जूझते जुझारू लोग-27
एम. एल. सहगलः सक्रियता के लिए उम्र बाधा नहीं
सत्यपाल सिवाच
वर्षों तक हरियाणा सब-आर्डिनेट सर्विसेज फेडरेशन और कर्मचारी महासंघ में सक्रिय रहे एम.एल. सहगल से सभी पुराने लोग परिचित हैं। वे अपनी धुन के पक्के हैं। सबसे मिलजुलकर रहने की आदत रही है। सन् 2000 में सेवानिवृत्ति के बाद से हिसार में सी.पी.आई. और वामपंथी दलों के कार्यक्रमों में आगे मिलते हैं। जब मैंने उनसे कर्मचारी आन्दोलन के बारे में कुछ जानकारियां साझा करने का अनुरोध किया तो उन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
वे मूलतः पंजाब के फिरोजपुर में पले-बढ़े हैं। उनका जन्म 01 जुलाई 1942 को श्रीमती धनदेवी और जेठूमल के यहाँ पंजाब के कसूर-भीलां (अब पाकिस्तान में) हुआ था। जब उनके दादा सपरिवार फिरोजपुर आए तो वे बहुत छोटे थे। उन्हें विभाजन की त्रासदी के बारे में बहुत याद नहीं है। उन्होंने एस.डी. हाई स्कूल फिरोजपुर से दसवीं उत्तीर्ण की और उसके बाद ड्राफ्ट्समैन में डिप्लोमा किया। वे 04 दिसंबर 1961 को निर्माणाधीन राजस्थान कैनाल के फिरोजपुर सर्कल में ट्रेसर नियुक्त हो गए। नौकरी में आने के बाद ही कर्मचारी यूनियन में सक्रिय हो गए।
सन् 1963 में पीडब्ल्यूडी ड्राफ्ट्समैन एसोसिएशन की स्थानीय इकाई में फाइनेंस सेक्रेटरी के रूप में यूनियन में बतौर पदाधिकारी शुरुआत की। नहर का काम पूरा होने पर 1965 में स्टाफ फालतू हो गया और छंटनी की नौबत आ गई। एस.ई. ने छंटनी बचाने के लिए उन्हें भाखड़ा नंगल डैम पर समायोजित करवा दिया। कुछ समय ब्यास में और चण्डीगढ़ में भी काम किया। डैम पर काम करते हुए एटक के नेताओं से संपर्क हुआ। वहीं से ट्रेड यूनियन और वामपंथी आन्दोलन से परिचय हुआ और घनिष्ठता हुई।
सन् 1965 में वहाँ स्थानीय मांगों के लिए पाँच दिन भूखहड़ताल की थी। बाद में डैम कर्मचारियों की फेडरेशन का जनरल सेक्रेटरी भी चुना गया। डैम के स्टाफ को बाद में सिंचाई विभाग में ट्रांसफर किया गया तो उन्होंने 21 फरवरी 1980 को सिरसा में ज्वाइन किया। हेड ड्राफ्ट्समैन पद से 30 जीन 2000 को सेवानिवृत्त हुए।
स्वभाव से ही सामूहिक कार्यों में रुचि के चलते वह 1961 से यूनियन से जुड़ गए थे। भाखड़ा डैम पर एटक से जुड़ने पर वे संगठन के स्वाभाविक स्थायी कार्यकर्ता की तरह रहे। सिरसा आने पर वे मंगलसिंह दिलावरी के संपर्क में आए जो संगठन के काम से हिसार से सिरसा जाते रहते थे।
जब फेडरेशन विभाजित हो गई तो एम.एल. सहगल राज्याध्यक्ष और दिलावरी को महासचिव बनाया गया। बाद में वे वर्षों तक महासचिव रहे। सन् 1995 में फेडरेशन ने हरियाणा कर्मचारी महासंघ बना लिया तो उन्हें महासचिव चुना गया और वे सेवानिवृत्ति इस पद पर बने रहे। इस अरसे में सन् 1993 और बाद में कई बार सर्वकर्मचारी संघ और कर्मचारी महासंघ की ज्वाइंट एक्शन कमेटी बनी जिनमें एम.एल. सहगल को हर बार शामिल किया गया। वे सन् 1980 से लगातार संघर्षों में रहे।
इस बीच उनके साथ निकट का वास्ता पड़ा तो उनके व्यक्तित्व के बहुत से पहलू सामने आए। वे सीधे इन्सान हैं। अपनी आस्था पर पक्के हैं लेकिन दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखने वाले हैं। वे सन् 1971 से अब तक लगातार सीपीआई से जुड़े हुए हैं। फिलहाल वे पति-पत्नी दोनों हिसार के वासी हैं। चार बेटियां हैं। चारों विवाहित हैं। एक जालंधर में है। दूसरी मुकेरियां में प्रिंसिपल है। एक टोहाना में नर्सिंग स्टाफ में है तथा चौथी कनाडा में है। पत्नी अस्वस्थ रहती हैं। तब भी स्थानीय गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए कुछ घंटे का समय निकाल लेते हैं।

 
			 
			