हिंदी कहानी और हिंदी गज़ल दोनों के सामने नई चुनौतियां
अंबाला में हरियाणा लेखक मंच का वार्षिक आयोजन
तुम्हारी फाइलों में मौसम गुलाबी है
वरिष्ठ साहित्यकार जयपाल की रिपोर्ट
गत 2 नवंबर,2025 को हरियाणा लेखक मंच द्वारा फारूखा खालसा सीनियर सेकंडरी स्कूल अम्बाला छावनी में एक साहित्यिक सेमिनार का आयोजन-‘आज की हिंदी कहानी’और ‘आज की हिंदी गज़ल’ पर दो सत्रों में संपन्न हुआ । मंच के कार्यकारी अध्यक्ष डा. अशोक भाटिया ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि उत्सवधर्मिता की बढ़ती प्रवृत्ति गंभीर साहित्य के लिए गंभीर खतरे की तरह है। साहित्य में इस बढ़ती प्रवृत्ति के प्रति लेखकों को सतर्क रहना चाहिए।
मुख्य वक्ता हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डाॅ वैभव सिंह ने आधुनिक हिंदी कहानी पर चर्चा करते हुए कहा कि आज का दौर कुछ ऐसा है जिसमे पुरानी परंपराएं आक्रामक रूप से लौट रही हैं, दूसरी तरफ आधुनिकता अनेक अंतर्विरोधों से घिरी हुई है । दरअसल परंपरा और आधुनिकता के पाखंड के इस समय में सत्य को पहचान पाना बहुत जटिल हो गया है। सत्य को प्राप्त करना तो आवश्यक है, लेकिन सत्य को प्राप्त करने की प्रक्रिया की भी रक्षा करनी पड़ती है। यानी संवाद, बहस, असहमति की संस्कृति को बचाना व विकसित करना होता है जिसके बगैर सत्य भी प्राप्त नहीं हो सकता है।सत्य प्राप्ति तो संभव है ।
साहित्य, संस्कृति, पत्रकारिता आदि पर सत्ता का व्यापक दबाव है। इतना दबाव लेखक समुदाय ने कभी महसूस नहीं किया । इस दौर में चुनावी लोकतंत्र तो है लेकिन वास्तविक लोकतंत्र गायब होता जा रहा है । इसलिए लेखक के लिए स्वतंत्र रूप से सोचना और उसी प्रकार से लिखना चुनौतीपूर्ण हो गया है। लेकिन फिर भी हिंदी साहित्य में लेखक लगातार ऐसी कहानियाँ लिख रहे हैं जिनमें इस समय का यथार्थ अभिव्यक्त हो रहा है ।
आज भी कहानीकार कहानी के विभिन्न पड़ावों की यात्रा को आत्मसात करते हुए कहानी के कथ्य और प्रारूप को लगातार विकसित और समृद्ध कर रहा है । उन्होंने भीष्म साहनी,बदीउज्जमा,यशपाल और राही मासूम रजा की कहानियों की चर्चा भारत-पाक दंगों के संदर्भ में करते हुए कहा कि अब साम्प्रदायिकता बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक हो गई है। इस संदर्भ में उन्होंने भालचंद्र जोशी की कहानी ‘रिहाई’ मोहम्मद आरिफ की ‘तार’, अनिल यादव की ‘दंगा भेज्यो मौला’ और नीलाक्षी सिंह की ‘परिंदे के इंतजार-सा कुछ’ की चर्चा की।

आज प्रेम पर कहानी लिखना भी चुनौतीपूर्णः वैभव सिंह
वैभव सिंह का कहना था कि आज प्रेम पर कहानी लिखना भी चुनौतीपूर्ण हो गया है । इसके अतिरिक्त उन्होंने समाज में बढ़ते एकाकीपन, विस्थापित जैसा जीवन, सूचना क्रांति, लोकतंत्र की चुनौतियां, दलित समस्या और जातिवाद, अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत, समाज के अलग-अलग समुदायों में विभेदीकरण, कार्पोरेट का मायाजाल और मूल्यहीन राजनीति की बात करते हुए आज की कहानी की मुख्य चिंताओं के प्रति उपस्थित लेखकों को अवगत कराया ।
इस संदर्भ में उन्होंने हिंदी के चर्चित कथाकारों- प्रेमचंद, जैनेन्द्र उदय प्रकाश, मोहन राकेश, सारा राय, शिवमूर्ति, मधु कांकरिया, महेश कटारे,संजीव, सत्यनारायण पटेल, ओम प्रकाश वाल्मीकि आदि की कहानियों का विशेष तौर पर उल्लेख किया। सत्र की अध्यक्षता कर रहीं डॉ कमलेश मलिक ने समकालीन कहानी लेखकों को कहानी धैर्य रख कर लिखने, अधिक पढ़ने और परिश्रम करने की सलाह दी। इस सत्र के विशिष्ट अतिथि विनय कुमार मल्होत्रा रहे तथा कुशल मंच-संचालन अरुण कैहरबा ने किया।
हिंदी और उर्दू दोनों एक साथ विकसित हुईः दिनेश दधीचि
दूसरे सत्र में आज की हिंदी ग़ज़ल पर बोलते हुए मुख्य वक्ता डॉक्टर दिनेश दधीचि ने कहा की हिंदी और उर्दू दोनों भाषाएं एक साथ विकसित हुई है । दोनों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि एक समान है ।दोनों के रचनाकार दोनों भाषाओं में समान रूप से लिखते रहे हैं । यह ठीक है कि हिंदी ग़ज़ल उर्दू ग़ज़ल से ही विकसित हुई है और उर्दू ग़ज़ल अरबी-फारसी से विकसित हुई है। लेकिन हिंदी ग़ज़ल में अब बहुत बदलाव आ चुके हैं ।

हिंदी के दुष्यंत कुमार स्थापित और चर्चित गज़लकार है जिन्होंने हिंदी ग़ज़ल को सर्वाधिक प्रभावित किया है । वैसे तो भारतेंदु हरिश्चंद्र और मैथिलीशरण गुप्त जैसे कवियों ने भी हिंदी में ग़ज़लें लिखीं लेकिन इसका पूर्ण विकास दुष्यंत कुमार के समय में ही हुआ । हिंदी ग़ज़ल में राजनीतिक चेतना ,आम आदमी की पीड़ा, परिवर्तन, जनसंघर्ष, क्रांति आदि विषय आम-जन की भाषा में अभिव्यक्त हुए हैं। इधर के हिंदी ग़ज़लकारों में अदम गोंडवी तथ राहत इन्दौरी, कुंवर बेचैन,कुमार विश्वास आदि मंचीय शायरों की ग़ज़लों को देखा जा सकता है । वर्तमान हिंदी ग़ज़ल में सामाजिक सरोकार हैं। आज की गज़ल मुशायरों और सोशल मीडिया पर बहुत लोकप्रिय हो चुकी है ।
गज़ल लिखी नहीं जाती,कही जाती हैः रतन सिंह ढिल्लों
इस सत्र की अध्यक्षता डॉक्टर रतन सिंह ढिल्लों और मंच-संचालन मदन लाल ‘मधु’ ने किया। डा. ढिल्लों ने हिंदी गज़ल के साथ पंजाबी गज़ल के इतिहास पर बात करते हुए कहा कि गज़ल में कथ्य अधिक महत्त्व रखता है ना कि बहर । गज़ल लिखी नहीं जाती,कही जाती है। प्रश्नोत्तर काल में ओम बनमाली, ओम सिंह अशफ़ाक, अनुपम शर्मा, नरेश दहिया,मंजीत सिंह, गुरुदेव सिंह देव,विकास शर्मा आदि ने आज की हिन्दी कहानी और ग़ज़ल पर सार्थक सवाल पूछकर इस संवाद को रोचक और रचनात्मक बना दिया ।
ये प्रमुख साहित्यकार रहे मौजूद
इस साहित्यिक आयोजन में उपरोक्त के अलावा एस पी भाटिया ,गुरुदेव सिंह देव, अनुपम शर्मा, ओम सिंह अशफ़ाक, योगराज प्रभाकर,दीपक वोहरा, राजेश भारती, कमलेश चौधरी, नरेश दहिया, विकास साल्याण, विकास शर्मा, ज्ञानी देवी, डॉक्टर प्रदीप,बलदेवसिंह मेहरोक, तनवीर जाफरी, सुदर्शन रत्नाकर,अंजु दुआ जैमिनी,ब्रह्मदत्त, पंकज शर्मा, राधेश्याम भारतीय, ममता प्रवीण,आशमा कौल, जयपाल, अशोक बैरागी आदि रचनाकारों के अतिरिक्त अंबाला,कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, चंडीगढ़,पटियाला, करनाल, कैथल,बल्लभगढ़,पलवल, नोएडा आदि से लगभग अस्सी रचनाकार उपस्थित हुए।
15 पुस्तकों का विमोचन
इस कार्यक्रम में लगभग 15 पुस्तकों का विमोचन भी हुआ lकार्यक्रम पूरी तरह सफल रहा।

रिपोर्ट- जयपाल

बहुत अच्छा प्रयास रहा। भविष्य में भी ऐसे आयोजनों की आवश्यकता