बरगद बनना चाहता है पिता
ओमप्रकाश तिवारी
पिता होने के मायने
पिता बना तो जाना
तब समझ में आईं
एक पिता की चिंताएं
हर पल की सलाहें
सोते समय बुदबुदाना
नहाते समय गुनगुना
तपती दोपहर में भी
नंगे पांव चलते जाना
सावन की बारिश में
खुशी-खुशी भीग जाना
कंपकंपाती सर्दी में
अलाव का जलाना
पिता बना तो जाना
खेत की मेड़ पर बैठाकर
गमछे से ढंकने का मतलब
भी तभी समझ में आया
ऊसर भूमि में फलदार पौधे लगाना
नई-नई फसलों को उगाना
बाप बनने पर समझ में आया
पांव की बेवाइयों के दर्द को
हंसते-हंसते झेल जाना भी
तब जाकर ही समझ में आया
बरगद बनना चाहता है पिता
पर केवल छांव देने के लिए
टहनियों को भी जड़ बनाकर
चाहता है वंश को बढ़ाना
अपने झरते पीले पत्तों में वह
देखता है हमेशा नव पल्लव
यह भी तभी समझ में आया
गुस्से में भी उनका मुस्कुराना
सोते समय माथे को सहलाना
आधी रात को कमरे में आना
बिखरी चादर को ओढ़ा जाना
सामान्य लगने वाली ये बातें
होती हैं कितनी ही मूल्यवान
यह भी तब जाकर जान पाया
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