अत्याचारी को संरक्षण नहीं, पीड़ित को न्याय दो

हम देखेंगे का अखिल भारतीय सांस्कृतिक प्रतिरोध अभियान’

अत्याचारी को संरक्षण नहीं, पीड़ित को न्याय दो

हम देखेंगे प्रतिरोध अभियान ने दलित उत्पीड़न पर जारी किया साझा बयान

दलितों पर होने वाली हिंसा में उछाल हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है। निरंतर घट रही ऐसी जातिवादी उत्पीड़न की घटनाएँ साबित करती हैं कि क़ानून का राज ख़त्म हो चुका है, संविधान स्थगित है और जनतंत्र क्षत-विक्षत है।

सत्ता पर क़ाबिज़ दल को जैसे इसकी कोई परवाह नहीं। वह जिन जाति-वर्ग समूहों की हितरक्षक है, वही दलितों का जीना दूभर किए हुए हैं।

*कुछ बेहद चिंताजनक घटनाएं जो पिछले दिनों सामने आईं:*

* 24 अक्टूबर को ज़िंदगी और मौत से संघर्ष करते सत्रह वर्षीय दलित युवक अनिकेत ने दम तोड़ दिया। उसके चाचा सुमित का अभी इलाज़ चल रहा है। 15 अक्टूबर की रात अनिकेत जब अपने जन्मदिन का केक काट रहा था उसी समय 10-12 लोगों ने हमला किया। अनिकेत को गंभीर चोटें आईं। हमलावर निश्चिंत थे/हैं कि सरकार उनकी ही सुनेगी और हिंसा करने के बावज़ूद उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। अभी तक सारे आरोपी पकड़े नहीं गए हैं।

* 20 अक्टूबर को मध्यप्रदेश के भिंड जिले में ज्ञान सिंह जाटव को पेड़ से बाँधकर मारा-पीटा गया और पेशाब पीने के लिए मजबूर किया गया। ज्ञान सिंह ड्राइवर है, बोलेरो चलाता है। पहले जिस ‘मालिक’ का बोलेरो चलाता था, उसने ज्ञान सिंह को काम पर वापस आने का दबाव बनाया था। ज्ञान सिंह के इनकार करने पर उसे ‘मालिक’ की हवेली लाकर उस पर हिंसा की गई। इस मामले में हवेली मालिक सहित तीन युवक आरोपी हैं।

* 20 अक्टूबर को ही उ. प्र. के बस्ती जिले के अंतर्गत कलवारी थाना क्षेत्र में दलित युवक श्रीचंद को पीटा गया और जातिसूचक गालियाँ दी गईं। एक दिन पहले ब्राह्मण शिवशांत ने जाति को आधार बनाकर श्रीचंद को गाली दी थी और अपमान किया था। इस दुर्व्यवहार की शिकायत करने श्रीचंद अपनी बहन के साथ आरोपी के घर गया था। वहाँ उसे पकड़कर पेड़ से बाँध दिया गया, डंडे से पीटा गया तथा कपड़े फाड़ दिए गए।

* इसी दिन अर्थात् 20 अक्टूबर को ही लखनऊ अंतर्गत काकोरी थाना क्षेत्र में पैंसठ वर्षीय बीमार दलित बुजुर्ग रामपाल को पेशाब चाटने पर मज़बूर किया गया। रामपाल उस रास्ते से गुज़र रहे थे। तबीयत ख़राब होने से वे मंदिर परिसर में बैठ गए जहाँ उनका पेशाब छूट गया। उस मंदिर का प्रबंधन एक गुप्ता परिवार के हाथ में है। उन्होंने दलित बुजुर्ग से पेशाब चटवाया और उन्हीं से वह जगह धुलवाई।

* 13 अक्टूबर को कटनी, मध्यप्रदेश निवासी 36 वर्षीय दलित किसान राजकुमार चौधरी ने अपने खेत के बगल में सरकारी ज़मीन पर हो रहे अवैध खनन का विरोध किया तो सरपंच रामानुज पांडे, उनके पुत्र पवन पांडे व सहायक ने मारपीट की तथा राजकुमार के मुँह पर पेशाब किया। बेटे को बचाने पहुँची माँ को भी जातिसूचक गालियाँ दी गईं।

* 7 अक्टूबर को दमोह जिले (मप्र) के सतरिया गाँव में पुरुषोत्तम कुशवाहा को गाँव के ही अनुज पांडे के पैर धोकर वह गंदा पानी पीने को मजबूर किया गया। 12 अक्टूबर को पुलिस ने कहा कि मामले की जाँच करके उचित कार्रवाई की जाएगी। पुरुषोत्तम कुशवाहा ने स्वीकारा कि रहना तो इसी गाँव में है, शिकायत करके और एफ़आइआर दर्ज़ करवाकर कहाँ जाएँगे!

* 7 अक्टूबर को ही हरियाणा कैडर के दलित आइपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार ने चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर आत्महत्या कर ली। अपने 9 पृष्ठीय सुसाइड नोट में उन्होंने हरियाणा पुलिस के महानिदेशक शत्रुजीत कपूर व अन्य उच्च अधिकारियों पर उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। मृतक अधिकारी की पत्नी अमनीत पी. कुमार स्वयं अधिकारी हैं। इसके बावज़ूद सरकार ने दोषी अधिकारियों को सस्पेंड करने, समुचित कार्रवाई करने में यथासंभव कोताही की।

* 6 अक्टूबर सोमवार को भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की तरफ़ अपमानित करने के इरादे से जूता उछाला गया। यह कृत्य करने वाला स्वयं वकील है और उसकी ज़ुबानी वह सनातन धर्म का अपमान होने पर क्षुब्ध था। विडंबना यह कि एक दलित न्यायाधीश का अपमान करने वाला यह सत्तर वर्षीय अधिवक्ता स्वयं दलित होने का दावा करता है और इसे अपने किए का कोई पछतावा नहीं है।

* 5 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के सुमेरपुर थाना क्षेत्र के सिमनौड़ी गाँव के दलित उमेश अहिरवार को पीटा गया और जूते चटवाए गए। उमेश अहिरवार का ‘दोष’ यह था कि दो महीने पहले गाँव के प्राथमिक विद्यालय में लगी डॉ. आंबेडकर की तस्वीर फाड़ी गई थी जिसका उमेश ने विरोध किया था। इस घटना के विरुद्ध हुए प्रदर्शन में उन्होंने हिस्सा भी लिया था। पुलिस 5 अक्टूबर को घटी इस घटना की रिपोर्ट बारह दिन बाद अर्थात् 17 अक्टूबर को दर्ज़ कर सकी।

* 1 और 2 अक्टूबर की दरमियानी रात रायबरेली में एक दलित युवक हरिओम वाल्मीकि की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। हरिओम सफाईकर्मी गयादीन वाल्मीकि तथा केवलादेवी का बड़ा बेटा था। उसका छोटा भाई मज़दूरी करता है। यह परिवार फतेहपुर जिले के तुरवली का पुरवा का निवासी है। हरिओम अपनी पत्नी और बेटी से मिलने ऊँचाहार, रायबरेली गया हुआ था। भीड़ को शक हुआ कि वह चोरी करने के इरादे से आया है। हरिओम पहले एम्बुलेंस चलाता था लेकिन दिमागी परेशानी अवसाद के बाद यह काम छोड़ चुका था। इस मामले में पुलिस ने कई गिरफ्तारियां की हैं।

कहने की ज़रूरत नहीं कि एक महीने के भीतर घटी ये कुछ ही घटनाएँ हैं। इनकी रिपोर्टिंग मीडिया में हो पाई जिससे इनका संज्ञान लिया जा सका। भारतीय समाज, राजनीति और मीडिया के वर्तमान संकट काल में अनुमान किया जा सकता है कि उत्पीड़न की अधिकांश घटनाएं अज्ञात ही रह जाती हैं।

फिर भी थोड़े से ही समय में भारतीय समाज की सबसे ऊंची से लेकर सबसे नीची सतहों तक से इतनी घटनाओं के सामने आने से कुछ स्पष्ट निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:

1. भारतीय समाज के पारंपरिक प्रभु वर्ग अपने एकाधिकार के इलाकों में दलितों की न्यूनतम उपस्थिति भी सहन करने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर गांव जंवार तक जब भी कोई दलित अपने निर्धारित धर्म से बाहर पाँव निकालने की कोशिश करता है, उसे हिंसक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है।

2. वर्णाश्रमी धार्मिकता को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले हिंदूराष्ट्र – वादी समूह उत्पीड़क तत्वों को सामाजिक और राजनीतिक समर्थन प्रदान करते हैं। इस कारण वे पहले से अधिक निडर और दुस्साहसी हो गए हैं।

समझा जा सकता है कि दलित समुदाय अपनी अस्मिता और अस्तित्व पर छाए गहरे संकट से गुज़र रहा है। ‘हम देखेंगे’ : अखिल भारतीय सांस्कृतिक प्रतिरोध अभियान में शामिल हम सभी संगठन ऐसी स्थिति पर क्षोभ व्यक्त करते हुए मांग करते हैं कि पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए तत्काल समुचित क़दम उठाए जाएँ, आरोपियों को अविलंब गिरफ्तार किया जाए, न्यायिक प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाया जाए और दलित समुदाय के जीवन तथा सम्मान की संवैधानिक गारंटी बहाल की जाए।

जनवादी लेखक संघ (जलेस)

जन संस्कृति मंच (जसम)

दलित लेखक संघ (दलेस)

प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस)

न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव (एनएसआइ)

प्रतिरोध का सिनेमा

इप्टा

अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच (अभादलम)

जन नाट्य मंच (जनम)

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