ओमप्रकाश तिवारी की लघुकथा – अंधेरी गली 

लघु कथा

अंधेरी गली

ओमप्रकाश तिवारी

 

– आपके साथ ऐसा क्यों होता है?

– ऐसा क्या? मेरे साथ तो कुछ न कुछ होता ही रहता है।

– यही कि जो तारीफ़ करते हैं। जो शुभचिंतक बनते हैं वे अहम मौकों पर अगर-मगर लगा देते हैं। किंतु-परंतु करके बनते काम को ख़राब कर देते हैं। फिर संवेदना भी जताते हैं।

– नहीं साहब, अहम मौकों पर नहीं ये हमेशा ही यही करते हैं। दरअसल, जुगाड़ और चमचागिरी की अपनी एक संस्कृति होती है। ये एक तरह की लत है। इसीलिए इसे लतखोरी भी कहते हैं। जिसे यह लत लग जाती है तो फिर छूटती नहीं है। मैं इस संस्कृति का उत्पाद नहीं हूँ। मुझमें अपना और दूसरों का मूल्यांकन और आकलन करने की मेधा और क्षमता है।

– आपको पसंद नहीं करते?

– नहीं। दीनता हमारी संस्कृति में है। भक्त और ईश्वर का संबंध आदर्श माना गया है। कहा जाता है कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है। लेकिन ब्रह्मांड की रचना एक कुदरती परिघटना है। इसी तरह धरती का बनना और उस पर जीव की उत्पत्ति भी प्राकृतिक संरचना है, लेकिन लतखोरी-चमचागीरी मानव संस्कृति है। यह ईश्वर भक्ति से उत्पन्न होती है। इसके लिए दीन हीन बनना पड़ता है। सुदामा पर दया की गई थी और अर्जुन को उपदेश दिया गया था। भगवान ख़ुद सारथी बन गए थे। इंसान दया उस पर करता है, जिसमें स्वाभिमान नहीं होता। जिसमें स्वाभिमान होता है वह दीन नहीं होता है।

यह एक कॉर्पोरेट कंपनी के दो मित्र कर्मचारीयों की आपसी बातचीत थी। इसके बाद एक ने दूसरे को एक कहानी सुनाई।

एक गांव में एक क नाम का 16 साल का लड़का था। उसके पिता ग़रीब किसान थे। लड़के की उम्र के गाँव के लड़कों ने एक क्रिकेट टीम बनाई। सबसे चन्दा लिया गया। जिसके पिता आर्थिक रूप से सक्षम थे उन्होंने ज़्यादा चंदा दिया और कप्तान-उपकप्तान बन गए। टीम के निर्णय अधिक चंदा देने वाले ही लेते। वही पहले बैटिंग और बॉलिंग भी करते। क को टीम में जगह मिली थी उसके खेल की वजह से। एक कारण यह भी था कि क्रिकेट टीम में 11 खिलाड़ी होने जरूरी होते हैं। क अंतिम खिलाड़ी था।

एक दिन वह गांव की टीम का प्रमुख खिलाड़ी बना। इसके पीछे उसकी मेहनत थी। घर पर अकेले घंटों गेंदबाज़ी का अभ्यास करने की वजह से वह बेहतरीन गेंदबाज़ी करने लगा था। दूसरे गाँव की टीम वाले भी उसे अपने साथ खेलने के लिए बुलाने लगे थे। क्षेत्र में उसकी एक अच्छे तेज गेंदबाज के रूप में पहचान बन गई थी। ज़ब तक गांव में रहा उसकी अहमियत बनी रही। बालिग होते ही उसकी पढ़ाई छूटी और छूट गया गाँव भी। साथ ही क्रिकेट का खेल भी। अब वह ज़िन्दगी के खेल में पिछड़ गया है। मेहनत पर उसे अब भी भरोसा है लेकिन जुगाड़ संस्कृति से अब भी अनभिज्ञ है।

वे अपने दफ्तर से बाहर निकल कर सड़क पर आ गए।

रात में सड़क दूधिया रोशनी से जगमगा रही थी।

ये चांदनी रात नहीं थी। मानव निर्मित रोशनी से रात जगमग थी।

वे दोनों एक अंधेरी गली में खो गए…