कुरुक्षेत्र जलेस ने हिन्दी दिवस पर आयोजित किया हिन्दी भाषा की चुनौतियां विषय पर व्याख्यान
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मुख्य वक्ता अरुण कैहरबा ने कहा, शिक्षा में मातृभाषाओं की उपेक्षा करना किसी भी तरह से ठीक नही
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दूसरे सत्र में कवियों ने सुनाईं अपनी कविताएं
कुरुक्षेत्र। शहर के स्थानीय रविदास मंदिर सभा हॉल में हिंदी दिवस के मौके पर जनवादी लेखक संघ की कुरुक्षेत्र इकाई द्वारा विचार-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता जनवादी लेखक संघ के राज्य अध्यक्ष जयपाल, ओम सिंह अशफ़ाक और प्रिसिंपल नरेश नागपाल की। संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता हिंदी- प्रवक्ता श्री अरुण कैहरबा ने ‘हिन्दी भाषा की चुनौतियां’ विषय पर व्याख्यान दिया।
अरुण कैहरबा का कहना था कि मातृभाषाएं समाज के चिंतन, मनन और विचारों का आधार हैं। शिक्षा में मातृभाषाओं की उपेक्षा करना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। प्राथमिक शिक्षा केवल मातृभाषा में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बैंक, रेलवे, अदालत व कार्यालयों आदि में ऐसी भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए जो आम जनता को समझ में आये। हिन्दी को जटिलता व क्लिष्टता से बाहर निकालने की कोशिश होनी चाहिए और ऐसा रूप विकसित होना चाहिए, जो आम आदमी समझ पाए।
उनका कहना था कोई भाषा किसी भाषा की जननी नहीं होती। भाषा का विकास अनेक बोलियों और भाषाओं के शब्दों से मिलकर सहज रूप से होता है। हिंदी का विकास इसी प्रकार पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, अवधी, ब्रज जैसी बोलियों के साथ मिलकर खड़ी बोली के रूप में हुआ। इसे जन-भाषा के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि इसका समुचित विकास हो । हिंदी में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी भाषाओं का समाहार है। इसे संस्कृत निष्ठ या रोमन निष्ठ बनाना हिंदी के विकास में सबसे बड़ी बाधा होगी। किसी भी भाषा में शुद्धता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। भाषा, भाषा के तौर पर ही विकसित होती है इसीलिए कहा गया है भाषा बहता नीर।
इस गोष्ठी में हरपाल, ओम करुणेश ओमसिंह अशफाक, जयपाल, कपिल भारद्वाज, रोशन लाल, रामेश्वर आजाद, विकास, नरेश सैनी, नरेश दहिया आदि ने भी चर्चा-परिचर्चा में भाग लिया। संगोष्ठी में जनवादी लेखक संघ के सदस्य, कर्मचारी संघ के सदस्य, कवि, लेखक, शायर, अध्यापक आदि उपस्थित रहे। मंच संचालन जलेस के सचिव मनजीत सिंह ने किया ।
संगोष्ठी के बाद एक कविता गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता करमचंद केसर, ओम करुणेश और हरपाल ने की । मंच संचालन डॉ कपिल भारद्वाज ने किया। कविता पाठ में भाग लेते हुए समीक्षा सिंह ने सुनाया–बड़े मायूस से हो हमदर्द का दर देख आए क्या !
किसी की आस्तीन में तुम भी खंजर देख आये क्या !
दीपक मासूम का कहना था–
कौन रक्खे ख्याल दुनिया का
ये भी है इक सवाल दुनिया का
तुम बदल दो निज़ाम को अपने
हो ना जीना मुहाल दुनिया का
कवि जयपाल ने कहा–
क्योंकि कुछ लोग पवित्र होते हैं
इसलिए बाकी लोग अपवित्र होते हैं
मनजीत सिंह ने कहा-
घणा माड़ा टेम आग्या, परिवार कुणबे की इज्जत होगी ढेर ।
एक बुझी रोटी की दूसरा खाएगा के ।
कैथल जिले से आए हरयाणवी कवि करमचंद केसर ने कहा– एक झटके मैं सारे रिश्ते तोड़ गए
बेटे माँ नैं बिरध आसरम छोड़ गए
डॉक्टर सीमा बिरला ने हिंदी भाषा का गुणगान करने की बात इन शब्दों में की–
आओ हिंदी दिवस मनाएं
निज भाषा अभिमान करें
सुंदर अभिव्यक्ति से मिलकर
हिंदी का गुणगान करें
इस अवसर पर ओमसिंह अशफाक हरपाल,नरेश सैनी, नरेश कुमार, विकास साल्यान डॉ कपिल भारद्वाज, सिमरन इमरान, इकबाल,हबीब खान आदि ने भी अपनी रचनाओं से इस आयोजन को सफल बनाया।