मास्टर धर्म सिंह – शिक्षा और साक्षरता की अलख जगाने वाले कर्मचारी नेता

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-26

मास्टर धर्म सिंह – शिक्षा और साक्षरता की अलख जगाने वाले कर्मचारी नेता

सत्यपाल सिवाच

कुछ लोग होते हैं जो अपने कामों से दूसरे के दिल-दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं और अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। ऐसे ही एक कर्मचारी नेता हुए मास्टर धर्म सिंह। पेशे से प्राइमरी शिक्षक और कर्म से लोगों को जागरूक करने का कार्य। वे उन नेताओं में शुमार हैं जो बगैर रुके दशकों तक काम करने में लगातार अग्रणी बने रहे।

धर्म सिंह का जन्म 26 अगस्त 1941 को किसान परिवार में हुआ। मैट्रिक के पास जेबीटी का डिप्लोमा किया और उसके बाद प्राथमिक शिक्षक नियुक्त हो गए। उनकी रचनाधर्मिता का अनुमान पाठक स्वयं लगा लें। उन्होंने शिक्षकों की गायक-मंडली  बना रखी थी। वे छुट्टी के बाद गांव गांव जाकर शिक्षा और साक्षरता के लिए प्रचार किया करते थे।

उनसे मेरी मुलाकात काफी देर से 1985 में हुई। उम्र में मुझसे 15 साल बड़े थे यानी लगभग पीढ़ी का अंतर था लेकिन व्यवहार ऐसा कि उनसे दिल की बात कहने में संकोच न होता था। उसी दौर की बातचीत में पता चला कि वे 1968 की हड़ताल में भाग लेने वालों में शामिल थे। सन् 1975 में आपातकाल के दौरान चार अध्यापक मीसा में बंद हुए थे लेकिन धर्मसिंह व शकंरानंद सहित पाँच अध्यापक डीआईआर (डिफेंस ऑफ इंडिया रूल) के तहत जेल में रहे। वे करनाल जिले के प्रख्यात शिक्षक नेता चरणसिंह संधू के संपर्क में भी रहे।

धर्म सिंह ने कर्मचारी संगठन में विभिन्न पदों पर काम किया और वरिष्ठ उपाध्यक्ष की गौरवपूर्ण जिम्मेदारी तक पहुंचे। सर्वकर्मचारी संघ बनने पर कई साल तक करनाल जिला अध्यक्ष रहे। वे 1973, 1980, 1986, 1993 व 1996 के आन्दोलनों में जेल में रहे। उनके जेल या घर एक ही बात थी। सादगी का जीवन और थोड़ी सी जरूरतें। संगठन में युवा कार्यकर्ताओं को आगे लाने और प्रोत्साहित करने में बहुत रुचि लेते थे। शुरुआत में ऋषिकांत शर्मा,  सत्यप्रकाश और मुझे (सत्यपाल सिवाच) आगे लाने में स्वर्गीय बनीसिंह और धर्म सिंह जी की विशेष भूमिका रही।

संगठन के काम अतिरिक्त वे शराबबंदी आन्दोलन में सक्रिय रहे और 11 दिन जेल में बिताए। वे 31 अगस्त 1999 को मुख्य शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए। उस समय भी वे सर्वकर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष थे। परिवार में उनके पुत्र यशपाल हैं जो आस्ट्रेलिया में कृषि वैज्ञानिक हैं। उनके भतीजे जगतार सिंह भी अपने ताऊ जी प्रेरणा से संगठन और आन्दोलन में सक्रिय हैं। 20 जून 2017 को लम्बी बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया।सौजन्यः ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच

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