जगपाल सांगवानः सीटू से रिटायर्ड कर्मचारी संघ तक का सफर

 

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग- 44

जगपाल सांगवानः सीटू से रिटायर्ड कर्मचारी संघ तक का सफर

सत्यपाल सिवाच

1955 में 23 जुलाई को रोहतक जिले की (अब सोनीपत) गोहाना तहसील के बड़े गांव बुटाना में श्रीमती भगवानी और रणधीर सिंह के यहाँ जन्मे जगपाल का ट्रेड यूनियन में सक्रियता का लम्बा सफर है। तीन भाई और तीन बहनों में वे सबसे बड़े हैं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव से प्राप्त करने के बाद 1972 में समाज कल्याण हाई स्कूल गोहाना से दसवीं परीक्षा पास की। इसके बाद 1972-74 के सत्र में आईटीआई से टर्नर में डिप्लोमा किया और कुछ समय तक सोनीपत में एक प्राईवेट फैक्ट्री में काम किया।

 

19 अगस्त 1975 को उन्हें एटलस साइकिल फैक्ट्री में नौकरी मिल गई। उस समय वहाँ बी.एम.एस. की यूनियन थी। यहाँ मजदूरों के संघर्ष में वे जेल गए। उनकी सेवाएं 16 दिसंबर 1978 को अनेक अन्य सक्रिय मजदूरों सहित समाप्त कर दी गईं। इसी आन्दोलन में उनका संपर्क सीटू नेता श्रद्धानन्द सोलंकी से हुआ। इसी संघर्ष में फैक्ट्री में सीटू की यूनियन गठित हो गई। उनके साथ कामरेड सोलंकी के प्रभाव से वे 14 मई 1977 को सीपीआई(एम) के साथ भी जुड़ गए। वे सन् 1979 में मद्रास में हुई सीटू कांफ्रेंस में डेलीगेट बनकर गए। नौकरी से अलग होने के बाद उन्होंने कुछ समय तक भारत की जनवादी नौजवान सभा में भी काम किया।

12 अगस्त 1983 को उन्हें फरीदाबाद थर्मल में मिस्त्री की नौकरी मिल गई। यहाँ रहते हुए वे एच.एस.ई.बी.वर्करज यूनियन के साथ जुड़ गए और पदाधिकारी बन गए। दिनांक 15.02.1989 को उन्होंने थर्मल पानीपत में बतौर ऑपरेटर नियुक्ति मिल गई और वे यहीं से 31.07.2013 को लैब ऑपरेटर पद से सेवानिवृत्त हो गए।

बिजली क्षेत्र में आने के शुरुआती दिनों में ही वे यूनियन से जुड़ गए थे। वे यूनिट ऑर्गेनाइजर, यूनिट प्रधान आदि अनेक बार पदों पर रहे। सन् 2000 में वे यूनियन की राज्य कमेटी में उपाध्यक्ष चुने गए थे। उस दौरान वे संगठन की नेगोसिएशन कमेटी में भी सम्मिलित रहे। वे सेवानिवृत्त होने तक पदाधिकारी बने रहे। सर्वकर्मचारी संघ बनने के बाद भी लगातार सक्रिय रहे, लेकिन संघ के किसी पद पर नहीं रहे। वर्तमान में वह रिटायर्ड कर्मचारी संघ हरियाणा के रोहतक जिले के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं।

सन् 1986 के आन्दोलन में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। वे उस समय कच्चे कर्मचारी थे। बाद में सभी बहाल कर दिए गए। वे सन् 1986-87 के आन्दोलन में 34 दिन जेल में रहे। सन् 1993 के आन्दोलन में उन्हें बर्खास्त किया गया।

फिलहाल वे रिटायर्ड कर्मचारियों के अलावा किसानों, मजदूरों, महिलाओं और जनवादी संगठनों के आन्दोलनों में भी सक्रिय रहते हैं। सन् 2020-21 के ऐतिहासिक किसान आन्दोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वे प्रगतिशील विचारों के समर्थक हैं और अंधविश्वास व पिछड़ेपन के खिलाफ रहते हैं। सौजन्यः ओमसिंह अशफ़ाक

लेखकः सत्यपाल सिवाच

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *