट हों और जनता की मुक्ति का रास्ता निकालते हुए मिलजुल कर एक जन कल्याणकारी कार्यक्रम बनाकर, जनता के बीच में जाएं, उसे शिक्षित, संगठित करें और जातिवाद, सांप्रदायिकता और ऊंच नीच की सोच और मानसिकता में बंटी जनता को बंटने से रोकें, उसे एकजुट करें और उसे संघर्ष के रास्ते पर लायें और उसे जनकल्याणकारी इंकलाब का और सामाजिक न्याय का रास्ता दिखाएं और उसे संगठित संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ाएं।
अब यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि बिहार और देश के तमाम जागरूक लोग और नेता सरकार से पूछे कि उसने किसानों, मजदूरों, छात्रों और नौजवानों के लिए क्या किया है, उन्हें क्या दिया है? अब जनता जुल्मों को स्वीकार न करे। हक, न्याय, रोजगार, शिक्षा, न्यूनतम वेतन वेतन और किसानों को फसलों का वाजिब दाम मिले। अब बिहार की जनता सिर्फ मूर्ख दर्शक बनकर अलग-अलग और आपस में बंटकर न रहे। अच्छा हो कि शहीद-ए-आजम भगतसिंह और उनके साथियों का इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ एकजुट होकर, फिर से नये हौसलों और प्रतिबद्धता के साथ, सड़कों पर उतर आए और वह बिहार से इंकलाब जिंदाबाद के नारे को सार्थक करते हुए, एक नये जनकल्याणकारी क्रांतिकारी इतिहास की शुरुआत करे।
हालात बता रहे हैं कि यह मुक्ति संग्राम बिना देरी किए ही जल्द से जल्द शुरू किया जाए। इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। अब एकजुट जन संघर्ष ही बिहार की जनता को कानून विहीनता, बेरोजगारी, गरीबी, हत्या, लूट, अपहरण और बलात्कार की आंधी से मुक्ति दिला सकता है। यह एकजुट संघर्ष ही बिहार की जनता को सबको शिक्षा सबको काम, किसानों को फसलों का वाजिद दाम, सारे मजदूरों को न्यूनतम वेतन, सबको सस्ता और सुलभ न्याय और सबको सामाजिक न्याय और जमीन की हदबंदी की जनकल्याणकारी नीतियों को जमीन पर उतारने में सक्षम बनायेगा। इसके अलावा जनता, नेताओं और जनकल्याणकारी कार्यकर्ताओं के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। हम तो यहां पर यही कहेंगे,,,
सारे ताने- बाने को बदलो
खुद भी बदलने की बात करो,
हारे थके आधे अधूरे नहीं
पूरे इंकलाब की बात करो।
(यह लेखक की अपनी राय है, संपादक का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
लेखक- मुनेश त्यागी