कविता
जननायक की कथा
ओमप्रकाश तिवारी
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आभासी
उत्सवी माहौल
से निपट कर
मीडिया मेड
धीरोदात्त नायक
पांवों के छाले
सहलाते हुए
खेलेंगे शतरंज
किसी एक के
हाथी, वजीर, घोड़े
पिट जाएंगे
रानी लुट जाएगी
पर मात
नहीं होगी
खेल भी तो
आभासी है
यहां केवल
शह का
अभ्यास है
मात का
उतसव है
शारीरिक
थकान का
वोटों से
गुणा भाग है
बूटों तले
कुचली गईं
गुलाब की
पंखुड़ियों की
कराह से
अनुमान
लगाया जाएगा
गरीब की
आह का
फिर रथ पर
सवार होकर
निकलेगा
जन मसीहा
कुबेरपतियों के
खजाने से जोड़
बैंक खाता
बारिश करेगा
सिक्कों की
जो यकीनन
नीचे नहीं गिरेंगे
लोक लिए जाएंगे
आभासी संसार में
सपने चुराए जाएंगे
पूरा करने की
हुंकार भर कर
कृतिम बादल
बरसेंगे तो सही
लेकिन उनके यहां
जहां से नायक के
खाते में आ रहा धन
इस तरह फिर
प्रस्तुत किया जाएगा
एक जननायक ।