यात्रा संस्मरण
वियतनाम का होई एन शहरः जहां समय अब भी ठहरा हुआ है… और भारतीय व्यापारियों के किस्से
संजय श्रीवास्तव
कहते हैं कि दुनिया का एक शहर है जहां समय अब भी ठहरा हुआ है. 400 सालों तक यहां एशियाई मुल्कों के व्यापारी आकर ठहरते रहे. उनकी आलीशान कोठियां. खूबसूरत कॉलोनी – अब भी वहीं है. ठहरे समय की तरह. भारतीय, जापानी, चाइनीज व्यापारियों का बंदरगाह शहर. उनके जहाज यहां समुद्र तट पर लंगर डालते थे. फिर नावों के जरिए वो नदी से होते हुए उस आलीशान व्यापारियों की कॉलोनी तक पहुंचते थे जिसे आज होई एन कहते हैं. वैसे मेरे हिसाब से ये खूबसूरत शहर एक बहुत ही भावपूर्ण कविता है.
ये शहर पूरा दिन अलसाया सा सोया लगता है. शाम होते ही जागता सा लगता है. रात के साथ चमचमाती रंगीन लैंटर्न के साथ चमकने लगता है. नदी में सैकड़ों नावें रंग बिरंगी लालटेनों के साथ फिसलने और थिरकने लगती हैं. यहां आना इस शहर की अलौकिक आत्मा से मिलने जैसा होता है, जो सदियों से अजर अमर और जवानी का चोला पहने है. दिन में गंभीर और पुराने दिनों की याद खोई सी लगती है और रात में शोखी की नाजोअदा दिखाते हुए रंगबिरंगे सितारों को धरती पर उतार लाती है.
वियतनाम के इस होई एन शहर की कहानी चीन के उस कैंटन शहर की तरह है, जिसे अब ग्वांगझू के नाम से जाना जाता है. एशिया में भारत से लेकर जापान और मकाऊ तक दुनियाभर के व्यापारियों ने अपनी कालोनी बनाई हुई थी. यहां उनका सामान उतरता था. महीनों वो यहां समय गुजारते थे. व्यापार की गोटियां बिठाते थे. मोटा पैसा कमाते थे. जब तक रहते थे तब तक रात में रासरंग में भी डूब जाते थे. स्थानीय औरतें उनकी संगिनी बन जाती थीं.

17वीं सदी में जब जापानी, चीनी और भारतीय व्यापारी यहां रहते थे, तब उनके घरों का उपयोग गोदाम और दूकानों के रूप में होता था. अब वही घर आर्ट गैलरी, कैफे, रेस्तरां और हैंडीक्राफ्ट शॉप्स में बदल चुके हैं. कुछ पुराने मकानों पर आज भी परिवारों के नाम लिखे हैं. जैसे तान की हाउस , जो एक चीनी-वियतनामी व्यापारी परिवार का 7 पीढ़ियों से घर है. यहां अब भी उसी परिवार के वंशज रहते हैं. आने वालों को अपने घर का दौरा कराते हैं.
होई एन में साल दर साल और सदियां गुजरने के बाद भी व्यापारियों के किस्से ही किस्से बिखरे हुए हैं . व्यापार, जिंदगी और कुछ अदद प्रेम के किस्से. इसके किरदारों में भारतीय व्यापारी भी हैं. वैसे आपको बता दूं वियतनाम के मध्य में थू बोन नदी के किनारे बसा छोटा-सा शहर होई एन (Hội An) किसी सपने की तरह है – धीमी चाल वाला, सौंधे लकड़ी के घरों से सजा, दीवारों पर पीले रंगों की कतार और रात होते ही रंग-बिरंगी लालटेनों से जगमगाता हुआ. यहां का हर गलियारा अब भी पुराने व्यापारियों की कहानियां फुसफुसाता है. हर कोठी एक नहीं तमाम कहानियों की किताब ही महसूस होती है. अब ये शहर यूनेस्को हैरिटेज भी है.
वियतनाम के इस खूबसूरत शहर में हमारी फ्लाइट हनोई से चली तो कोई एक -डेढ़ घंटे बाद दा नांग में उतरी आई. टैक्सी ने करीब 45 मिनट में हमें जिस बहुत शांत और प्यारे से होटल में पहुंचाया. उसका नाम ला एन सेंट्रल बुटीक विला है. पेडों की छाया में बना होटल. लंबे चौड़े कमरे. सुकून. हल्ला गुल्ला नहीं. नाम भूल चुका हूं लेकिन रिसेप्शन पर गोल चश्मे वाली एक क्यूट सी युवा लड़की ने स्वागत किया. ये होटल केवल सुबह का ब्रेकफास्ट सर्व करता है लिहाजा भूख मिटाने के लिए सामने फूड स्ट्रीट की शरण ली. एक कतार में कई ओपन ढाबे जैसे रेस्तरां. हल्का फुल्का लंच हुआ. फो यानि भरपूर कच्ची सब्जि्यों के साथ गर्म सूपी राइस नूडल्स, बॉयल राइस और ग्रेवी वाली वेजिटेबल सब्जी, जिसमें तोफू, शकरकंद और कद्दू के मेल के साथ. बिल सस्ता ही था. करीब साढ़े चार लाख डांग यानि भारतीय मुद्रा में 2000 रुपए से कुछ कम.
फिर होटल लौटकर भरपूर नींद ली. जब शाम दाखिल हुई तो शहर अंगड़ाई लेने लगा. होटल के पीछे नदी में स्टीमर और नाव नजर आ रही थी. यही नदी आगे जाकर घूमती हुई ठीक उस व्यापारिक कॉलोनी के सामने से बहती है. और तब यही नदी यहां की रौनक में चार चांद लगाने वाला मुख्य स्टेज बनाती है. रात की रंगीनियों और लैंटर्न की चमक के साथ इठलाती है. वैसे सबकुछ किसी जादुई परीलोक सा लगता है. हर रोज शाम से रात तक लालटेन उत्सव में दीवाली सा जगमग हो जाने वाला.लोग नदी में छोटी छोटी लालटेन छोड़ते हैं, अपने पूर्वजों को याद करते हैं, मन की मुराद मांगते हैं. हर महीने की पूर्णिमा पर शहर की बिजली बंद कर दी जाती है. तब केवल लालटेन और मोमबत्तियों की रोशनी में होई एन चमकता है.
15वीं से 19वीं सदी के बीच होई एन दक्षिण-पूर्व एशिया का एक बड़ा व्यापारिक बंदरगाह था. यहाँ चीन, जापान, भारत और यूरोप से जहाज़ आया करते थे। मसालों, रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तनों का लेना-देना होता था. इसी दौर में जापानी व्यापारियों ने यहां प्रसिद्ध जापानी चुआ काऊ पुल का निर्माण किया, जो आज भी शहर का प्रतीक है.
होई एन का सौंदर्य उसकी वास्तुकला की मिश्रित आत्मा में है – चीनी सजावट, जापानी लकड़ी के घर, कहीं भारतीय प्रतीकों के सजावट और वियतनामी टाइलों का मेल. यही कारण है कि यूनेस्को ने 1999 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया, ताकि इस प्राचीन सौंदर्य को सुरक्षित रखा जा सके.
16वीं–17वीं सदी में जब भारतीय व्यापारी भी यहां पहुंचे तो ये मुख्य रूप से तमिल, बंगाली और गुजराती मूल के व्यापारी थे जो मसालों, रेशम, नील, चंदन, और कीमती पत्थरों का व्यापार करते थे. भारत से सूती कपड़ा और मसाले यहां बिकने आते थे.
कई घरों की दीवारों, दरवाज़ों और छत की लकड़ी पर बने कमल के फूल, शंख और बेलबूटे भारतीय प्रतीकवाद से मेल खाते हैं. होई एन की पुरानी गलियों में आज भी कुछ मकानों में शिवलिंगनुमा पत्थर या गणेश जैसे आकारों की नक्काशी दिखाई देती है. स्थानीय लोग इन्हें भाग्यशाली पत्थर कहते हैं लेकिन इतिहासकार इसे दक्षिण भारत के व्यापारियों की धार्मिक परंपरा से जोड़ते हैं.
यहां एक खास डिश बनती है साओ लाऊ. जो पूरी दुनिया में केवल यहीं बनती है, इसके नूडल्स के लिए पानी विशेष रूप से यहां के एक पुराने कुएं से लिया जाता है. नदी किनारे छोटे बड़े कैफे, रेस्तरां, बार, आर्ट गैलरी, लकड़ी की नक्काशी, सिरेमिक की चीजें और रेडिमेड कपड़ों की दुकानें रंगबिरंगे लैंटर्न के साथ सज जाती हैं. ये इलाका एक के पीछे एक कई समानांतर स्ट्रीट में बसा है. हर कोठी अलौकिक है. इसी में दुनिया की प्रसिद्ध टेलर गली भी है. पूरी दुनिया से लोग यहां सूट सिलवाने भी आते हैं. सस्ते, बेहतरीन और परफेक्ट. सिलाई केवल कुछ घंटों में.
एक स्थानीय कथा के अनुसार, एक बंगाली व्यापारी परिवार ने 17वीं सदी में होई एन में बसकर लालटेन बनाने का काम शुरू किया. उन्होंने भारतीय कपड़ों से प्रेरणा लेकर रंगीन रेशमी लालटेनों को सजाने का चलन शुरू किया, जो धीरे-धीरे होई एन की पहचान बन गया. अगर ये सही तो कह सकते हैं कि होई एन की असली पहचान और आत्मा तो भारत से ही जुड़ी है. आज भले ही होई एन में कोई जीवित भारतीय बस्ती नहीं बची पर इस शहर की दीवारों, लकड़ी की गंध, और व्यापारिक आत्मा में भारत की छाया अब भी है.
कहते हैं तीन वजहों से ये शहर व्यापारियों का पसंदीदा नहीं रह गया. नदी का उथला होते जाना. यहां के राजवंशों की लड़ाइयां और विद्रोह और जापान का व्यापार पर प्रतिबंध.व्यापार मंदा पड़ने लगा तो व्यापारी यहां से कूच कर गए. सबने दूसरे बंदरगाहों का रुख किया.
अब ये सवाल हो सकता है कि होई एन के हैरिटेज कॉलोनी के सैकड़ों मकानों के रंग पीले ही क्यों. इसका जवाब शायद साइंस में है. ये समुद्री कस्बा है, जहां नम हवा बहुत ज्यादा है, लगातार धूप और गर्मी रहती है. बारिश और बाढ़ अक्सर आती है. हाल में भी आई. पीला रंग नमी को सोखता है और दीवार को फंफूद से बचाता है. सफेद या गहरे रंगों की तुलना में लंबे समय तक टिकती है. धूप में कम गर्म महसूस होता है. इसलिए 17वीं-18वीं सदी के घरों में इसे “कम खर्च में लंबे समय तक रख-रखाव” वाला रंग माना गया.
फिर वियतनामी और चीनी कल्चर में पीला रंग शांति, स्थिरता, सम्मान और धन का प्रतीक है. साम्राज्यकाल में यह रॉयल कलर था. व्यापारिक घरों में पीली दीवारें अच्छी किस्मत और भरपूर व्यवसाय को आमंत्रित करने के लिए लगाई जाती थीं. UNESCO ने इस रंग-संगति को सुरक्षित रखने को कहा है, ताकि पुरानी कॉलोनी की पहचान बनी रहे.
यह संस्मरण और रेखा चित्र संजय श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार लिए गए हैं।

लेखक – संजय श्रीवास्तव
