जीवन सिंहः बाल्यकाल से ही दिखने लगा नेतृत्व का गुण

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-12

जीवन सिंहः बचपन से ही दिखने लगा नेतृत्व का गुण

सत्यपाल  सिवाच

हरियाणा कर्मचारी आन्दोलन में वन विभाग कर्मचारी संघ के वर्षों तक महासचिव रहे जीवन सिंह से तमाम सक्रिय लोग परिचित हैं। जनवरी 1995 से 2019 तक वे लगातार सर्वकर्मचारी संघ के पदाधिकारी रहे। उनसे लंबा कार्यकाल किसी का नहीं रहा। खास बात यह है कि नेतृत्व का गुण बाल्यकाल से ही था तभी तो पहली से लेकर एम.ए. तक विद्यार्थियों का नेतृत्व किया। दूसरे जीवन सिंह को आलराउंडर कह सकते हैं, वे पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में समान रूप से भागीदारी करते रहे।

जीवन सिंह का जन्म दिनांक 27 मई 1960 को महेन्द्रगढ़ जिले के बौंद कलां गांव में हुआ जो अब दादरी जिले में है। इनके पिता वैद्यनाथ और माता का नाम मिसरी देवी था। ये चार संतानों में ये दूसरे नंबर पर हैं। चार भाइयों से सबसे छोटे अब नहीं हैं। जीवन सिंह पत्नी श्रीमती संतोष, बेटियां संगीता, रेणु व कुसुम और सुपुत्र सतीश हैं। वर्तमान में वे रोहतक में रहते हैं। सभी बच्चे विवाहित हैं।

अत्यंत साधारण परिवार में जन्मे जीवनसिंह में शिक्षा के प्रति लगन थी ताकि पढ़-लिखकर परिवार के हालात को बदल सकें। मैट्रिक की परीक्षा रा.उ.वि. बौंद से 1975 में उत्तीर्ण की। सन् 1979 में सतजिंदा कल्याणा कॉलेज, कलानौर से बी.ए. परीक्षा पास किया। उसके बाद एम. ए. (इतिहास) महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से पास की। वे पहली से दसवीं कक्षा तक मॉनिटर रहे; प्रेप(ग्यारहवीं) से एम.ए. तक क्लास रिप्रजेंटेटिव रहे। स्कूल में हॉकी टीम के गोलकीपर थे; कबड्डी, कुश्ती, दौड़ में शामिल रहे और स्कॉऊट, एन.सी.सी. एन एस एस और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते थे। उसके बाद वे वन विभाग में गॉर्ड पद नियुक्त हो गए। वन रक्षक प्रशिक्षण में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वन दरोगा के रूप में उन्हें अव्वल स्थान मिला। उन्हें लोहारू में प्रथम नियुक्ति हुई।

पढ़ते हुए नेतृत्व के लक्षण नौकरी में आने पर और अधिक निखर कर बाहर आए। सरकारी सेवा में आने के बाद वे 1985 में कर्मचारी संगठन की रेंज ईकाई के सचिव चुने गए। उसके बाद लगातार सक्रिय रहे। सन् 1987 सर्वकर्मचारी संघ खंड सिवानी में सचिव बनाए गए। उस आन्दोलन में उनकी सक्रियता और नेतृत्व क्षमता साबित हो गई तो उन्हें अगले ही साल विभागीय यूनियन का जिला सचिव चुन लिया गया। उसके साथ सन् 1993 में राज्य महासचिव निर्वाचित हो गए और एक अवधि को छोड़कर लगातार इस पद रहे। इसके पश्चात 2017 में राज्य प्रधान निर्वाचित हुए। उन्हें बनवारीलाल बिश्नोई की सेवानिवृत्ति पर 1996 और आर सी जग्गा के सेवानिवृत्ति पर 2009 में उन्हें सर्वकर्मचारी संघ महासचिव बनाया गया। मजाक में कुछ लोग उन्हें सर्वकर्मचारी संघ का गुलजारीलाल नंदा भी कह देते थे। वैसे वे नंदा जी तरह डाऊन टू अर्थ रहने वाले शख्स हैं।

जीवन सिंह को सेवानियमों और न्यायिक प्रक्रियाओं के बारे में अच्छा ज्ञान है। वे आज भी सेवा सम्बन्धी मार्गदर्शन और अनुशासनात्मक मामलों में प्रतिवेदन लिखकर कर्मचारियों की मदद करते रहे हैं। उनको सन् 1993 में बर्खास्त कर दिया गया। सन् 1995 में निलंबित किया गया। मजदूर यूनियन के प्रतिनिधिमंडल से बातचीत के दौरान विवाद हुआ। सन् 1998 में बैठक के समय पूरी कार्यकारिणी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।

सर्वकर्मचारी संघ के साथ जुड़ने का वन कर्मचारी संघ को बहुत लाभ हुआ। एक बड़े अधिकारी को महिला यौन उत्पीड़न मामले में उसे पदमुक्त करवाया। अवैध कटाई के मामले में एक अन्य अधिकारी को लम्बे समय तक निलंबित करवाया। पर्यावरण संरक्षण पर भी जीवन सिंह की मौलिक समझ है। जैविक खाद घोटाले में दो वन सेवा अधिकारियों की जेल करवाई। छछरौली कलेसर से खैर की अवैध कटान असलम खान व अकरम खान का विरोध रहते हुए रुकवाई। देवीलाल सामाजिक वानिकी परियोजना में विमको सफेदा व पापलर लगवाना चाहती थी। कई बार भ्रष्टाचार के मामले उजागर किए। हरियाणा बनने के बाद 1.11.1966 वरिष्ठता सूची ठीक करवाई।

संगठन को चतुर्थ श्रेणी से उपाधीक्षक, माली से रेंजर तक एक संगठन तैयार किया। वन मजदूर संघ बनाने में भी महती भूमिका निभाई।

नयी आर्थिक नीतियों के बाद नीति सम्बन्धी सवालों पर अच्छा स्टैंड लिया। सन् 1998-99 तक कुछ प्रतिरोध कारगर रहा, लेकिन नीतियां धीरे-धीरे अपना रंग दिखाती रहीं। संघ में कुछ लोग पदलोलुपता के कारण बाहर चले गए। संघर्ष घटे तो एकता भी कमजोर पड़ी। राजनीतिक जागरूकता का असर भी दिखाई दिया। संघ के राज्य केन्द्र के कमजोर रहने के चलते कार्यकर्ताओं को शिक्षित नहीं किया जा सका।

जीवन सिंह का मानना है कि नये कार्यकर्ताओं को शिक्षित करने की जरूरत है। उनकी सलाह है कि ऑनलाइन के बजाय फिजिकल बैठक करनी चाहिए। प्रत्यक्ष संवाद के बिना काम नहीं चल सकता। ड्यूटी फ्री रूझान गलत है। ऐसे नेताओं को जमीनी हकीकत से परिचय नहीं हो पाता। नये हमलों को देखते हुए हमें अपनी रणनीति भी बदलनी चाहिए। काम बंद न करें, सहयोग से लोगों का दिल जीतें। जीवन सिंह सेवानिवृत्ति के बाद जनवादी आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। सौजन्य-ओम सिंह अशफ़ाक

 

लेखक- सत्यपाल सिवाच

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *