जयवीर सिंहः साफगोई और समर्पण जिसकी पहचान

जयवीर सिंहः साफगोई और समर्पण जिसकी पहचान

सत्यपाल सिवाच

मास्टर जयवीर सिंह को आज भी उसी लगन और निष्ठा के साथ सक्रिय देख रहा हूँ जैसा सन् 1988-89 में देखा था। जयवीर का जन्म एक साधारण किसान परिवार सूबेसिंह और श्रीमती धनकौर के यहाँ हुआ। वे दो भाई और चार बहन हैं। जयवीर ने सन् 1982 में दसवीं और 1984 में बारहवीं कक्षा पास की। उसके बाद आदमपुर से 1984-86 सत्र में डिप्लोमा इन एजुकेशन (डीएड) का प्रशिक्षण लिया।

डी.एड. का परिणाम आते ही वह सन् 1986 में नौकरी में आ गए और अनुभव के आधार पर 1अक्तूबर 1988 से प्राथमिक शिक्षक के रूप में नियमित हो गए। 31दिसंबर 2022 को वे मुख्य शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए।

कॉलेज में पढ़ते समय जयवीर माकपा के छात्र संगठन एस.एफ.आई. के संपर्क में आकर सक्रिय हो गए थे। उसका असर यह पड़ा कि वे शिक्षक लगते ही संगठन और आन्दोलन के संपर्क में आ गए। सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा का संघर्ष शुरू हो गया था। जयवीर हिसार में खण्ड स्तर पर सक्रिय हो गए थे। उन दिनों जयवीर की पोस्टिंग सूरेवाला गांव में थी। वहाँ अधिकतर शिक्षक आन्दोलन के समर्थक थे। कुछ समय बाद उन्हें अध्यापक संघ में ब्लॉक प्रधान और सर्वकर्मचारी संघ का ब्लॉक कैशियर चुन लिया गया। बाद में वे संगठन में विभिन्न पदों पर रहे। अध्यापक संघ में जिला हिसार के प्रधान, राज्य में सचिव और वरिष्ठ उपाध्यक्ष पदों पर काम किया। सर्वकर्मचारी संघ में वे जिला स्तर के पदाधिकारी रहे।

जयवीर सिंह की मुख्य पहचान शांत स्वभाव और धैर्य के साथ आन्दोलनों में अग्रणी रहने वाले व्यक्ति की है। वे साफगोई और समर्पण के लिए जाने जाते हैं। वे काम करते जाने में, जो बता दिया और जो पद के अनुसार ड्यूटी बनती है उसे निष्ठापूर्वक तरीक़े से निभाने में विश्वास करते हैं। पद उनके लिए महत्व नहीं रखता। हाँ, स्वाभिमान के प्रति वे सजग रहे हैं। वे स्थानीय स्तर पर कई बार गिरफ्तार किए गए। सन् 1993 में वे नौ दिन चण्डीगढ़ की बुड़ैल जेल में रहे। उन्हें उस आन्दोलन में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। उन्हें अनेक बार दण्डित करने के लिए स्थानांतरित भी किया गया।

जयवीर सिंह रिटायरमेंट के बाद रिटायर्ड कर्मचारी संघ जिला हिसार के कैशियर हैं और किसान सभा में सक्रिय रहते हैं। समय उपलब्ध होने पर अन्य जनवादी आन्दोलनों में भी हिस्सा लेते हैं। वे प्रगतिशील और वामपंथी विचारों के हैं। अग्रगामी सोच के कारण उन्हें अपने इलाके में सम्मान की नजर से देखा जाता है।

परिवार में 85 वर्षीय पिता जी हैं।  दो बेटियां हैं जो विवाहित हैं और दोनों दामाद नौकरी में हैं। एक बेटा है जिसने बी. फार्मा. डिग्री हासिल की है। वह अभी अपनी लाइन का काम सीख रहा है। (सौजन्य : ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक: सत्यपाल सिवाच

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