वर्तमान राजनीतिक माहौल में सत्तारूढ़ दल के नेेताओं और मंत्रियों ने वाद विवाद संवाद का जो सिलसिला शुरू किया है, संदर्भ हो या न हो, नेहरू का लेना-देना हो न हो, हर बात में उनको घसीटना और नाकामियों के लिए उनको दोषी ठहराने का उपक्रम किया है, उनकी जी हजूरी में आगे बढ़कर न्यूज चैनलों ने पत्रकारिता का जिस तरह सत्यानाश किया है, उस पर बीबीसी हिंदी ने कार्टून प्रकाशित किया है। उसी पर केंद्रित कर वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर पांडेय ने यह व्यंग्य लिखा है। बीबीसी और पांडेय जी का आभार जताते हुए यहां उसे प्रकाशित कर रहे हैं –
न्यूज चैनलों की परलोक रिपोर्टिंग जरिए नेहरू!
विजय शंकर पांडेय
शुक्र है न्यूज़ चैनलों की पहुंच अभी परलोक तक नहीं हुई, वरना आज हर चैनल पर “परलोक ब्रेकिंग” चल रही होती। एंकर स्टूडियो में तमतमाते हुए कहते—“दोस्तों, सबसे बड़ी खबर! हमारे परलोक संवाददाता सीधे स्वर्ग लोक से LIVE जुड़ चुके हैं, जहां अभी-अभी पंडित नेहरू जी मिल गए हैं। जी हां, वही नेहरू जिन पर हर मौसम में दोष लगाना हमारा संवैधानिक कर्तव्य है!”
स्क्रीन पर धुंधला-सा बादलों वाला बैकग्राउंड और बीच में एक बेचारा रिपोर्टर—“जी, बिल्कुल! मैं इस समय यमराज के ऑफिस के बाहर हूं, जहां बताया जा रहा है कि नेहरू जी ने 1950 में फलां-फलां काम क्यों नहीं किया, इसकी जांच फिर से शुरू हो गई है। पीछे जो लाइन दिख रही है, वह मोक्ष की है, पर यहां बहस का स्तर देखकर कई आत्माएं वापस पृथ्वी पर लौटना चाह रही हैं।”
एंकर तुरन्त चीख पड़ता—“और बताइए, क्या नेहरू जी जवाब दे रहे हैं?”
रिपोर्टर हांफते हुए—“जी सर, वे कह रहे हैं कि ‘भाई, अब तो छोड़ दो… यहां भी पीछे पड़ गए?’ लेकिन सर, आपके चैनल के एक पैनलिस्ट उनसे भिड़ गए हैं और कह रहे हैं कि ‘परलोक की बदहाली के भी जिम्मेदार आप ही हैं!’”
स्टूडियो में एंकर मुस्कुराता—“दोस्तों, यही तो असली पत्रकारिता है—जीते जी न छोड़ें, मरने के बाद भी नहीं!”
वाकई, परलोक की सबसे बड़ी राहत यही है कि वहां TRP का आतंक नहीं पहुंचा… अभी तक।
