ओमप्रकाश तिवारी की कविता -सन्तान मोह और मानव सभ्यता

कविता

सन्तान मोह और मानव सभ्यता
…….

ओमप्रकाश तिवारी

क्या दो जून की रोटी के लिए

जिंदगी पर जिल्लतें झेलता है इंसान?
पेट की रोटी एक वजह हो सकती है
यकीनन पूरी वजह नहीं हो सकती
दरअसल, इंसान के तमाम सपनों में
सबसे बड़ा ख्वाब होता है परिवार
जिसमें माता-पिता नहीं होते शामिल
केवल और केवल बच्चे होते हैं दायरे में
इस तरह हर युवा संतान की परिधि से
बाहर हो जाते हैं माता-पिता
जरूरी हो जाते हैं अपने बच्चे
जब उनके बच्चों के होते हैं बच्चे
तब वह भी चुपके से कर दिए जाते हैं खारिज
फिर उन्हें भान होता है अपनी निरर्थकता का
लेकिन तब तक हो गई होती है देरी
मानव सभ्यता के विकास की कहानी
संतान मोह की कारूण कथा है
जहां हाशिये पर रहना माता-पिता की नियति है
संतान मोह से जिस दिन उबर जाएगा इंसान
उसी दिन रुक जाएगी मानव सभ्यता की गति
फिर न परिवार होगा न ही घर
न समाज होगा न कोई देश
छल-प्रपंच ईर्षा-द्वेष भी खत्म
बाजार और सरकार भी खत्म
जिंदगी की तमाम जहालत खत्म
जिल्लतों से निजात पा जाएगा इंसान
फिर शायद न लिखी जाए कविता
शायद खुशी के गीत लिखे जाएं..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *