जलेस ने विनोद कुमार शुक्ल को दी श्रद्धांजल
जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय कार्यालय ने प्रसिद्ध कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन पर शोक जताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। यहां जलेस के महासचिव नलिन रंजन सिंह, संयुक्त महासचिव बजरंग बिहारी तिवारी, संदीप मील और प्रेम तिवारी की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि विनोद कुमार शुक्ल का निधन हिन्दी साहित्य की एक अपूरणीय क्षति है। अपने सहृद और विरल गद्य लेखन के लिए वे जाने जाते थे। पिछले कुछ समय से वे उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे। छत्तीसगढ़ के रायपुर एम्स में उनका इलाज चल रहा था। वे 89 वर्ष के थे।
उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जय हिन्द’ 1971 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए। ‘जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे’, ‘हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’ जैसी बहुत सी कविताएँ हैं जिन पर खूब चर्चाएँ हुई हैं। उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए थे लेकिन उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि पहले उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’ से मिली। इस उपन्यास के बाद उन्हें कथात्मक लेखन के लिए अधिक मान्यता प्राप्त होने लगी थी। उनके अन्य उपन्यासों में से ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को भी पाठकों ने खूब पसंद किया। उनकी रचनाओं के कई भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। उन्हें ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कार प्राप्त हुए थे।
जनवादी लेखक संघ विनोद कुमार शुक्ल की स्मृति को नमन करता है और उन्हें हृदय से आदरांजलि देता है।
