नई दिल्ली। सरकार ने संसद की एक समिति से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के न्यायाधीशों की रिटायरमेंट की आयु उनके कामकाज के आधार पर बढ़ाना व्यावहारिक नहीं हो सकता तथा इससे संसद के अधिकारों में ‘‘और कटौती’’ होगी।
विधि एवं कार्मिक मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने पिछले साल अगस्त में ‘न्यायिक प्रक्रियाएं और उनके सुधार’ विषय पर अपनी रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के जजों का कार्यकाल मौजूदा सेवानिवृत्ति आयु से बढ़ाने के लिए कामकाज के आधार पर मूल्यांकन की सिफारिश की थी।
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, इस समय उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं, वहीं 25 हाई कोर्टों के जज 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा, ‘‘न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाते समय उनकी स्वास्थ्य स्थिति, फैसलों की गुणवत्ता, दिए गए फैसलों की संख्या के आधार पर उनके कामकाज का पुन: आकलन किया जा सकता है।’’समिति ने कहा, ‘‘इसके लिए उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा मूल्यांकन की एक प्रणाली बनाई जा सकती है।’’सिफारिशों पर अपने जवाब में सरकार ने कहा कि कामकाज के मूल्यांकन को सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने के मुद्दे से जोड़ना ‘‘व्यावहारिक नहीं हो सकता और इससे वास्तव में अपेक्षित परिणाम नहीं आ सकते’’।