हरियाणा: जूझते जुझारू लोग – 11
जोगेन्द्र सिंह भ्याना – शान्त स्वभाव के मजबूत नेता
जब सन् 1986-87 के आन्दोलन में रोडवेज कर्मचारियों को संगठित करने का सवाल आया तो जिन चुनींदा कार्यकर्ताओं ने इंटक से बगावत करके सर्वकर्मचारी संघ आने वालों में जोगेन्द्र सिंह भी शामिल थे। शुरुआती दौर में गोदारा और जोगेन्द्र सिंह के अलावा गिनती के ही कार्यकर्ता थे। पुरानी यूनियन के नेता हिसाब किताब न रखने और मिलीभगत के लिए बदनाम थे। इसलिए नये सिरे से संगठित करने में काफी परिश्रम करना पड़ा। उन्हें आन्दोलन की कतारों में सभी लोग जानते और पहचानते हैं। शांत स्वभाव, संघर्ष के बेबाक समझ, कमजोर तबकों के लिए प्रतिबद्धता और उच्च मानवीय संवेदना आदि गुणों के चलते उन्हें लोग पसंद भी करते हैं।
दिनांक 20.05.1945 को जिला मुल्तान के चक नंबर 105 में सरदार अमीर सिंह और प्रीतम कौर के यहाँ हुआ। अब वह इलाका पाकिस्तान में सम्मिलित है। विभाजन की स्थिति में जब माहौल में तनाव बनने लगा तो स्थानीय मुस्लिम परिवारों ने काफी हौसला बढ़ाया। उन्होंने न जाने के लिए आग्रह किया और सुरक्षा के लिए भरोसा दिलाया, लेकिन सभी रिश्तेदारों को आते देख हमारे माता पिता ने भी इधर आना तय किया। रास्ते का सफर बहुत कष्टकारी रहा, क्योंकि जल्दीबाजी में पर्याप्त राशन व सामान लेकर नहीं चल पाए। माँ बताती थी कि बीच बीच में खाने के भी लाले पड़े।
जब विभाजन की विभीषिका आई तो इनका परिवार पहले फाजिल्का आया। वहाँ से बरनाला चले गए। कोई कारोबार न मिलने से काम की तलाश में धुरी में चले गए। बाद में पता चलने पर कुछ रिश्तेदार अम्बाला में सेटल हो गए थे। उनके माता पिता भी अम्बाला आ गए। वहाँ पर धोबियों की मदद से कुछ काम किया। इसके बाद पानीपत के बिचपड़ी-नूरवाला में रहट पर काम मिल गया तो वहाँ गए। पाकिस्तान क्षेत्र के जमीन के दस्तावेजों के आधार पर कुछ अरसे बाद हिसार जिले बीधड़ गांव में जमीन अलॉट हो गई और यहाँ आकर स्थायी रूप से रहने लगे।
वे 4 भाई और 6 बहन हैं जिनमें से नौ पाकिस्तान क्षेत्र में ही जन्मे थे। उन्होंने 1962 में मैट्रिक परीक्षा पास की और 1968 में मोटर मैकेनिक में आईटीआई से डिप्लोमा किया। उसके बाद 1970 में मैकेनिक की नौकरी मिल गई जो 240 दिन की सेवा के आधार पर नियमित हो गई। वे 31.05.2003 को हैड मैकेनिक पद से रिटायर हुए।
वे आईटीआई के समय अप्रेटिंस कर रहे थे तो हड़ताल के दौरान कोई चालक सबसे आर्थिक सहयोग की अपील कर रहे थे। सभी उन्हें चंदा दे रहे थे। जोगेन्द्र सिंह को चालीस रुपए मिलते थे। उन्होंने चालीस रुपए ही दे दिए लेकिन उन्होंने दस रुपए ही रखे। बाद में उनकी नियुक्ति रोहतक में हुई थी। वहाँ से गुड़गांव और फिर दिल्ली में बदली हो गई। सन् 1974 में पहली बार हड़ताल में शामिल हुए। बाद में सिरसा आ गए। वहाँ लालचन्द गोदारा प्रधान थे। सचिव ने इस्तीफा दे दिया तो जोगेन्द्र सिंह को सचिव बना गया। बाद में वे सिरसा डिपो में रहते हुए प्रधान व सचिव रहे। इंटक से अलग यूनियन बनाने के बाद गोदारा प्रधान व जोगेंद्र सिंह महासचिव बने। बाद में वे राज्याध्यक्ष भी रहे। वे एक बार सर्वकर्मचारी संघ के राज्य सचिव और एक बार उपाध्यक्ष रहे।
जोगेन्द्र सिंह शांत स्वभाव के हैं लेकिन बहादुरी के साथ मोर्चे पर डटे रहने वाले व्यक्ति हैं। सन् 1974 में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया। चार बार जेल में गए और कुल 44 दिन विभिन्न जेलों में बिताए। सन् 1978 में वीरेन्द्र सिंह गृहमंत्री होते थे। सिटी पुलिस सिरसा ने एक कर्मचारी को बिना किसी कसूर के पकड़ लिया। जब जोगेन्द्र सिंह उसके मामले में थाने गए तो वहाँ एस.पी. भटोटिया मौजूद थे। उनके कहने पर जोगेंद्र सिंह की पिटाई की गई और लॉकअप में बंद कर दिया। जब उन्होंने बाद में इस बारे में एस.एच.ओ. को कहा कि वह उचित व्यवहार नहीं था तो लॉकअप से निकालकर फिर बेरहमी से पीटा गया। सन् 1993 में भी जेल में रहे और बर्खास्त किए गए।
जोगेन्द्र सिंह ऐसे साथी हैं जो सभी मिलने वालों को आकर्षित करते हैं। उनकी एक बेटी और बेटा हैं। बेटी की मृत्यु हो चुकी है। बेटा प्रिंसिपल है। दो पोते हैं। जोगेंद्र सिंह पत्नी के साथ गांव में ही रहते हैं। जहाँ भी किसी सार्वजनिक स्थान पर जनवादी संगठनों को कार्यक्रम होते हैं वहाँ आपको जोगेन्द्र सिंह अवश्य मिल जाते हैं। वे सक्रिय रहते हैं। स्वस्थ हैं और खेलों में भी भाग लेते हैं। यद्यपि वे पहले खिलाड़ी नहीं रहे थे, लेकिन रिटायरमेंट के बाद छत्तरपाल सिंह की प्रेरणा दौड़ का अभ्यास करने लगे। अब वे वेटरन खेलों में 400, 800 और 5 किलोमीटर की दौड़ में गोल्ड, ब्रोंज, सिल्वर सहित अनेकों मेडल जीत चुके हैं।
जोगेन्द्र सिंह को दृढ़ विश्वास है कि अब भले ऊपर से आन्दोलन कमजोर लगता है, लेकिन लड़ने वाले लोगों की कमी नहीं है। उन्हें लगता है कि शासन द्वारा आर्थिक शोषण किया जा रहा है और नफरत फैलाई जा रही है। ऐसे हालात में नीचे-नीचे जमा हो रहा गुस्सा एक दिन विस्फोटक स्थिति में पहुंच सकता है। उन्हें भरोसा है कि हालात जरूर बदलेंगे। सौजन्य ओम सिंह अशफ़ाक
लेखक – सत्यपाल सिवाच